Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
इन्द्रधनुषी रंगों का सुन्दर संसार
लेखक और लिखना
लेखक के मन दर्पण में
विचारों रूपी भाव
जब प्रेरणा के रंग भरते हैं
तब एक लेखक कुछ ज्ञानवर्धक कुछ प्रेरणास्पद
कुछ सामाजिक ,कुछ मनोरंजक रंगों के सामांजसय से
लिखकर समाज को एक अनमोल भेंट देता है ।
लेखक एक निर्दशक
एक विचारक एक दार्शनिक
एक मनोरंजक भी होता है
लेखक समाज का वो आईना होता है
जिसमें स्वयं की पारदर्शिता होती है
लेखक एक जौहरी की भांति
विचारों को शब्दों को भावों को
तराशता है फिर संवारता है
और फिर रसों की अनुभूति से
एक संकलन तैयार करता
जो प्रेरणास्रोत बन समाज को
युगों-युगों तक प्रेरित करता रहता है ।
भावों का सुन्दर होना
स्वस्थ मानसिकता
मां शारदे का आशीर्वाद
दार्शनिक विचार
सभ्य सुन्दर सुसंस्कृत समाज हित में
जो वर्तमान एवं आने वाले
समाज के लिए प्रेरणा स्रोत
हो लिखना पड़ता है ।
जिंदा रहने का शौंक
असली -नकली
मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं
सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को
समझना चाहता हूं
मुखौटों के आकर्षण देख
अक्सर मोहित हो जाता हूं
मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा
मैं शाश्वत सत्य की बातें
करना चाहता हूं
मुखौटों के बाजार में
कौन है असली
कौन है नकली
पहचान करना चाहता हूं
अरे! यहां तो नकली भी
खालिस नहीं
असली भी मिलावटी
अब जायें तो जायें कहां
नकली भी असली नहीं
असलियत का चेहरा तो
अब नजर ही नहीं आता
किसकी खोज कर रहा हूं मैं
खोजते -खोजते मैं भी बदल रहा हूं
उम्र का एक दौर पार कर चुका हूं
मुखौटों के आकर्षण देख
अक्सर मोहित हो जाता हूं
मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा
मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं
सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को
समझना चाहता हूं ।
श्रमिक किसान
मैं श्रमिक किसान
लोग मुझे देते सम्मान
कहते अन्नदाता भगवान ......
कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म
कृषि मेरा कर्म ....
प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं
अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म
नहीं भाता मुझे उत्पाद
क्यों बनूं मैं उपद्रवी
मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना
फसल कीमती पोष्टिक
कनक,धान ,फल और सब्जी....
धरती माता की समृद्धि देख
मन हर्षाता ....
नन्हें बीज खेतों में बोता
प्रकृति मां से अनूकूल
वातावरण को प्रार्थना करता
अपनी कर्मठता एवं श्रम से
अच्छी फसल जब पाता
मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।
मैं श्रमिक किसान धरती हो
समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान
मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है
जीवन में प्राण ....
मैं किसान जीविका के साधनों
मैं धरती मां समस्त प्रकृति का
पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।
वीरों का शौर्य ......
*भारत माता का गौरव
वीरों का शौर्य*
*भारत की आज़ादी नहीं इतनी सस्ती
बलिदान हुए हैं असंख्य शहीदों की हस्ती*
*असंख्य सपूतों के बलिदानों की
आहूतियों का सिंदूर भारत माता के
को भेंट चढ़ा है तब जाकर स्वतंत्र हुआ है*
*अखंड सुहागन सिंदूर मस्तक पर
रक्षा प्रहरी बन खड़े सीमाओं पर
भारत माता के लाल जांबाज .......
भारत माता के सिर का ताज
उत्तर में अडिग अनन्त हिम-आलय
हिमराज ......
हंसते -खेलते बच्चों की क्रीड़ा में
अदृश्य
सिसकती सिसकियों की पीढ़ा
सूने पड़े असंख्य परिवारों के आंगन
कहते बिछड़न का दर्द ....
*भारत माता के सिर का ताज
सिंह दहाड़ वीरांगना जांबाज
झांसी की रानी लक्ष्मीबाई
अमर प्रेरणा भारत का सम्मान ......
मध्य भारत का विशाल ह्रदय
फहराता विजय पताकाओं का साम्राज्य ......
राजस्थान की शौर्य गाथा
देवी पद्मावती पूजनीय माता.....
इतिहास गवाह है मातृभूमि की
पीढ़ा समाहित अनन्त अद्वितीय
अडिग किलों में जो रक्षा को करें बैठे
अति उत्तम अमर प्रयास .....
सिंह दहाड़ चीर पहाड़
वीर शिवाजी राना सांगा
ताना जी के शौर्य गाथाओं
का भारत ......
दक्षिण में कन्या कुमारी
का गौरव देव तुल्य पूजनीय भारत माता
असंख्य भारत माता के लाल
बलिदानों
आहूतियों का सिंदूर भारत माता के
का भेंट चढ़ा है ।
सुशोभित हो रहा है
यह आजादी इतनी सस्ती नहीं
भारत माता की अखंडता
भारत माता की स्वतंत्रता को
खण्ड खण्ड हुए असंख्य बलिदानों का
अच्छा सोचने की आदत डालें
आओ अच्छा बस अच्छा सोचें
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों के लिए रहता परेशान है मन में भावनाओं का उठता तूफान है कशमकश रहती सुबह-शाम है ब...
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*ए चाॅंद* कुछ तो विषेश है तुममें जिसने देखा अपना रब देखा तुममें ए चाॅद तुम तो एक हो तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों अलग-अलग किया खुद ...
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रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो चल पड़ो मंजिलों की तलाश में किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना फिर उ...