फिल्मी दुनिया 

 फिल्म बनाते समय फिल्मकार का  मुख्य उद्द्शेय अधिक से अधिक पैसा कमाना होता है। 
फिल्मकार नए -नए अनुभव आजमाते हैं ,जो दर्शकों को पसंद आए और उनके दिलों दिमाग पर छा जाएं। 
कुछ काल्पनिक कुछ सत्य घटनाओं पर आधारित कथानक के माधय्म से फिल्म में संगीत, डायलॉग  आकर्षक दृश्यों का मिर्च मसाला मिलकर फिल्म तैयार की जाती है। फिल्म के अभिनेता अभनेत्री अगर अपने अभिनय से दर्शकों का मनोरंजन करने में सफल हो जाते हैं , तो फिल्म तो दौड़ पड़ती है।
 किसी भी फिल्म में नयापन  परोसना महत्वपूर्ण पासा होता है।, क्योंकि  वही  नयापन फिल्म  को आगे  बढ़ाने वाली  सीढ़ी  का काम करता है,ओर जहां तक सवाल है की किसी फिल्म की कहानी समाज में जागरूकता लाने का काम करती है  तो , इसका  श्रेय   फिल्म के  कथानक  को ही  जाता  है। 

कोई भी  फिल्मकार शायद ही समाज को  जाकरूक करने के लिए फिल्म बनाता  है। निर्देशक का मुख्य उद्द्शेय तो अधिक से अधिक पैसा वसूल करना होता है।  किसी भी फिल्म की सफलता का श्रेय  कहानी लिखने वाले 
दृश्यांकर्ता  संगीतकार  व् उस फिल्म में काम करने वाले  कलाकारों को ही जाता है ,उस समय कोई भी दर्शक यह नहीं सोचता की फिल्म में काम करने वाले सिर्फ पैसा कमाने के लिए अभिनय कर रहे हैं। 

किसी भी  फिल्म   को  देखने  का  दर्शकों  का  मुख्य  उद्द्शेय मनोरंजन ही होता है मनोरंजन  जो मन को अच्छा लगे ,फिल्म में काम करने वाले अभिनेता या अभनेत्री का अभिनय अगर दिल में अपनी छाप छोड़ने में सफल रहता है तो इसका श्रेय कलाकारों को ही जाता है। यूं तो हमारे बॉलीवुड में अनगिनत फिल्मे बनती हैं परन्तु कुछ एक ही  गिनती की सभ्य और अच्छी प्रेरणास्पद भावात्मक फिल्में बनती है। 
यूं तो मै  आमिरखान की कोई बहुत बड़ी फैन नहीं हूँ ,,फिर भी कुछ एक फिल्में   '' तारें जमीन पर '' थ्री इडियट्स '' अपने आप में   श्रेष्ठ  साबित हुईं  हैँ।      

        देखो हंस रहे हैंखेत खलिहान     

     
देखो हंस रहे हैं खेत खलिहान ,
                       मीठी मधुर हवा संग कर रहे हों मधुर गान।
                                       आओ झूमे नाचे गाए आई है बहार।
   

पीली -पीली सरसों से हुआ है ,
 धरती का श्रृंगार।
सुनहरे रंगो की छटा चारोँ ओर।

                                        दिनकर की किरणों से चमके ,
                                             चाँदनी सा जलाशयों का जल
                                               सतरंगी रंगों की छठा ,मंद -मंद
                                                  हवाओं से लहराती पौधों की कतार।
               
बसंत ऋतु की आयी है बहार।,
मन प्रफुल्लित सुनहरे सपनो को सच करने
का संदेश निरन्तर परिश्रम का मिला है परिणाम
प्रग्रति और उन्नति का है ,आशीर्वाद,
जो  धरती ने कर लिया है केसरिया सुनहरा श्रृंगार,
आई है, बसंत ऋतु  की   बहार।                               

 पी के फिल्म की कहानी मेरी जुबानी!!!!

           
पी,के, फिल्म   सादगी से फिल्माई गयी , मनोरंजन से भर -पूर् फिल्म है।  पी ,के फिल्म की कहानी को बहुत ही सुन्दर ढंग से दर्शाया गया है।     आमिर खान एक अच्छे अदाकार हैं ,उनकी अदाकारी का जादू इस फिल्म में भी भरपूर दिखाई देता है।   इस फिल्म का प्रत्येक दृश्य मन  को प्रफुल्लित करने में सक्षम है।  मनोरंजन, व्यंग तथा  एक विशिष्ट विषय पर संदेश देती, यह फिल्म ,की  भगवान कहाँ  है/ इस फिल्म का नायक भगवान को भगवान का घर कहे जाने वाले विभिन्न धर्मस्थलों  मंदिर ,मस्जिद ,चर्च इत्यादि स्थलों पर खोजता है ,पर उसे भगवान नहीं  मिलते। नायक क्योंकि दुसरे ग्रह से आया हुआ प्राणी है उसे अपने घर जाना है , वह धर्म के ठेकेदार कहे जाने वाले साधू -संतों के पास भी जाता है जहाँ उसे सब झूठ दिखाई देता है ,उसकी आत्मा उसे ग्वाही नहीं देती और वह रॉंग नंबर कहकर उनका विरोध करता है।  विभिन्न धार्मिक पाखंडों पर पी ,के, फिल्म प्रहार करती नज़र आती है। माना की भगवान का घर कहे जाने वाले  मंदिर, मस्जिद ,चर्च आदि गलत नहीं हैं।  परन्तु धर्म की आड़ में कई पाखण्ड होते हैंजिन्हे आम जन  समझ के भी नहीं समझना चाहते  आँखों में पट्टी बांधे रहते हैं।
माना की फिल्म की कहानी  बहुत नई  नहीं है , इससे पहले o.m.g. फिल्म भी कुछ इसी विषेय पर आधारित थी.
पी. के की कहानी  नई  पीढ़ी  के लिए नए विचारों  के साथ सादगी   से अपनी बात कहते हुए  धार्मिक पाखण्डों पर गहरा प्रहार है। फिल्म का प्रत्येक दृश्य मनोरंजन  से भरपूर है ,कोई भी दृश्य व्यर्थ  नहीं प्रतीत होता। वही यह फिल्म प्रेरणा देती है , की अगर भगवान को ढूंढ़ना है  तो ,अपनी आत्मा की आवाज़ सुनो  ,भगवान का घर कहे जाने वाले मंदिर  मस्जिद  चर्च आदि भी आवयशक हैं  सच्चा मन और निर्मल  हृदय  भी  आवयशक है। और क्या लिखूँ  पी. के फिल्म प्रेरणास्पद  भी है।  बाकी यह देखने वाले की  मानसिकता भी है की  वह किस दृश्य को किस  मानसिकता से देखता है। 

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...