शोधों पर शोध

शोधों पर शोध
कांपी धरा रौद्र
रूप भर क्रोध।

हवाओं में फैला जहर
संसार पर बनकर कहर।

विष संग खेला
अब विष ने आकर
तुझको ही घेरा ।

जीने के शौंक में
मौत के आशियाने
बना लिए, वाह! मानव
तूमने अपने जीने के लिए
मरने के ठिकाने बना लिए ।






यूं कश्ती भी भूल गई है
कागज वाली आज ठिकाना

ना जाने क्यों मेरा दिल
गुनगुनाना चाहता है

कोई भुला हुआ तराना
भूल कर अपने घर का
पता पुराना, ढूंढ़ रहा हूं
गुजरा हुआ जमाना ।

धुंधली सी आंखों में
यादों का यतीमखाना

जब लौटकर नहीं आने
वाला गुजरा जमाना
फिर क्यों यादों में रहता है
वो कागज़ की कश्ती और
बारिश का आना ।










* जैसी आज्ञा *

 
 आज हमारे पितामह आने वाले हैं !
       जाने आज  क्या घोषणा करेंगे ।
       
     जब भी आते हैं ,पितामह !
 कुछ ऐसा ऐलान कर जाते हैं ,पत्थर को लकीर ... एक दिन कहेंगे सांस लेना छोड़ दो आक्सीजन की कमी हो रही है,वेंटिल्टर में कमी हो रही है ,तब बताओ क्या करेंगें ,सांस लेना छोड़ देंगें।

  पितामह आज भी आये ,बोले घर से बाहर नहीं निकलना ,बाहर कोई राक्षस घूम रहा है ,बाहर निकलोगे तो वो राक्षस तुम्हें खा जायेगा, ये राक्षस आया कहां से ,पितामह कुछ तो करो।
 अब तो किसी अर्जुन का इंतजार आए , एकलव्य का अंगूठा कट गया , कर्ण जैसे दानवीर भी अब नहीं रहे ,सब तस्वीर चाहते हैं ।
  अम्मा इन पितामह में गजब का तेज है ,वो जब - जब टेलीविजन पर आकर कुछ बोलते हैं तब सब प्रजवासी बड़े धैर्य पूर्वक उनकी बातों को सुनते हैं ।

कितना सोते हो राजू तुम, इतना तो
कुंभकर्ण भी नहीं सोता था ।

राजू आपनी अम्मा से ,लगता है ,आपने रामायण कभी ढंग से नहीं देखी।

अम्मा ,अब तुम हमें रामायण के बारे में बताओगे जितनी रामायण, हमने देखी और सुनी है ,ना बेटा ,उतनी तो जिन्दगी में किसी ने भी नहीं सुनी होगी।
तुम्हारी नानी, हमें दिन रात रामायण के चरित्रों के बारे में बताती रहती थी ।
मुझे तो वो सीता कहती थीं इसलिए उन्होंने मेरा नाम सिया रखा था।

अच्छा अम्मा ,तो आप सीता माता और पिताजी हमारे राम ।

मां फिर तो मैं आपका लव हुआ ,और छोटी बहन कुशा.......

अम्मा हो..... अम्मा आप अपने को मंदोदरी समझती हो, और पापा (रावण)  ,मां जोर से चिल्लाई ,शर्म करो ,कलयुग भयंकर कलयुग आ गया है ।

मां मैंने क्या गलत कहा ,जब आपने मुझे कुंभकर्ण कहा तभी तो  मैंने कहा।

चुप हो जा मूर्ख।
अच्छा अम्मा में उठ जाता हूं ,फिर भूख लगेगी और आपको खाना बनाना पड़ेगा ।
लेकिन कुंभकर्ण तो साल में एक ही बार उठता था ,फिर बहुत सारा खाना खाता था ,और सो जाता था।

राजू व्यंग करते हुए, अम्मा मैं इसीलिए तो ज्यादा सोता हूं ,जितना कम सोऊंगा उतनी भूख कम लगेगी ।
और आप मेरे हिस्से का भोजन भूखों को खिला देना ।
राजा बेटा, मैंने तुम्हारा नाम राजा रखा था ,क्योंकि हम चाहते थे तुम राजा की तरह रहो ,राजा की तरह अपने कर्तव्यों का पालन करो ,आलस में अपना समय व्यर्थ  न करो ।
इस सुन्दर समाज की स्थापना का भार तुम्हारे कांधो पर है पुत्र ।
जैसा तुम व्यवहार करोगे कर्म करोगे वैसा ही समाज निर्माण होगा ।
राजा जैसी आज्ञा माता जी, आगे से आप हमें कुंभकर्ण कहने की गलती मत करना ।
हां पुत्र ,हम इस अपराध की क्षमा मांगते हैं ,तुम हमें जो सजा देना चाहो ,दे सकते हो ।

नहीं माता जी ,ऐसा कैसे हो सकता है आप हमारी माता है आपको हमें कुछ भी कहने का अधिकार है
हे माता , आप अपने राजा बेटे के लिए स्वादिष्ट सा भोजन परोसिए हम अभी आपकी सेवा में हाजिर होते हैं ।

हमारा क्या है ,हम तो समाज के लिए हैं ,समाज की भलाई आपकी आज्ञा हमारा तो बस यही धर्म है।


* वक़्त किसने देखा *

 पौता :-  अपनी दादी से ,

दादी आप आजकल मंदिर नहीं जाते , पहले तो आप मंदिर जाए बिना खाने को हाथ भी नहीं लगाते थे।

हां बिल्कुल सही कह रहे हो बेटा ,अपनी पैंसठ साल  के जीवनकाल में ,मैंने ऐसा कभी नहीं देखा की देशभर के समस्त मंदिर धार्मिक स्थल बंद हों ।

हे ,भगवान ,कैसा समय आ गया

हे राम, हे राम ,कैसा कलयुग आ गया ।

जिन्दगी में पहली बार हुआ की पूरा विश्व एक अदृश्य शक्ति जिसे तुम सब वाइरस कह रहे हो ,बाहर घूम रहा है,और हम सब जनता लोग घरों के बिलों में चूहे की तरह घुसे पड़े हैं ,डर के मारे .......
हे भगवान ,कैसा घोर कलयुग आ गया है !
हे,भगवान , हम सब के पापों को क्षमा करो ,और कोई युक्ति बताओ जिससे हम इस महामारी के राक्षस का अंत कर सकें।

दादी सच कह रही हो ,वैज्ञानिकों ने बहुत खोजें की हैं, इसपर पर भी शोध जारी है ।

दादी:- पौते से आ बेटा मेरे पास बैठ ,आ हम मिलकर अपने इसी घर को मंदिर सा पवित्र बनाते हैं ।
बेटा मेरा रोज मंदिर जाना ,मुझे एक नियम में बांध कर रखता था, जिससे कुछ क्षण तो मेरा मन भगवान में स्थिर होता था।
लेकिन अब समय आ गया है, घर को ही पवित्र बनाने का ....
बहुत भाग लिए बाहर की दुनियां में ......
अब समय है,अंदर की दुनियां में शोध करने की और सकारात्मक सोच के दिए जलाने की ।

आओ बेटा थोड़ा ध्यान लगाएं और अन्तर्मन के मन्दिर की ज्योत प्रकाशित कर जन-जन के जीवन में ज्ञान के प्रकाश के मन्दिर को प्रकाशित करें।

बेटा आगे बड़ता है,और वक़्त रहते वक़्त के साथ जीने में ही भलाई है।
लेकिन वक़्त ,वक़्त बदलता है,तो  ना जाने अपने साथ-साथ बहुत कुछ बदल जाता है ।


* सतर्कता *


      हम सब समझते हैं,  डाक्टर साहब!
 आप लोग हमारे साथ इतना गंदा व्यवहार क्यों करते हैं ।

    हम लोग गरीब हैं ना इसलिए आप हमारे साथ ऐसा व्यवहार कर रहे हैं ,डाक्टर साहब आप बड़े लोग हैं,पड़े-लिखे हैं ।

     इसका यह मतलब बिल्कुल नहीं की हमारी कोई इज्जत नहीं ।

   डाक्टर साहब!        इससे पहले कुछ कहते डाक्टर के क्लीनिक में काम करने वाला एक कर्मचारी आ गया
वह उस मरीज को पकड़ कर बाहर ले गया ।

     कर्मचारी मरीज से,  तुम्हें डाक्टर साहब से इस तरह बात नहीं करनी चाहिए थी वो बड़े हैं ,हम लोग भी उनसे ऊंची आवाज में बात नहीं कर सकते ।

    मरीज,   अस्पताल में काम करने वाले कर्मचारी से तुम्हें जितनी जी हजूरी करनी है करो ,तुम तो करोगे क्योंकि तुम उनके यहां काम करते हो ,अगर कुछ कहोगे तो नौकरी से निकाल दिए जाओगे ।
 तुम्हें उनका चमचा बनना है तुम बनो ,हम क्यों बने, इतनी फीस देते हैं हम लोग डाक्टर को और वो कहते हैं दूर बैठो ,जल्दी बोलो ज्यादा मत बोलो सफाई का ध्यान रखो ।

   मरीज हम लोग गरीब हैं ,परंतु अछूत नहीं हमारे पास अच्छे कपड़े नहीं तो हम क्या करें ।

  कर्मचारी ,मरीज से, बात अच्छे कपड़ों की नहीं ,बात साफ सफाई की है ,दो जोड़ी कपड़ों में भी इंसान साफ कपड़े तो पहन सकता है ।

    ये शोर कैसा बाहर से आवाजें आ रही थीं सभी की नजरें बाहर देखने लगी ।
एक औरत जोर - जोर से रो रही थी, किसी ने आकर बताया की उसकी पति की मृत्यु हो गई है ,सिर्फ चालीस साल का था ,कुछ दिन पहले उस औरत के ससुर की भी मृत्यु हो गई थी इसी बीमारी से और
वही बीमारी उसके पति को भी ही गई थी ,डॉक्टरों ने और सबने उसे बहुत समझाया था की बीमार व्यक्ति से दूर रहे लेकिन वो नहीं माना और आज देख लिया उस भी जान से हाथ धोना पड़ा ।

  मरीज ,  अस्पताल के कर्मचारी से ऐसी कौन सी महामारी आ गई है जो ऐसा हो रहा है ।

   डाक्टर:-  मरीज को समझाते हुए देखो भाई हमें तुमसे कोई तकलीफ़ नहीं है ,डाक्टर का तो फर्ज है मरीज का इलाज करना ।

  मैंने इसीलिए कहा था ,थोड़ी दूरी बना कर रखो इसमें तुम्हारा और हमारा और हम सब का तुम्हारे ,हमारे सबके परिवारों का फायदा होगा ।

  कहा जा रहा है सबसे पहले इस बीमारी से चीन के वुहान शहर में किसी एक की मृत्यु हुई और धीरे -धीरे यह बीमारी इतनी फैल गई कि इस बीमारी के संक्रमण से चीन में हजारों की संख्या में लोग मरने लगे ।
 फिर डॉक्टरों और वैज्ञानिकों के शोधों द्वारा यह पता चला की यह बीमारी किसी वाइरस के संक्रमण से फैल रही है ,इस बीमारी से ग्रसित व्यक्ति के संपर्क में जो भी आया उसे यह बीमारी हो गई ।
 और फिर दुनिया भर में इस वायरस के संक्रमण से कई लोग बीमार होने लगे सांस रुकने से मृत्यु ।

  शोधों से यह पाया गया जो लोग इस बीमारी से ग्रसित लोगों के संपर्क में नहीं आ रहे हैं ,वह सुरक्षित हैं । लेकिन इस वायरस के कण इतने सूक्ष्म हैं कि अगर संक्रमित व्यक्ति खांसते छींकते वक्त इधर-उधर गिर जाते है और उसके छूने से अन्य व्यक्ति भी संक्रमित हो जाता है ।
  और दूसरा ,इसलिए इस चेन को तोड़ना है ।
 इस संक्रमण से बचने का सबसे बेहतर इलाज संक्रमित व्यक्ति से दूरी बनाकर रखना ।

क्योंकि शुरुआत में पता नहीं चलता कि यह बीमारी  किस को है ,इसलिए इससे बचाव ही बेहतर इलाज है ।
 बात छुआ छूत की नहीं है ,बात बचाव की है ।
 लोगों से कम से कम मेलजोल यानि समाजिक दूरियां , दूरियां कुछ दिनों के लिए हैं जब तक यह बीमारी का संक्रमण ख़तम नहीं हो जाता ।
  आजकल सोशल मीडिया का समय है ,किसी से मिले बिना भी फोन पर बातचीत करके उनका हाल खैरियत पूछी जा सकती है।
 हाथों को , बार- बार धोना ,बाजार से जरूरी सामान लाकर उन्हें किसी बाहर से साफ करना ।

  मरीज:- डाक्टर से डाक्टर साहब ,मुझे माफ़ कर दीजिए ,मैंने पूरी बात जाने बिना आपको बुरा भला कह दिया ।

 आप लोग तो सच में भगवान हैं ,हम लोग जब घरों में सुरक्षित हैं ,आप लोग अपनी जान की परवाह किए बिना मरीजों का इलाज कर रहे हैं ,आप महान हैं डाक्टर साहब ,मुझे माफ़ कर दीजिएगा , मैं भी अपना फर्ज निभाऊंगा और लोगों को जागरूक करूंगा ।










*खुद्दारी *



"कहते हैं जान है तो जहान है "

        सुना है, बाहर कोई वाइरस घूम रहा है।
  किसी राक्षस की भांति वो हमें छूने मात्र से संक्रमित कर जायेगा ।

            हे भगवान  ये कैसी आपदा है ।
लोगों को कैद करके अब बहुत मज़ा आ रहा है।

   अरे भाई जानता के पसंदीदा मनोरंजन के प्रोग्राम जैसे,रामायण,महाभारत ,शक्तिमान,चाणक्य आदि  सब दूरदर्शन पर प्रसारित हो रहे हैं ।

 हम कोई बच्चे थोड़े हैं जो हमें बेहला रहे हो ।
 अरे मित्र कैसी बातें कर रहे हो तुम एक समझदार देश के नागरिक हो देश के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाओ ।

 जहां तक मुझे पता है तुम्हारे अंदर देशभक्ति के बहुत से गुण हैं ।
आज समय है ,अपनी देशभक्ति दिखाने का ।

 मित्र हमारे घर में जो साफ-सफाई का काम करती है ना मालती नाम है उसका ,उसके चार बच्चे सभी स्कूल जाते हैं ,और उसका पति मजदूरी करता है ,पता है कल वो हमारे घर आयी थी बहुत रो रही थी कह रही थी घर में सात लोग खाने वाले हैं,और कमाने वाला एक ,  मेरी कमाई से क्या होता है बच्चों की फीस और खर्चे भी पूरे नहीं हो पाते ,और मेरा पति वो तो जितना कमाता है, उससे ज्यादा की तो वो शराब ही पी जाता है ,कल मेरे पति ने मुझे बहुत मारा कह रहा था ,पैसे दे मुझे शराब पीनी है ।

  तुम बताओ मित्र ऐसे लोगों का क्या होगा ,माना कि सरकार इन लोगों को राशन दे रही है,कई लोग खाना बना कर भी बांट रहे हैं ,माना कि भूखे तो यह लोग नहीं रहेंगे ।

 मित्र इसके विपरीत एक और दर्दनीय दृश्य जो पर्दे के पीछे है जो दिखता नहीं और कोई उसे दिखाना भी नहीं चाहता वह दृश्य है कुछ खुद्दार लोगों का कुछ इज्जतदार लोगों का जो भूखे रह लेंगे परंतु किसी के सामने रोएंगे नहीं हाथ नहीं फैलाएंगे ।

   यह वर्ग है देश के मध्यम वर्गीय परिवार के लोग ये लोग बहुत खुद्दार होते हैं यह लोग दिल के बहुत अमीर होते हैं ।

 यह वर्ग अपने परिवार को अपनी हैसियत से ज्यादा अच्छा रहन-सहन देते हैं ,जो कमाते हैं ,वही खर्च करते हैं । इनके पास ज्यादा जमा पूंजी नहीं होती ।
कब तक खाएंगे यह लोग अपनी जेब से निकाल कर ये खुद्दार लोग किसी से मांगेंगे नहीं भूखे मर जाएंगे ,
 कुछ करना होगा मेरे मित्र इन खुद्दार लोगों के लिए जल्दी से जल्दी स्थिति को सुधार कर इन्हें काम पर लौट जाने देना होगा मेरे मित्र .........

*जिन्दगी को जीने के बहाने *

    " कुछ खोने के दर्द में

      कुछ पाने के बहाने मिल गए"

**जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

मकान को घर बनाने के अफसाने मिल गए

धीमी रफ़्तार में चलने के ठिकाने मिल गए

थोड़ा आराम करने के दिन जो सयाने मिल गए

हंसने मुस्कराने के तराने मिल गए

बेवजह गुनगुनाने को गाने मिल गए

खेल-कूद मौज-मस्ती के मानों दिन 

वो बचपन के पुराने मिल गए 

एक दूजे संग सामंजस्य बिठाने के 

लिए रिश्तों को निभाने के लिए 

फुर्सत के पल एहसास ए तराने मिल गए 

किसी बहाने से ही सही ,जिन्दगी को 

जीने के बहाने मिल गए ।

जिन्दगी को जीने के बहाने मिल गए

      " इंसान को बैठना पड़ा घरों में  

    कैद होकर ,प्रकृति को लहलहाने 

             के बहाने मिल गए 

    वसुन्धरा को समृद्ध होने के

         वक़्त ए जमाने मिल गए              

     वायुमंडल में शुद्ध हवा के झौकों को 

         ठिकाने मिल गए "




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...