"मात्र भूमि की शान में "

महात्मा गाँधी प्यारे बापू ,
अंहिंसा के  पुजारी को शत-शत नमन।
भारत की आन में ,मात्रभूमि  की शान मे,
नतमस्तक ,नतमस्तक ,नतमस्तक।
भारतवासियों के हृदय में माँ तुल्य पूजनीय है भारत ,
वात्सल्य के समुद्र का सैलाब है भारत।
भारत सद्विचारों से हरा- भरावृक्ष है,
सरलता- सादगी है श्रृंगार इसके ,  सरलता पवित्रता का सूचक है ,
सरल है ,  कमजोर नहीं ,  शस्त्र नहीं शास्त्रों को देता है प्राथमिकता। 




कपट से दूर ऊच्च संस्कारों के आदर्श हैं  इसका मूल ,
मात्रभूमि के सपूतों में है वो आग
दुश्मन को मुह तोड़ देने को जवाब।



सिंह की दहाड़ ,कंकड़ नहीं पहाड़ है ,चिंगारी नहीं वो आग है। 
तीर नहीं तलवार है ,शाखा नहीं वृक्ष है ,बूंद नहीं समुद्र है।
तूफान है,सैलाब है ,शस्त्रों का है पूरा ज्ञान ,दुश्मनों के छक्के छुड़ाने को रहते हैं सीना तान , 
चिंगारी नहीं आग है। 
अद्भुत है मेरा भारत ,अतुलनीय पर्वत सा विशाल हृदय है ,सूर्य सा तेज ,
पर नहीं किसी से द्वेष ,  विश्व में भारत की है अपनी अलग पहचान ,
भाई -चारे संग ,धरती पर स्वर्ग बनाने का संदेश ,   अदभुत , अतुलनीय है मेरा देश।  



       मेरा भारत है  महान ,  
     हमी से है इसकी शान , 
   समस्त भारत वासी बने इसकी आन , 
             इसी से  है हमारी पहचान और इसी में  है हमारी जान । 
                                          


 "जय हिन्द"


                                     हँसना  संतुष्टता की निशानी है। 


 खुश रहने का सबसे बड़ा मंत्र है संतुष्टि . प्रसन्नता ख़ुशी केवल भाव ही नहीं अपितु जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा भी है। ख़ुशी या प्रसन्नता को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। .ख़ुशी या प्रसन्नता को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता। ख़ुशी प्रसन्नता सृष्टिकर्ता द्वारा दिए गए अनमोल रत्न हैं। ख़ुशी को जितना लुटाया जाए उतनी बढती है। ख़ुशी या प्रसन्नता वातावरण को सुंदर बनाते हैं। शुभ शक्तियों का सांचर होता है। 
  कुछ लोग मानते हैं की ख़ुशी सिर्फ धन -दौलत वालों के पास होती है। परन्तु यह सत्य नहीं है। धन -दौलत वाले अधिक चिंता ग्रस्त रहते हैं ,उन्हें इस बात  की चिंता रहती है। की उनकी दौलतकहीं चोरी न हो जाये नुकसान न हो जाये। हाँ धन -दौलत वालों के पास सुविधाएँ अधिक अवश्य होती हैं परन्तु अधिक सुविधाएँ ही असुविधा का भय का कारण होतीं हैं। जबकि कम दौलत वाला अधिक खुश रह सकता है.। ख़ुशी बाहरी हो ही नहीं सकती, क्योंकि बाहरी वस्तुएं हमेशा रहने वाली नहीं होती जो ख़ुशी आन्तरिक होती है, वेह टिकती है इसलिए कहते हैं खुश रहो सवस्थ रहो ,क्योंकि स्वस्थ मन से सवस्थ जीवन जिया जा सकता है।  अगर हम बच्चों की तरफ देखे तो पाएंगे की वह हमेशा खुश रहतें हैं।उन्हें कोई कोई चिंता भय नहीं होती। वह निर्मल होतें हैं। निर्मल यानि बिना मल के मल इर्ष्या द्वेष का अहंकार का । हम स्वयं को निर्मल करें कोई मल न हों। कोई दुर्भावना न हों फिर देखिएगा तरक्की कैसे आपकेकदम चूमेगी। 
जो होना है वो होकर रहेगा। फिर क्यों चिंता करना। चिंता काँटों का जाल है ,ख़ुशी फूलों का बिस्तर। ख़ुशी को बेचा या खरीदा नहीं जा सकता ,इसे पाया जाता है यह वो बेल है जो हमेशा फैलती है खुश रहना जीवन की औषधी है जो जीवन को अरोयग्य बना खुशहाली फैलाती है। 


जीवन में उतार चढ़ाव तो आते रहेंगे।  सुख दुःख में सम रहना जीवन की हर परिस्थिति में सम रहना एक अच्छे मानव के सन्देश हैं।   जिस तरह फिल्मो में काम करने वाला नेता या अभिनेता या अभिनेत्री आदि अन्य अपने -अपने किरदार को अच्छे से निभाते हैं कभी हंसाते है कभी रुलातें हैं हैं इसी तरह संसार में रहते हुए हमे अपने- अपने किरदार को निभाना होता है। परन्तु मानव नाटक करते -करते यह भूल जाता है और संसार पर अपना अधिकार समझने लगता है। एक फर्क इतना होता है की संसार के रंग -मंच में हमारा किरदार लम्बा होता है हमें इतनी छूठ होती है कि हम अपना भला बुरा समझ सकें अपनी आवयश्कता अनुसार सही राह चुन सकें।
                                                                                                                                                                                             

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...