☺👌बचपन से अच्छा कुछ भी नहीं☺💐👌

सच में बचपन से अच्छा कुछ भी नहीं.......
बचपन, मदमस्त बचपन। ना चिन्ता ,न फ़िक्र,ना किसी का भय , अपनी ही दुनियाँ में मस्त ।
ईर्ष्या -द्वेष से परे जिन्दगी जहाँ जीने के लिए जिये जाती है,  उसे उसे बचपन कहते हैं ।बचपन में मानव के कँधों पर जिम्मेदारी का कोई बोझ नहीं होता ,कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होती ।
बचपन की खट्टी-मीठी शरारतें ,दिल गदगद हो जाता है आज भी याद आता है, दिल कहता है फिर से बच्चा बन अपने बचपन में चले जायें ,लेकिन काश हमारे मन की हो पाती ,कोई बूढ़ा ही नहीं होता ,सब बच्चे ही रहते ।पर प्रकृति के नियम को हम बदल नहीं सकते ।
जिन्दगी की दौड़ में आगे बढ़ते -बढ़ते हमारा बचपन ,हमारी सादगी,मासूमियत सब खो जाती है,हम प्रतिस्पर्धा की दौड़ में कठोर हो जाते हैं ।
 याद आते है बचपन के वो दिन माँ कहती थी बेटा पड़ लो ,माँ के बार-बार कहने पर जब माँ फटकारती थी तो हम किताब लेकर बैठते थे ,हाथ में किताब तो होती थी ,नजरें इधर -उधर दिमाग सपनों की दुनियाँ में उड़ान भरने लगता । बड़े -बड़े सपने हवाई किले बनाना ।फिर अचानक से माँ की आवाज कानों में पड़ना बेटा पढ़ाई कर रहे हो ,हमरा भी ये कहना हाँ माँ पढाई हो रही है ,फिर ऐसा जताना की बहुत थक गये हो फिर कहना माँ भूख लगी है ,माँ का भी फिर अपने बच्चे को पौष्टिक स्वादिष्ट खाना खिलाना कितना मज़ा आता था बचपन में । याद है मुझे वो दिन भी जब किसी विषय को पड़ने का मन न होना या किसी विषय में नम्बर कम आना और माँ पिताजी के बार -बार पूछने पर कहना माँ अभी नम्बर नहीं मिले टीचर ने चेक ही नहीं की , फिर अचानक से माँ पिताजी का मेरा स्कूल बैग चेक करना उसमें से उसी विषय की पुस्तक मिल जाना नम्बरों का सामने आ जाना माँ पिताजी का समझाना बेटा कहते हैं न पहले से पड़ लिया करो फिर अगली बार अच्छे नम्बर लाने का वादा करना आज से अभी से मन लगा कर पढ़ाई करने का वादा करना जिन्दगी बड़े मजे में बीत रही थी बचपन में । ना कल फिकर न आज की फ़िकर सपने इतने बड़े जैसे हम इस दुनियाँ के शनशाह हो, और दुनियाँ हमारी मुठ्ठी में हो ।

" आग और धुआँ "

   💐 " आग और धुआँ "💐

मैं ज्योति उजाले के साथ आयी
सब और उजाला छा गया
मैं ज्योति जलती रही चहुँ और
उजाला ही उजाला  ........
सबकी आँखे चुंध्याने लगीं
जब आग थी ,तो उजाला भी था
उजाला की जगमगाहट भी थी
जगमगाहट में आकर्षण भी था
आकर्षण की कशिश मे, अँधेरे जो
गुमनाम थे  झरोंकों से झाँकते
धीमे -धीमे दस्तक दे रहे थे।

उजाले मे सब इस क़दर व्यस्त थे कि
ज्योति के उजाले का कारण किसी ने नहीं
जानना चाहा, तभी ज्योति की आह से निकला
दर्द सरेआम हो गया , आँखों से अश्रु बहने लगे
काले धुयें ने हवाओं में अपना घर कर लिया
जब तक उजाला था सब खुश थे ।

उजाले के दर्द को किसी ने नहीं जाना

जब दर्द धुआँ ,बनकर निकला तो सब
उसे कोसने लगे।

बताओ ये भी कोई बात हुई
जब तक हम जलते रहे सब खुश रहे ।
आज हमारी राख से धुआँ उठने लगा तो
सब हमें ही कोसने लगे ।

दिये तले अँधेरा किसी ने नहीं देखा
आग तो सबने देखी पर आग का की तड़प
उसका दर्द धुआँ बनकर उड़ा तो उसे  सबने कोसा
उसके दर्द को किसी ने नहीं जाना ।



"मेरा और मेरे मित्र का वार्तालाप "

    "मेरा और मेरे मित्र का वार्तालाप"

कुछ लोग ऐसे होते हैं,जो बेवज़ह खुश रहने की वज़ह पूछते है।
एक बार मेरे एक मित्र मेरे घर आये और कहने लगे ,मित्र तुम यूँ ही बेवज़ह ना मुस्कराया करो ,नज़र लग जायेगी ।
मैं कुछ पल रुकी ,फिर बोली ठीक है ,मैं नहीं मुस्कराउंगी ,
पर क्या हर पल दुखी रहूँ । कुछ पुरानी बातों को याद कर रोती रहूँ ,ठीक है ना फिर नज़र नहीं लगेगी ज़माने की।

मेरे मित्र बोले नहीं यार क्या कहूँ, लोग कहते हैं ये जो तुम खुश रहते हो ना, इसका कारण है कि तुम्हारे पास कोई कमी नहीं है ।
मैंने कहा हाँ कोई कमी नहीं है । भगवान का दिया सब कुछ है ।
पर मेरे खुश होने की वज़ह सिर्फ पैसा ही है ,ये तुम सबकी ग़लतफ़हमी है ।
मेरे मित्र ने कहा हाँ यही तो मैं कहना चाहता हूँ ,कि लोग सोचते हैं कि तुम्हारे पास पैसा है इसी लिये तुम खुश रहते हो ,और पैसा तो आनी जानी चीज है ,आज है कल नहीं इसे अपने आने वाले कल के लिये सँभाल कर रखो।

अपने मित्र की बात सुनकर मैं थोड़ा मुस्करायी , फिर जोर -जोर कर हँसने लगी , मैंने कहा अरे तुम सब को कोई ग़लतफहमी हो गयी है। पैसे से तो सिर्फ सुख सुविधाये खरीदी जा सकती हैं ख़ुशी नहीं ,और सुविधाएँ इंसान को कुछ पल तो आराम देती हैं और फिर नयी आव्यशकता को भी जन्म दे देती है।
मैं खुश रहती हूँ की मैं पुरानी बातों को याद कर -करके अपना आज ख़राब नहीं करती,
मैं खुश हूँ, की मैं आने वाले कल कल की चिँता में अपना समय व्यर्थ नहीं करती ,जो होना है वो तो होगा ही हर पल को जीना यही तो जीवन है ।

मैं अपने आज मैं जीती हूँ , जो बीत गया वो सपना था ,जो आयेगा वो किसने देखा ।
पर जो आज और अभी है ,उसे क्यों व्यर्थ की चिंताओं मैं व्यर्थ करना ।
मेरे खुश रहने की वज़ह है कि मैं वर्तमान मे जीती हूँ।
हर पल यहाँ जी भर जियो ,कल किसने देखा । सिकन्दर भी सारी दुनियाँ जीत कर ख़ाली हाथ गया
बड़े-बड़े राजा महाराजा भी खाली हाथ गये ।
जीतना है, तो दिलों को जीत लो मेरे यार कुछ दिलों मे जग़ह बना लो ।।।।।।


** जगमगाने दो दिलों में प्रेम के दीपक **

    जगमगाने दो दिलों में प्रेम के दीपक
        **       **        **            **       **
 त्यौहार हमारे जीवन में हर्सोल्लास भर देते हैं
एक नयी उमँग, नयी तरंग,
और कुछ प्रेरक सन्देश  ।
                             
दुल्हन सी सजी है धरती
दीपों  के प्रकाश से प्रकाशित
धरा का कोना कोना है ।

स्वागत में  श्री विष्णु लक्ष्मी के
मन्दिर घर, आँगन, का स्वर्णिम रूप
सलोना है।

हर्षोल्लास की उमँग, तरंग है।
मिष्ठानों के उपहार बंट रहे,
खुशियों की सुन्दर रंगोली सजी है ।

काश ये वक्त ,यही थम जाये
दिलों में परस्पर प्रेम का प्रकाश जगमगाये
द्वेष,वैर,ईर्ष्या का अन्धकार मिट जाये
अबकी बार ऐसी दिवाली आये दिलों से
रिश्तों की कड़वाहट मिट जाये ।।

आपसी प्रेम का प्रकाश जगमगाये
प्रेम के प्रकाश का चहुँ और उजियारा जगमगाये ।

क्षणिक आतिशबाजी की जगमगाहट हो
पर ना पटाकों की आग,की अन्धाधुन्ध बरसात हो पर्यावरण में ना दूषित धुएँ की हवाएँ हो ।
अबकी बार सुरक्षित ,शुद्ध ,समृद्ध दीपावली हो ।।

विश्वास और जीत

   " विश्वास और जीत "
💐💐                💐💐

मेरा मुझ पर विश्वास जरूरी है ,
मेरे हाथों की लकीरों में मेरी तकदीर
सुनहरी है ।

क्यों स्वयं से अधिक हम दूसरों पर
यकीन करें।

माना की कोई किसी से कमतर नहीं है ।
पर मैं भी बेहतर और बेहतरीन हूँ
मुझे समझना जरूरी है।

हर एक की है ,अपनी विशेषता
माना मैं नही किसी के जैसा
यही तो मेरी पहचान है ।

मैं जैसा हूँ, मैं वैसा हूँ।
पर मैं जैसा हूँ ,बेहतरीन हूँ
क्योंकि मुझमे है, इन्सानियत की
खुद्दारी है ,मेरी पहचान है,वफादारी ।

मुझे करनी होगी अब जीतने की तैयारी
जीत सुनिश्चित है अबकी बारी
 स्वयं पर विश्वास की तैयारी ।

 मैं किसी से कम नहीं ,परस्पर प्रेम,
सभ्य आचरण, और इन्सानियत
की कलमों से रचना रची है मैंने सारी।

मेरा मुझ पर विश्वास है,
जीत सुनिशित है , मैंने की है पूरी तैयारी।।





**भारतीय ** संस्कृति **

          भारतीय    संस्कृति
**               **                **
भारतीय संस्कृति विश्व की समस्त संस्कृतियों में श्रेष्ठ है।
संस्कृति यानि उच्च से उच्चम संस्कार ।
संस्कार कोई स्थूल वस्तु नहीं ........
संस्कार मनुष्य द्वारा किये गये कर्म व् व्यवहार ...
भारतीय संस्कृति के आदर्श ,सदभावना, परस्पर प्रेम, आदर, आत्मविश्वास का आभूषण जिससे भारतीयता के श्रृंगार में और निखार आता है , क्योंकि सत्य ,और अहिंसा भारतीय संस्कृति की सशक्त लाठी है।
भारतीय संस्कृति हिंसा में कभी भी विश्ववास नहीं करती ।
इसका तातपर्य यह कदापि नहीं की हम कमजोर हैं ।
हिंसा से हमेशा विनाश ही हुआ है हिंसा अपने साथ कई मासूमों की भी बलि चढ़ा देती है ।
हम भी ईंट का जवाब पत्थर से दे सकते है और समय आने पर हम भारतीयों ने ईट का जवाब पत्थर से दिया भी है ।यह समस्त विश्व जनता है । भारत अहिंसा का का पुजारी है और अहिंसा की शक्ति तो महात्मा गाँधी ने बखूबी दिखा दी थी । गोले बारूद से अधिक आत्मविश्वास ,सत्य और अहिंसा की शक्ति है जिसका लोहा भारतीय संस्कृति की के इतिहास में मिलता है।

 सत्य, प्रेम अंहिसा ,के तप का के बल की अग्नि
 के आगे गोले,बारूद, की अग्नि भी शून्य है ।
 गोले ,बारूद तो कुछ एक को ही तबाह करते हैं
 पर भारतीयों के तप के बल की अग्नि में वो तेज है जो
 की कहीं भी भी किसी को बैठे-बैठे ही स्वाहा कर सकती है।
        भस्म कर सकती है । स्वाहा कर सकती है ।

**मैं बेटी हूँ यही तो मेरा सौभाग्य है**

जब मैं घर में बेटी बनकर जन्मी

सबके चेहरों पर हँसी थी ,

हँसी में भी ,पूरी ख़ुशी नहीं थी,

लक्षमी बनकर आयी है ,शब्दों से सम्मान मिला ।

माता - पिता के दिल का टुकड़ा ,

चिड़िया सी चहकती , तितली सी थिरकती

घर आँगन की शोभा बढ़ाती ।

ऊँची-ऊँची उड़ाने भरती

आसमाँ से ऊँचे हौंसले ,

सबको अपने रंग में रंगने की प्रेरणा लिए

माँ की लाड़ली बेटी ,भाई की प्यारी बहना ,पिता की राजकुमारी बन जाती ।

एक आँगन में पलती,   और किसी दूसरे आँगन की पालना करती ।

मेरे जीवन का बड़ा उद्देश्य ,एक नहीं दो-दो घरों की में कहलाती ।

कुछ तो देखा होगा मुझमे ,जो मुझे मिली ये बड़ी जिम्मेदारी।

सहनशीलता का अद्भुत गुण मुझे मिला है ,

अपने मायके में होकर परायी ,  मैं ससुराल को अपना घर बनाती ।

एक नहीं दो -दो घरों की मैं कहलाती ।

ममता ,स्नेह ,प्रेम ,समर्पण  सहनशीलता  आदि गुणों से मैं पालित पोषित                                                                                                     मैं एक बेटी ,मैं एक नारी ....

मेरी  परवरिश  लेती है , जिम्मेवारी , तभी तो धरती  पर सुसज्जित है ,

ज्ञान, साहस त्याग समर्पण प्रेम से फुलवारी    ,

ध्रुव , एकलव्या  गौतम ,कौटिल्य ,चाणक्य वीर शिवजी

वीरांगना "लक्षमी बाई ," ममता त्याग की देवी  "पन्ना धाई",आदि जैसे हीरों के शौर्य से गर्वान्वित है भारत माँ की फुलवारी

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...