**देश भक्ति की चिंगारी ***


  *भारत माता की जय *
*मेरा देश महान *
*भारत भूमि *की आन में
 और शान में 
 ये महज शब्द नहीं 
 मेरे मन के भाव हैं
 देश प्रेम के प्रति 
 दिल में सुलगतीआग है 
 देश प्रेम की आग जो 
 मुझे भीतर ही भीतर
  सुलगाती है
आत्मा रोती है जब मेरे देश की जनता धर्म
जाति और राजनीति के आड़ में हिंसा फैलाती है
मेरे हृदय की आग मुझमें धधकती है जब
किशोरियों की अस्मिताएं लूटी जाती हैं
मेरे हृदय की आग ज्वाला बनकर
मुझे मुझमें ही जलाती है जब सरहद पर तैनात
भारत का वीर सपूत भारत भूमि की आन में
शहीद हो जाता है
मेरे भीतर देश प्रेम की आग
मुझे मेरे देश की शान में
कुछ लिखने को कुछ कहने
को और भारत माता के सम्मान
में भारत माता की जय
बोलने को प्रेरित करती है ।
मेरे भीतर की आग मुझे भारत
की आन में और शान में
एक सभ्य सुशिक्षित मनुष्य
 बनने को प्रेरित करती है ।




आग नहीं तो क्या है...

भूख की आग कभी
किसी को ना सताए
कभी किसी को ना रुलाए
आग लगी थी पेट में भूख की
जो पांच साल के बच्चे
को रोटी चोरी करने
को मजबूर कर गई

चक्षुओं से कपोलों
तक छपे अश्रुओं के
अमिट निशान
नासिका पर सूखता
द्रव्य पदार्थ
तन पर पड़ा आधा-अधूरा पट

वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
झूठे पत्तलों में से अन्न के दाने
बीन कर खाने को ....

वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
कचरे में निगाहों को घुमाने को
पेट की क्षुधा मिटाने को....
एक आग ही तो थी
रोटी के टुकड़े को चोरी करने को.....


खामोशी भी बोलती है


 बहुत बोलता रहा अभी तक 
किसी ने कुछ नहीं सुना 
या यूं कहिए सुनना ही नहीं चाहा
अब मैंने मौन धारण कर लिया है।

जब से मैंने मौन धारण किया 
लोग हैरान और परेशान हैं 
मेरा बोलना जिन्हें तनिक भी 
ना भाता था ,आज मेरे
मौन से भी बैचैन हैं ।

फिर भी अब मैं खुश हूं 
ना कुछ कहने का ना सुनने का गम

एक राज की बात बताऊं 
अब तो मेरी खामोशी भी बोलती है 


पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?

खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।

जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ाया
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
ना पाया ।

पर अब मै मौन हूँ 
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।

पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।

अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है।


*ख्वाबों का सच *

  ख्वाबों में ख्वाबों को
 सच करने की गलती
 हर रोज करता हूं
  ख्वाबों के सच होने
 की हकीकत जानता हूं की
 हर रोज ख्वाब टूटते हैं
 फिर भी ये गलती
 मैं हर रोज  करता हूं ।

 हर रोज एक ख्वाब
 पूरा करने को
हजारों ख्वाहिशों की
 बलि चढ़ाता हूं।

कल किसने देखा
जानता हूं
फिर भी आज को जीना
छोड़कर कल जीने के लिए
आज मर-मर कर जीता हूं ।

ख्वाबों में रेत के महल
बनाता हूं फिर फिसल जाने पर
अफसोस मनाता हूं ।

 खुशनसीब कहूं
 या अपनी बदनसीबी
 बेमिसाल महलों का मालिक हूं
फिर भी झोपड़ियों में दिन गुजरता हूं ।





*ज्ञान की पराकाष्ठा*

पार्क में सब बच्चे पहुंच गए थे ।

रीता - बोली आज दीदी नहीं आई ,वो तो हम सब बच्चों से पहले ही आ जाती है ,आज क्या हुआ होगा रेनू?

रेनू :- तू बिना बात चिंता कर रही है रीता आ जाएगी दीदी होगा कोई जरूरी काम देर हो गई होगी ।

रीता:- हां रेनू तुम शायद सही कह रही है ,चल सब बच्चों को एक जगह बैठ जाने को कह देख कोई कहीं खेल रहा है कोई कहीं कितना शोर मचा रहे हैं बच्चे , हे भगवान जब दीदी आयेंगी तो देखना सब भीगी बिल्ली बनकर बैठ जाएंगे जैसे इनसे शांत कोई हो ही ना ।

रेनू:- दीदी कहती है अगर कभी मुझे किसी काम से देर हो जाए या मैं नहीं आ पाऊं तो तुम पीछे का पड़ा हुआ दोहरा लिया करो चल रीता सब बच्चों की कापियां चेक करते हैं ।

रीता:- हां चलो सब बच्चों अपना -अपना काम दिखाओ ,कल घर जाकर क्या पड़ा तुम सब ने सब बच्चे अपनी -अपनी कापियां निकलते हुए ,और दिखाते हुए ...दीदी देखो कल हमने यह पड़ा यह पड़ा आदि -आदि...

में सब बच्चे पहुंच गए थे ।
रीता:- बोली आज दीदी नहीं आई ,वो तो हम सब बच्चों से पहले ही आ जाती है ,आज क्या हुआ होगा रेनू?

रेनू :- तू बिना बात चिंता जर रही है आ जाएगी दीदी होगा कोई जरूरी काम देर हो गई होगी ।
रीता:- हां रेनू तुम शायद सही कह रही है ,चल सब बच्चों को एक जगह बैठ जाने को कह देख कोई कहीं खेल रहा है कोई कहीं कितना शोर मचा रहे हैं बच्चे , हे भगवान जब दीदी आयेंगी तो देखना सब भीगी बिल्ली बनकर बैठ जाएंगे जैसे इनसे शांत कोई हो ही ना ।

रेनू:- दीदी कहती है अगर कभी मुझे किसी काम से देर हो जाए या मैं नहीं आ पाऊं तो तुम पीछे का पड़ा हुआ दोहरा लिया करो चल रीता सब बच्चों की कापियां चेक करते हैं ।
रीता:- हां चलो सब बच्चों अपना -अपना काम दिखाओ ,कल घर जाकर क्या पड़ा तुम सब ने सब बच्चे अपनी -अपनी कापियां निकाल कर दिखाते हुए ...दीदी देखो कल हमने यह पड़ा यह पड़ा आदि -आदि...

पब्लिक पार्क था वहां बहुत लोग घूमने आते थे ।
एक बड़े स्कूल की अध्यापिका जो लगभग हर रोज उस पार्क में आती थी और इन बच्चों को पड़ते देख कुछ ना कुछ ऐसा कह देती थी जो दिल पर गहरी चोट कर जाता।

अध्यापिका :- आज कहां गई तुम्हारी दीदी अाई नहीं तुम्हे पड़ाने हाहा हास्य मुद्रा में .... अरे वो तुम्हें क्या पड़ाएगी ,वो तो खुद अनपड़ है ,दसवीं पास वो भी चालीस प्रतिशत में उसे कुछ नहीं आता वो तुम्हें पड़ाने का ढोंग कर रही है । कल से मेरे घर आ जाना मैं पडाऊंगी तुम्हें ,जानते हो मेरे पास कितनी डिग्रियां हैं कॉन्वेंट स्कूल से पढ़ाई की है मैंने.....

रीता:- नमस्ते अध्यापिका जी हम आपका आदर करते हैं आप हमसे बड़े हो ,और वैसे भी हम किसी का भी अनादर नहीं करते,
और हमारी दीदी को कुछ मत कहिए वो बहुत समझदार हैं हमें कोई फ़र्क नहीं पड़ता वो कितना पड़ी हुई हैं उनका ज्ञान बहुत बड़ा है आज तक उन्होंने कभी हमें किसी की बुराई करना नहीं सिखाया ,और आप हमारी दीदी के लिए ऐसा कह सकती हो
वो हमें ज्ञान दे रही हैं हमारा मार्गदर्शन कर रही हैं ।
दीदी ने हमें नैतिक शिक्षा का भरपूर ज्ञान दिया है हमारी दीदी के पास चाहे डिग्रियां कम हो पर विचारों में सबसे धनी हैं ।

(ज्ञान सिर्फ डिग्रियों का मोहताज नहीं होता ,सच्चा ज्ञान मनुष्य के श्रेष्ठ विचारों ओर आचरण की सभ्यता से प्रकट हो जाता है )

* मुश्किलों का हल*

  तू ही ढूंढेगा तेरी
  मुश्किलों का हल
   ऐ मानव तू चपल-चंचल
 व्यथित है, क्यों हर पल
 भरकर कमल नयन में जल
 क्यों उदास है जीवन में
 जो तेरे भर गया है मल
 माना कि अवरुद्ध है
तेरा मार्ग, लड़ जा
कर जा बाधाओं को पार
बन जा दरिया का बहता जल
निरंतर प्रवाहित,निर्मल,निश्चल
हो जाएगा जीवन सफल
माना की तू कमल
कीचड़ में तेरा जन्म
अपनी नियति को समझ
तू पूजनीय है
तेरा जीवन है सफल
यही जीवन का सच ।



   

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...