आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें

अच्छा करें , अच्छा देखें

अच्छा करने की चाह में

इतने अच्छे हो जायें की

की साकारात्मक सोच से

नाकारात्मकता की सारी

व्याधियां नष्ट हो जायें

अच्छा पाने को अच्छा

देते जायें‌ नजरों के सारे

दोष मिटायें कमल बन

समाज में कुछ आदर्श बनायें

शुभ संकल्पों से समाज को

कुछ बेहतर देते जायें

आओ नयी सोच से नये जीवन की

नयी दुनिया बनायें‌  निस्वार्थ प्रेम के बीज बोते जायें ।

 

 

 

 

 

 

 

*ए चाॅद*

*ए चाॅंद*
कुछ तो विषेश है तुममें 
जिसने देखा अपना रब देखा तुममें  
ए चाॅद तुम तो एक हो 
तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों 
अलग-अलग किया खुद को 
ए चाॅद तुम किस-किस के हो 
जिसने देखा जिधर से देखा 
तुमको अपना मान लिया 
नज़र भर के देखा, तुमने ना 
कोई भेदभाव किया समस्त 
संसार को अपना दीदार दिया तुमने 
संसार में सभी को नज़र आते हो  
पूर्णिमा का चांद हो 
सुहागन का वरदान
यश कीर्ति सम्मान हो 
करवाचौथ का अभिमान
भाईदूज का चांद हो 
ईद का पैगाम हो 
सौन्दर्य की उपमा हो 
चाहने वालों का सपना हो 
ए चाॅद तुम हर इंसान के हो 
हिन्दुओं के भी हो मुस्लिमों के भी हो 
ए चाॅद तुम जो भी हो विषेषताओं का भण्डार हो 
किसी के भी सपनों का आधार हो ।


मैं चाहूं चांद पर अपना आशियाना बनाऊं
खूबसूरत परियों की दुनियां में आऊं-जाऊं 
एक जादू की छड़ी ले आऊं ,उसे घूमाऊं 
सबके सपने सच कर जाऊं परस्पर प्रेम 
की पौध लगाऊं,ईर्ष्या,द्वेष,की कंटीली झाड़ियां 
काट गिराऊं , सबको ज्ञान का पाठ पढाऊं
ऊंची सोच की राह दिखाऊं,आगे बढ़ने को प्रेरित 
करती जाऊं , जातिवाद का भेद मिटाऊं 
इंसानियत के रंग में सबको रंगती जाऊं ।।





रास्ते

 रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो 

चल पड़ो मंजिलों की तलाश में 

किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं 

रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना 

फिर उठ कर चलना मंजिलों के साक्षी 

 खट्टे-मीठे तजुर्बों के साथी रास्ते 

किनारे पर लगे वृक्षों की ठंडी छांव में 

थकान पर आराम की झपकी का सुखद एहसास 

मंजिल पर पहुंच जाने के बाद रास्ते बहुत 

याद आते हैं, रास्ते हसाते है , गुदगुदाते हैं

वास्तव में रास्ते ही तो जीवन के सच्चे साथी 

होते हैं ,जीवन के सफर में रास्तों पर चलना होगा 

रास्तों को सुगमय तो बनाना ही होगा 

रास्ते ही जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं 

सुख -दुख का किस्सा हैं ।

इंसान होना भी कहां आसान है

 इंसान होना भी कहां आसान है    

कभी अपने कभी अपनों‌ के लिए 

रहता परेशान है मन‌ में भावनाओं ‌‌‌‌‌का  

उठता तूफान‌ है कशमकश रहती सुबह-शाम है

बदनाम होताा‌‌ इंसान है, इच्छाओं का सारा काम है 

कभी हंसता कभी रोता कभी गिरता,कभी सम्भलता

इच्छाओं का पिटारा कभी खत्म नहीं होता 

दिल में भावनाओं का रसायन मचाता कोहराम है 

सपनों के महल बनाता सुबह-शाम है 

बुद्धि विवेक से चमत्कारों से भी किया अजूबा काम है 

चांद पर आशियाना बनाने को बेताब विचित्र परिस्थितियों 

में भी भी मुस्कराता मनुष्य नादान है ......

अरे पगले ! पहले धरती पर जीवन जीना तो सीख ले 

धरती तुम मनुष्यों के ही नाम है,धरती पर जन्नत बनाना 

तेरा ही तो काम है जो मिला है उसे संवार ले 

प्रकृति का उपकार है ,जीना तब साकार है 

जब प्रत्येक प्राणी संतुष्ट मुस्कुराता निभाता सेवा धर्म का काम है ।



नज़र लूं उतार

पलक नहीं झपकती जी चाहता है 
निरंतर होता रहे सुन्दर प्रकृति का दीदार 
आरती का थाल लाओ नजर लूं उतार 
प्रकृति क्या खूब किया है तुमने
वसुन्धरा का श्रृंगार ....
 अतुलनीय, अद्वितीय 
तुम तो अद्भुत चित्रकार सुन्दर रंग-बिरंगे 
पुष्पों का संसार ,  सौन्दर्यकरण संग वातावरण को
 सुगन्धित करने का भी सम्पूर्ण प्रयास 
मदमस्त आकर्षक तितलियों 
का इठलाना झट से उड़ जाना क्या खूब 
प्रकृति का श्रृंगार वृक्षों की कतार 
प्राण वायु देते वृक्षों का उपकार
सत्य तो यह हुआ की प्रकृति में  निहित  
प्राणियों के प्राणों की आस यह सत्य है 
मत कर प्राणी प्रकृति से खिलवाड़ 
स्वयं का ही जीवन ना बिगाड़ 
प्रकृति का करो संरक्षण , वृक्षों की लगा कतार 
प्रकृति की सेवा कर तुम 
 स्वयं पर ही करोगे उपकार 
 
 
रंग -बिरंगे पुष्पों की कतार 
सौन्दर्यकरण संग वातावरण को
 सुगन्धित करने काभी सम्पूर्ण प्रयास 

कारवां

चंद वर्षों का आवागमन है ज़िन्दगी  

गिनती तो नहीं, सांसों की टिक-टिक 

पर टिकी है ज़िन्दगी जीने के लिए 

कर्मों के बीज बोते हैं सहयोगी 

साथी बनते चले जाते हैं और एक 

बाद एक कारवां जुड़ता चला जाता है

हंसती- मुस्कुराती बिंदास सी जिन्दगी को 

समेटे सुख -दुख के पल बांट लेते हैं साथी

मुश्किलों में एक दूजे के संग चलते हैं साथी 

एकजुटता से दुविधाओं का सैलाब 

भी पार कर लेते हैं साथी भागती -दौडती जिन्दगी में 

खुशियों की कूंजी लिए फिरते हैं साथी 

कारवें का कोई साथी जब बिछड़ जाता है 

वक्त ठहर जाता है सहम जाता है 

उदासी का कोहरा दर्द का पहरा 

रिक्त हो जाता है एक हिस्सा कारवे का‌ 

रिक्तता धीमे-धीमे वक्त का मरहम भरता जाता है 

और कारवां चलता चलता जाता है 

वक्त का पहिया अपना काम करते जाता है ।







 अनहोनी के कारण 

ठहर जाता है ,सहम जाता है 







वक्त का सिलसिला

वक्त है कोई भी हो बीत ही जाता है 
और यह भी सत्य है गया वक्त लौट 
कर नहीं आता ।
वक्त करवट बदलता है 
तभी तो दिन और रात का सिलसिला 
चलता है ।
मनुष्य को वक्त के हिसाब से ढलना पड़ता है 
और चलना पड़ता है , नहीं तो वक्त स्वयं सिखा 
देता है ।
वक्त रहते वक्त की कद्र कर लो मेरे अपनों 
वक्त अपने ‌‌‌‌‌ना होने का एहसास खुद कराता है 
वक्त हंसाता है रुलाता है डराता है गुदगुदाता भी है  
वक्त  रहते वक्त पर कुछ काम कर लेने चाहिए 
सही वक्त निकल‌ जाने पर काम का अर्थ ही बदल 
जाता है ।
व्यर्थ ना करो वक्त को, वरना वक्त अपना 
अर्थ स्वयं बताता है ।
वक्त तो वक्त है सही वक्त पर किया गया कार्य
वक्त की लकीरों पर अपना नाम सदा -सदा के 
लिए अमर कर अंकित कर जाता है ।



उद्देश्य मेरा सेवा का पौधारोपण



उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण 

अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में 

शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में 

 सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

समाज हित की पौध लिए

श्रद्धा के पुष्प लिए भावों की 

ज्योत जलाएं चाहूं फैले च हूं और 

उजियारा निस्वार्थ दया धर्म

का बहता  दरिया हूं बहता हूं निरंतर 

आगे की ओर बढ़ता सदा निर्मलता 

का संदेश देता भेदभाव का सम्पूर्ण 

मल किनारे लगाता सर्व जन 

हित में उपयोग होता सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

निर्मलता का गागर भरता ।







अखण्ड ज्योति

 निरंतर आशा के दीप जलाते चलो 

अंधियारा तनिक भी रहने पाए 

पग- पग पर हौसलों के प्रकाश 

फैलाते चलो ।

देखो! किसी दीपक की लौ 

ना डगमगाये उम्मीद की नयी किरणों के 

प्रकाश मन - मन्दिर में जलाते चलो 

 मन के अंधियारे में धैर्य और विश्वास 

 की अखण्ड ज्योति प्रकाशित करो

 हौसलों के बांध बनाते चलो 

देखो कोई ना अकेला ना रह जाये सबको 

संग लेकर चलो सौहार्द का वातावरण बनाते चलो

 दुर्गम को सुगम बनाते चलो‌

 पग -पग पर शुभता के दीप जलाते चलो 

 अंधियारा को तनिक भी ना समीप बुलाओ  

उजियारा हो ऐसे जैसे हर रोज 

 हर- पल दीपावली हो, परमात्मा के 

आशीषो की शीतल छाया का एहसास निराला हो।

 


विचार बड़े अनमोल

विचार बड़े अनमोल होते 

विचारों ही बनाते हैं 

विचार ही बिगाड़ते हैं 

जिव्हा पर आने से पहले 

विचार मस्तिष्क में पनप जाता है 

विचारों का आकार होता है 

विचारों का व्यवहार होता है 

कौन कहता है हम करते हैं 

पहले विचारों के बीज पनपते हैं

फिर हम उन्हें नए -नए आकार देते हैं 

कौन कहता है विचार मनुष्य के बस में नहीं होते 

विचारों का दरिया जब बहता है

तब उसमें बांध बनाने होते हैं 

नहीं तो विचारों का ताण्डव 

क्रोध की अग्नि बन स्वयं भी 

जलता है और अन्यों को भी 

जलाता है।


परोपकार

चमत्कारों का आधार 
ए मानव तूमने बहुत 
किये चमत्कार 
तरक्की के नाम पर 
सुविधाओं की भरमार 
आशावादी विचार 
टूटते परिवार 
रोती हैं आंखें 
बिकती हैं सासे 
कुछ तो कारण होगा 
घुटन भरा माहौल 
हवाओं में फैला ज़हर 
यह कैसा कहर 
चार पहियों पर 
अंतहीन दौड़ती गाड़ियों का 
अंधाधुंध सफर प्राणवायु देते 
वृक्षों का कटाव अपनी ही 
सांसों पर प्रहार यह कैसी रफ्तार
प्रकृति की करुण पुकार 
ए मानव तू थोड़ी कम करता चमत्कार 
प्रकृति में निहित समस्त समाधान 
कर मानवजाति पर और समस्त प्राणियों पर उपकार 
प्रकृति का उपकार निहित मनुष्य जाति का हितोपकार ।

प्रकृति

 जिन्दगी को नये मायने मिले हैं 

जब से सूकून के पल मिल हैं 

पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी 

पत्थर के मकानों ‌‌‌‌‌में रहते 

एक अनजानी दौड़ में शामिल 

बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल 

फिर क्या हुआ हासिल 

हवाओं 

चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है 

जब प्रकृति के समीप जाती हूं 

घने वृक्षों की शीतल छाया में  

तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं

मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के 

चहकने की आवाज से कानों में

मीठा एहसास हो जाता है



चित्रकार

तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 
चल संवार अपना भाग्य संवार 
अच्छी सोच सभ्य आचरण एवं 
कर्मठता के प्रयासों से दे 
स्वयं के जीवन को सुन्दर आकार 
योग्यता अपनी-अपनी
बुद्धि, विवेक, एवं श्रम 
की मथनी धैर्य,
लगन की स्याही 
प्रयासों की की कूंजी
खोले भाग्य के द्वार
तुम स्वयं अपने चित्रकार 
तो आगे बढ़ो 
दृढ़ निश्चय की छैनी 
कर्मठता का हथौड़ा 
संवार अपना भाग्य संवार 
तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 

 

बेहतर कल के लिए

 आज रुक जाना बेहतर है 

अच्छे कल के लिए 

भीड़ ज्यादा थी 

रफ्तार बहुत तेज 

रोक दिया गया 

अच्छा हुआ 

चोट खाने से 

घायल,जख्मी 

बहुत कुछ क्षतिग्रस्त 

होने से बच गया 

दुर्घटनाओं का 

सिलसिला थम गया 

कई घरों के चिराग 

बुझने से बच गए 

कई घरों की 

दो वक्त की रोटी

का प्रबन्ध बना रहा .... 


हिम्मत का कदम बढ़ाना हैै, हारना नहीं हराना है 

तूफानों को तो आना है, दस्तूर यह पुराना है 

सही बात है बातें करना बहुत आसान है उन पर अमल करना बहुत मुश्किल ।

 मुश्किल हालातों में जब सब ओर डर और नकारात्मक विचारों का माहौल हो उस समय ,साकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत विचार मरहम का काम कर हौसलों को मजबूत करने का काम करते हैं, और मन में आत्मविश्वास का दीप जलाकर मन को धीरज देकर कर कहते हैं रास्ते अभी और भी हैं  हिम्मत मत हारना, कल फिर नया सूरज निकलेगा 

 सच में कहना बहुत आसान है , जिस पर बीतती है वही जानता है । किन्तु हिम्मत तो करनी पड़ेगी अपनों के लिए आने वाले कल के लिए .... 

 सोच को साकारात्मक रखना ही होगा , जो समक्ष है उन्हें साकारात्मकता का प्रकाश देना ही होगा आने वाली पीढ़ी की सोच को साकारात्मक विचारो‌ के हौसलों से तैयार करना होगा । 

जो हो रहा है असहनीय है ,जो छिन रहा है अनमोल है किन्तु जो शेष बच रहा है वह अमूल्य धरोहर है इस समाज की,अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दोगे ,यही सोच कर कुछ प्रेरक कुछ उपयोगी कुछ साकारात्मक विचारो की संपदा छोड़ जाने की चाह में कुछ करते चले जातीहूं ।

 कभी कभी  स्थितियां ऐसी आती है , मनुष्य तन से भी कमजोर हो जाता है परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत होती हैं ,उस वक्त मनुष्य को हौसलों की अधिक आवश्यकता होती है ।और साकारात्मक विचार बहुत सहयोगी साबित होते है




सतर्कता से जो कदम बढ़ाता है,

जीत को समीप पाता है 

धैर्य को जो धारण करता है

मुश्किलों से ना घबराता है,

साहस से आगे बढ़ता जाता है 

हौसलों के काफिले बनाता है , 

उम्मीदों की किरणों के दीपक

 लेकर संग लेकर चलता है , 

निराशा में आशा के दीप जलाता है 

वह जीवन की जंग में एक 

सफल यौधा बन जाता है ।।


वह मनुष्य जग को नयी राह 

दिखाता है जग जीवन बन जाता है 

इतिहास बहुत कुछ दोहराता है 

वक्त का चक्र चलता जाता है 

कभी अमृत तो कभी विष भी निकल 

आता है, विष जब अपना प्रताप दिखाता है 

जिवाणुओं का वाईरस महामारी बन अपना 

कहर दिखाता है ,राक्षस की भांति संसार पर  

का विनाश का कारण बन जाता है ,सब और 

त्राहि-त्राहि हो जाता है कलयुग का चौथा चरण 

कष्टदाई आधि-वयाधियों से घिर जाता है 

तब मसीहा, स्वयं धरती पर अवतरित हो जाता 

जागरूकता का की मशाल जलाता  है 

धैर्य,संयम,सतर्कता साहस अनगिनत अनमोल 

रत्नों की उपयोगिता को जीवन में धारण करने की 

उपयोगीता बताता है उम्मीद की किरण बन 

जीवन में अमृत बरसाता है जीने की राह दिखाता  है। 

यौधा है वो जो लड़ता है ,देश का सेवक होता है 

 जीवन दान देता है 


 

कीमती वही जो उपयोगी हो


 राम सिंह:-  यह महानगर है, बड़े -बडे लोग रहते हैं यहां बहुत पैसे वाले यह लोग जमीन पर पैर नहीं रखते , लम्बी लम्बी गाड़ियों में घूमते हैं । और मौका मिले तो हवाई जहाज में बैठ कर आसमान की ऊंचाइयां भी नापते हैं ।

शामू :- अच्छा बड़े -बडे लोग बड़ी बड़ी बातें कितने एश ओ आराम हैं ,वाह जिंदगी हो तो ऐसी हो ।और यह बड़े-बड़े लोहे के सिलेंडर यह किस लिए हैं शामसिंह।

 राम सिंह :- शाम सिंह तुम जहां हो ठीक हो (दूर के ढोल सुहाने ) समझ लो ।

शाम सिह:- नहीं फिर भी जीते तो शहर वाले हैं ,हम गांव वाले दिन भर काम ही काम.....

रामसिंह :-  काम करते हो अच्छी बात है तुम्हारा व्यायाम हो जाता है ,शहर वाले तो पैसे खर्च करते हैं व्यापाम के लिए भी , शहर में तो हर चीज बिकती है ,हवा, पानी,सांसें आदि -आदि जो गांवों में बेमोल हैं इनकी कद्र करो , जीवन रहते मेरे अपनों ...

शामसिंह :- क्या वहां सांसें भी बिकती है ?

राम सिंह :- बिल्कुल सही प्रश्न किया तुमने . आजकल शहरों में एक महामारी फैली हुई हैं , अगर यह बिमारी शरीर में अन्दर तक फैल जाती है तो उस व्यक्ति के फेफड़ों को खराब कर देती है और उस इंसान को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है उसका दम घुटने लगता है ,और कभी कभी तो मृत्यु भी हो जाती है ।

किसी किसी को तो डाक्टर की परामर्श से आक्सीजन वही प्राण वायु जो जो गांवों में मुफ्त में पेड़ पौधों से मिल जाती है, सांस लेने के लिए वह हवा उन्हें पैसे देकर खरीद नी पड़ रही है 

शाम सिंह :-  ओहो!  अच्छा वो लम्बे लम्बे लोहे के सिलेंडर उनमें आक्सीजन है ,यानि इंसान के सांसों के लिए हवा ....

कैसा समय आ गया है , प्रकृति ने मनुष्यों के जीने के लिए सब व्यवस्था की है, लेकिन मनुष्यों ने बिना सोचे समझे प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया ,आज स्थिति ऐसी कर दी की अपनी सांसों के लिए भी हवा नहीं बची ,वो भी खरीदनी पड़ रही है ।

रामसिंह :- शहर वालों का रुपया पैसा सब धरा के धरा रह जाएगा आज वो दुनिया की मंहगी सी महंगी चीजें खरीद सकते हैं , किन्तु क्या फायदा ,जब सांसें ही नहीं रहेगी तो सब पैसा यहीं पड़  रह जाएगा ।

महंगे से महंगा सौदा भी आपकी सांसें नहीं लौटा सकता 

जीते जी ज़िन्दगी की कद्र करो मेरे अपनों गयी ज़िन्दगी और गया वक्त फिर लौटकर नहीं आता ।






कवारनटाईन का उद्देश्य

राघव:-  वनवास जैसा ही तो है।

 राघव :- चौदह दिन के लिए कवारनटाइन हूं , कैसे बीतेंगे ‌‌‌चौदह दिन .....

सिया :- राघव , तुम्हें तो सिर्फ चौदह दिन के लिए अलग रहना है तो तुम्हें इतनी परेशानी हो रही है । श्री राम सीता लक्ष्मण जो एक राजा की संतान थे ,राजमहल में रहते हुए समसत सुख सुविधायेओं के बीच जीवन यापन कर रहे थे , उन्होंने राजमहल के समस्त सुख वैभव को‌‌ पल में त्यागकर वनवास में आने वाली ‌ कठिनाई‌ यों के बारे में तनिक भी ना सोचते हुए सहर्ष चौदह साल का वनवास स्वीकार किया था।

 राघव :- वो सतयुग था ,और सतयुग की बात अलग थी , मैं साधारण मानव हूं ।

सिया: - राघव तुम्हें अलग तो रहना पड़ेगा , तुम्हारे तन के अन्दर वाईरस रुपी ने प्रवेश कर लिया है ,और तुम्हारे जैसे अनगिनत लोगों के शरीरों में यह वाइरस रूपी राक्षस प्रवेश करके तबाही मचा चुका है और कई लोगों को तो मौत के घाट उतार चुका है । 

अब  तुम क्या चाहते हो , तुम्हारे से यह वाइरस रुपी राक्षस और बचे स्वस्थ लोगों के शरीरों में घुस कर तबाही मचा दे।

राघव;- अरे नहीं -नहीं  जैसे राम ,सिया,लक्ष्मण के वनवास के पीछे कई विषेश कार्यों को सम्पन्न करना था । ऐसे ही हमें भी इस कवारनटाईन काल में कुछ अधूरे कार्य पूर्ण करने होंगे  ।

वाईरस रुपी शत्रु राक्षस से बचना है ,और अपने परिवार को समाज को बचाना है ..... जिसके लिए हमें बहुत कुछ सीखना होगा तैयारी मां करनी होगी

1,कवारनटाईन के बहाने समय मिला है , स्वयं के ऊपर कार्य करने का.... भागती दौड़ती जिंदगी में फुर्सत का जो समय मिला है ,उसका सदुपयोग किजिए ।

चिकित्सकों द्वारा बताई गई दवाईयों का यथासमय सेवन कीजिए ।

व्यायाम और योगाभ्यास को अपनी दिनचर्या में शामिल कीजिए ।

समय मिला है स्वयं के सुधार का ध्यान योग का अभ्यास कीजिए ।

एक बात तो अवश्य समझ आई होगी स्वास्थ्य धन से बढ़ा कोई धन नहीं , स्वास्थ्य ठीक रहेगा तभी संसार के समस्त सुख अच्छे लगते है ।


1,वाइरस रूपी राक्षस अन्य स्वस्थ लोगों के शरीरों में ना प्रवेश करें इस के लिए कवारनटाइन ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌रूप वनवास  को स्वीकार कर अलग रहना होगा ।

2.वाइरस रुपी राक्षस को मारने के लिए मास्क की ढाल सदैव धारण करें ।

3.हाथों को बार बार धोयें , सेनेटाइज करें अनावश्यक रूप से इधर उधर ना छुएं 

4, अनावश्यक रूप से घर से बाहर ना निकले जरूरी सामान लाना है तो घर का एक ही सदस्य एक बार में सारा सामान ले आये।

राम जी के वनवास का उद्देश्य था राक्षसों का अंत रावण जैसे महाज्ञानी , किन्तु अहंकारी राक्षस को मारकर पृथ्वी में रामराज्य स्थापित करना ।






हमसाया

हमसाया हम सब मां का 

मां का प्यार कड़वी औषधि 

का सार, खट्टा मीठा सा 

प्यारा एहसास 

मां की कृति हम सब 

मां की आकृति हम सब 

मां ने हमें आकार दिया 

ज्ञान संस्कारों का वरदान दिया 

मां ने हमें तराश -तराश कर सभ्य 

सुसंस्कृत जीवन जीने का अधिकार दिया 

मां ने ही हमें बनाया, मां ने हमें संवारा 

मां ने हमें संसार में रहने को 

बल, बुद्धिि, विवेक, धैर्य की संजीवनी के 

अमृत का रस पान दिया , मां ने हमें बनाया 

मां का ही हम सब हमसाया 

पिता विशाल कल्पवृक्ष  

जड़ों की मजबूती का साया ।।






मां की महिमा का क्या बखान करूं 



एसी कोई जगह नहीं जहां नहीं होती 



पसंद

कोई मुझे पसंद करें 

यह मेरी चाह नहीं 

मेरे द्वारा किए कर्म 

मुझे मेरी पहचान दिलाने 

मैं कामयाब होते हैं तो मेरा 

जीवन सार्थक है ।।




परवाह


काम बस इतना करना है 

थोड़ा सम्भल कर चलना है 

सतर्कता को अपनाना है 

सुरक्षा अपनी और अपनों की  

करनी है, जिम्मेदारी यह 

हम सबको निभानी है 

दिखावे की छुट्टी करनी है 

परवाह‌ जो अपनों की करते हो 

सुरक्षा नियमों का पालन करो 

कुछ समय दूर से ही सगे संबंधियों 

और मित्रों से मिलों , महफिलें फिर से 

जम जायेंगी , ज़िन्दगी रहेगी तो रिश्तों 

की डोरियां फिर से तीज त्यौहारों में एक 

हो जायेंगी  रौनकें बहार लौट आयेंगी ।




खुशहाली लौट आयेगी


व्यवस्था में सुधार चल रहा है 

उथल-पुथल तो होगी ही 

अस्त -व्यस्त हो रखा है सब कुछ

उसे सुव्यवस्थित करने की 

प्रक्रिया चल रही है

स्वच्छता अभियान चल रहा है 

धूल तो उड़ेगी ही ,एकत्रित हुआ 

जहरीला वाईरस गंदगी के रूप में 

फैल रहा है , जैसे ही गन्दगी का वाईरस  

समाप्त हो जायेगा फिर से धरा मुस्करायेगी 

धरती हरी -भरी समृद्ध हो जायेगी 

प्राण वायु फिर से लौट आयेगी फिर ना

दम घुटने से ना किसी की जिंदगी जायेगी 

धरती पर खुशहाली लौट आयेगी ।



व्यवस्था में सुधार चल रहा है 

उथल-पुथल तो होगी ही 

अस्त -व्यस्त हो रखा है सब कुछ 

उसे सुव्यवस्थित करने की 

प्रक्रिया चल रही है

 

सुधार का समय चल रहा है 

बिगड़े हुए हालातों को काबू 

में लाने की प्रक्रिया में त्रुटियों 

के लेखा-जोखा का स दक्ष श श्र  

गलतियों की होगीं जो सबने 

उनके पश्चाताप का समय चल 

रहा है 

राम भजो आराम मिलेगा



हे राम,एक बार फिर

कहो फिर हनुमान जी से  

संजीवनी पर्वत ले आओ 

राम भक्तों की व्याधियां दूर कर जाओ 

राम भजो आराम मिलेगा 

संतुष्टि का वरदान मिलेगा 

भटके हुए प्राणियों को सही 

राह मिलेगी, सोचने -समझने की

शक्ति मिलेगी,पापों से मुक्ति मिलेगी 

पवनपुत्र परम भक्त सियाराम की 

भक्ति में तल्लीन रहते राम काज 

करने को आतुर विद्यावान गुणी 

अति चातुर पवनपुत्र संकट हरते 

जीवन में सब मंगल करते ।

हे पवनपुत्र ,जहरीले जीवाणुओं

का वायु मंडल में प्रवेश होकर

प्राणियों पर प्राण घातक हमला 

हो रहा है , त्राहि-त्राहि कर जग 

रो रहा है। हे संकटमोचन, 

संजीवनी बूटी फिर से लानी 

पड़ेगी मानवता की लाज 

बचानी पड़ेगी ।

दिव्य शक्ति स्वरूपा के उपासक 

आप ही धरा पर मानवता के रक्षक ।।








प्रार्थना दुखों का अब अंत करो

हे सृष्टिकर्ता शिव शक्ति परमात्मा 

धरती पर तुमने हमें जीने का अधिकार दिया

धरती का हाल हमने बुरा किया 

कर्मों का है खाता बढ़ा, धर्म के नाम पर 

बहुत पाखंड किया इंसानियत को भूलकर 

हैवानियत का संग किया, स्वार्थ में अंधे 

हुए हम ,परमार्थ ना कोई कर्म किया 

भक्ति दो,शक्ति दो, कष्टों से अब मुक्ति दो 

हे नीलकंठ, प्राणियों को स्वस्थ जीवन 

का वरदान दो प्राणी हैं हम तेरे,बालक नादान 

बनकर अंजान कर बैठे हैं कर्म जैसे हों शैतान 

क्षमा करो अपराध हम सब की पुकार सुनो  

परमात्मा,हम सब हैं तुम्हारी ही आत्मा, 

धरती पर फैला है कहर 

सांसों में घुल रहा है जहर,मनुष्य मर रहा है 

दम घुट-घुट कर, प्राण वायु को अब स्वच्छ करो 

हवाओं में फैले विष का अब अंत करो 

हे नीलकंठ, प्राणियों को दो स्वस्थ जीवन 

का वरदान हम सब हैं आपकी संतान ।

भटके हुओं को सही राह दिखाओ  

पाप कर्मों से हमें मुक्ति दिलाओ 

राह सही चले भलाई के कर्म करें 

एसी राह दिखाओ,शक्ति का वरदान दो भक्ति दो , 

पापों से मुक्ति दो स्वास्थ्य धन के

जीवन को मंत्र दो, बुद्धि की शुद्धि 

का महादान दो ,भला करे और सोचें सभी का भला

जन की शुभ भावना का प्रसाद दो‌ पवित्रता के

महासागर का अमृत मनुष्यों की मन, बुद्धि, वाणी और 

कर्मों में भरपूर भरो ,से सृष्टिकर्ता नीलकंठ परमात्मा 

दुखों का अब करो खात्मा मनुष्य जाति सह रही है यातना 

हम सब प्राणी हाथ जोड़ ह्रदय से करें यह प्रार्थना 

स्वीकार करो हम सब की प्रार्थना ।।।।।






भक्ति दो

आत्मा में शुद्ध बुद्धि का वास हो 

 शान्ती का 

वर

सन्नाटा भागती दौड़ती 

सड़कों पर छायी है उदासी 


हौसलों के दीपक  

सदा अपने संग रखो 

मुश्किलों का तूफान कब 

आंधियां बनकर आ जाये  

उम्मीदों ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌के आसमां संग रखो ।   

मुश्किलों की घड़ी है 

हौसलों के दीप उजागर 

करने की अवधि आन पड़ी है ।


तूफानों की रफ्तार तेज है 

सम्भल कर रहने की जरूरत 

आन पड़ी है ।


हवाओं में जिवाणुओ 

के जहर का कहर 

थोड़ा रुक जाने की 

सतर्कता से रहने की 

जरूरत आन पड़ी है ।



मैं तो सदा से अपने संग 

शुभ आशाओं का एक दीप 

लेकर चलता हूं , उम्मीद की 

नयी किरणों के प्रकाश से 

अंधेरों को दूर करता हूं 

  

सकारात्मक सोच की 

इंसानियत के चिराग 

माना की अंधेरा बड़ा 

अंधेरा है एक दिन तो 

होना अवश्य सवेरा है 

सवेरे में काली घटाऐं हैं 

उजाले पर भी कुछ आशायें है

एक दीप आशा का एक दीप उम्मीद का 

संग लेकर चलता हूं अंधेरे में हैं जो 

उनके लिए आशा की किरण बनाता हूं 

अंधेरा यानि विश्राम भी तो होता है


 





क्यों रोता है मानव अंधेरे को क्यों कोसता है 

अंधेरा यानि विश्राम की रात्रि आयी है 

रात्रि में सतर्कता के गुणों की भरपाई है   

रात्रि का अंधकार पश्चाताप की 

पीड़ा को कम करने की गहराई है 

हर रात के बाद सवेरे की घड़ी आयी है 

आज तबाही का मंजर देख आंसुओं से 

अपना दामन भीगोता है 

भूल को सुधार यह तेरे ही

 कर्मों का लेखा-जोखा है 

सम्भल जा अभी भी ए मानव,

 वही पायेगा जो तूने रौपा है

हारना नहीं हराना है 

माना की मुश्किलें भी बड़ी हैं 

किन्तु हमारे हौसलों के आगे 

पर्वतों की चोटियां भी झुकी हैं 

एक वाईरस ने तबाही मचाई है ।

लगता है राक्षस योनि फिर से 

जीवंत हो आयी है ।्

सम्भल जा अभी भी ए मानव , 

वहीं पायेगा जो तूने रौपाहै ।




अमृत कुंभ

ध्यान-योग की पवित्र स्थली

शुभ कर्म जो, गंगा मैय्या की 

शरण मिली, महाकुंभ में 

आलौकिक स्वर्ग स्वरूपणी 

ऋषिकेश त्रिवेणी संगम की गंगा घाट की 

अद्वितीय छवि अन्नत,अथाह ,अविरल 

अमृतमयी जल धारा का विहंगम दृश्य

अमृत का कुम्भ पवित्र करो वाणी

गंगा मैय्या के जयकारों से तुम

तन-मन की पवित्रता का महान संयोग

मिटाने को पाप कर्मों के भोग ....

भाग्यवान हैं, उत्तम बना है संयोग 

भक्ति रस से सरोबार ,गूंजते शंखनाद

ऋषिकेश त्रिवेणी हर-हर गंगे के जाप

अमृतमयी जलधारा का अमृत

करने को तत्पर है तन मन को पवित्र
अमृत कलश में भर लो गंगाजल
सुलझ जायेगे जीवन के सभी प्रश्नों के हल  ... हर - हर गंगे जय मां गंगे 🙏🙏🙏🙏



 

दिव्य अर्क



मिलन समारोह का 
शुभारंभ धरा अम्बर 
मध्य दिवाकर भोर लालिमा मनभावन










सुप्रभात,नव प्रभात 
नव आगमन 
बाल मन,बन नाचे 
मयूर सम, हर्षित स्वप्न 
प्रतीत प्राप्त शुभ रत्न  
स्वर्ण सम कान्तिमय 
उदित सूर्य प्रभात बेला, 
कहे, अब तो जागो  
दस्तक दे रहा है नया 
सवेरा,स्वर्णिम किरणों 
का सजा है रेला
नये दौर का नया मोड़ है 
निराश दिलों में जगी 
है एक नव आशाऐं 
जीवन की रचने को 
नयी परिभाषाएं नया 
केनवास इच्छित रंगों से
आकार बनाओ जीवन को 
मन भावन रंगों से सजाओ 
मिलन समारोह में शामिल
कोमल कोंपलों की लताऐं 
संग अपने नयी शाखाएं 
सुख-समृद्धि की जागृत 
हो रही हैं नव नूतन अभिलाषाऐं ।।





मेरा आशियाना


 निकला जाता हूं अक्सर 

घर से कहीं दूर दिल को बहलाने को

कुछ पल सूकून के पाने को 

दुनिया भर के झंझटों से आजाद हो जाने को

बेफिक्र परिंदा बन आकाश की 

ऊंचाइयों में उड़ जाने को ...

शाम होते ही लौट आता हूं अपने 

आशियाने को, सादे भोजन से तृप्ति पाता हूं 

रख कर सिर लुढ़क जाता हूं खटिया पर रखे सिरहाने पर 

शायद भटक -भटक कर थक जाता हूं 

और समझ जाता हूं अपने आशियाने और 

अपनों के जैसा अपनत्व कहीं नहीं जमाने में 

लाखों की भीड़ है ज़माने में बहुत कुछ आकर्षक

है देखने को दिल बहलाने को 

किन्तु अपनों के जैसा अपनत्व नहीं जमाने में 

मुझे मेरे अपने मिलते हैं मेरे आशियाने में 

खट्टी मीठी एहसास कराने को संरक्षण पाने को ।


  


 

अमृत धारा

श्रद्धा से मेरे दर पर आ कर तो देखो ‌ 

तन के संग मन के समस्त मैल धुल जायेंगे 

सब द्वंद संग बहा ले जाती ‌हूं 

एक ही पल में नव निर्मल धारा 

का आगमन नये आने वाले समय का

आगाज ‌मैं मुक्ति की पवित्रता की बहती धार...

रोक ना सकोगे , मैं बहती जलधार हूं 

प्रकृति की रफ्तार हूं

मैं तरल,सरल, निर्मल हूं 

वसुन्धरा का प्यार हूं दुलार हूं 

आंचल में धरती मां के समाती 

धरा अम्बर का समर्पित प्यार हूं 


बहना आगे की और बढ़ना 

मेरी नियति,बस करो बांध बनाना मुझपर

मेरी फितरत को नहीं बदल सकोगे जानते भी हो 

मुझमें निहित शीतलता में विद्युत तरंगों का तेज भी है 

शीतल हूं , तो जलनशील भी हूं लहरों के उतार-चढ़ाव संग 

सम्भलना भी सीखो ए मानव ,हर बार मैं ही क्यों 

कुछ तुम भी तो बदलो ए मानव .....

 


दस्तक एक आहट


प्रकृति स्वयंमेव एक

अद्भुत चित्रकार 

दिनकर सुनहरी किरणों का 

अद्वितीय संसार सृष्टि पर जीवन 

का आधार दिनकर रहित जीवन 

निराकार , निर्थक , अकल्पनीय ‌ 

सूर्यदव सत्य सारस्वत सृष्टि निर्माणाधीन 

सृष्टि आज उर्जा चमत्कार 

हम सृष्टि के रखवाले 

जैसा चाहे वैसा बना ले

विचारों से मिलता आधार


 

दस्तक एक आहट 

गहरे समुद्र वृहद संसार 

रत्न ,मणियों का अनन्त भण्डार

दिल स्पंदन लहरें उमड़े

शब्द ध्वनि वाक्य आकार  

काव्य का आधार 

प्रेरणा बन उपजे 

खोले आत्मा द्वार

श्रवण द्वार आवाज

अदृश्य पदचाप 

आंगन बीच पदचिन्ह छोड़े 

दिव्य अद्वितीय कृतियों के 

आकार सभ्य अद्वितीय आकार 

सुन्दर सुसंस्कृत सभ्य संसार 

थामे एक डोर 

जीवन की बागडोर 

एक छोर से दूजे छोर 

नव पल्लवों के सुकोमल 

अंकुर नव चेतना के नव रुप 

सुख समृद्धि से भरपूर।


फिर बही रस धार 

निर्झर झरनों सी रफ्तार 

स्वच्छ , निर्मल ,जलधार 






 

लोकतंत्र


स्वस्थ ‌समाज का आगाज़ ‌ 

आपकी हमारी हम सब की आवाज ‌ 

चयनित करें ऐसा नेता जो‌ सुनने को रहे

 तत्पर हर क्षण समाज की आवाज 

निस्वार्थ सेवा जनहित करें हो बढ़ा समाज सुधारक 

बुद्धि जीवि और बड़ा विचारक‌ 

निसंकोच करें हम जिसका आदर 

बने वो हमारे देश का रक्षक 


लोकतंत्र का अधिकार कभी

ना करें इसका दुरुपयोग 

एक अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने 

जैसा रोग ....

लोकतंत्र है एक बड़ा धर्म सर्व जन हिताय

 जिसका मर्म , लोकतंत्र स्व उत्थान का धन 

सूझ-बूझ से बुद्धि जीवि का हो चयन 

लोकतंत्र में प्रजा ही करे‌ अपने ‌राजा का चयन 

राजा वही जो प्रजा का करे प्रगति

 नव नूतन निष्पक्ष निर्माण .........









 










A cup of a Tea


 A cup of tea lucky lucj 

Wow ! Happiness or sorrow


In the rain, with the pakoras

Ginger and basil with winter ‌

Do you have an effect

Get it all the time

 Dussehra or Diwali

Dissolve sweetness in relationships

Fellowship of friendship

Fatigue life

The essence of Hari leaves in a boil of water

Dissolved milk mixture and sugar

Wow but sweet taste! what

Sweetness in the bitterness of life

Makes relationships precious

A tea cup containing cardamom

Taste tongue

Tea is a good excuse

A little late

Relax moments have to be explored.

एक कप चाय की प्याली







एक कप चाय की प्याली 

खुशकिस्मत हो नसीबों वाली 

वाह ! खुशी हो या गम 

बरसात में, पकौड़ों की संग 

जाड़े में अदरक और तुलसी वाली ‌ 

भाती हो असर करती हो

हर समय मिल जाती हो

 दशहरा हो या दिवाली ‌ 

रिश्तों में मिठास घोलती

मित्रता की संगिनी 

थकान की संजीवनी 

जल के उबाल में हरि पत्तियों का सार 

दुग्ध मिश्रण और शक्कर के घुल जाने 

पर मीठा स्वाद वाह! क्या बात 

जीवन की कड़वाहट में मीठास का घोल 

रिश्तों को बनाती अनमोल 

एक चाय की प्याली इलायची वाली 

स्वाद का जीभ से रिश्ता 

चाय का बहाना अच्छा है 

कुछ देर और सुस्ताना है 

सुकून के पलों को तलाशना है ।

चाय से सीखा एक गुण सयाना है ‌ 

थोड़ी कड़वाहट को शक्कर सी 

मीठे बोलों से हटाना है 



 






 



एक नया अध्याय जोडिये


 एक नया अध्याय अपने जीवन में जोड़ीए ....

बांटना सीखिए , मुस्कुराहटें बांटिये,

अच्छे विचार‌ बांटिये,बडे बुजुर्गो के संग बैठ उनके

तजुर्बों की सुनहरी साठ -गांठ बांटिए

किसी के अकेले पन को अपने 

संग के रंग से भरिये   

साथियों के संग कुछ वक्त बांटिए 

एक दुजे के हाल-चाल बांटिए

 सही वक्त का इंतजार मत कीजिए 

वक्त की सूई हाथ ना आयेगी 

जिन्दगी यूं ही बीत जायेगी 

आज किसी की,कल किसी और की आपकी 

भी बारी आ जायेगी , मुश्किल हालातों में कुछ 

साकारात्मक साहसिक विचार बांटिए ......

होसलौ से ओतप्रोत कुछ चरितार्थ बांटिए

वृक्षों,नदियों ,प्रकृति से बांटना सीखिए 

यह बात सत्य है की बांटने से कभी कुछ कम 

नहीं होता नव नूतन निर्माण ही होता है 

जब पीछे वाली चीज आगे खिसकती है 

तो पीछे की चीज स्वत: ही आगे आ जाती है 

तो बांटना सीखिए आगे बढ़ने के लिए 

स्वच्छता निर्मलता पवित्रता प्रेरणा स्वयं की 

 और समाजिक उन्नति के लिए 

आगे बढीए ।




संस्कृति और सभ्यता

इतिहास गवाह है

भारतीय संस्कृति का 

अद्भुत शौर्य, देशप्रेम में

वीरों का बलिदान

नतमस्तक सहृदय सम्मान 


इतिहास संस्कृति,सभ्यता 

अमूल्य सम्पदा विश्व धरोहर 

प्रेरणाओं का अनुपम स्रोत

वेद उपनिषद अनेकों ग्रन्थ 

ज्ञान दर्पण एवं ज्ञान गंगा का 

अद्भुत अथाह अनन्त सागर  


 देश,काल, प्रगति का सूचक 

इतिहास धरोहर, विचार मनोहर

प्रेरक व्यक्तित्व त्याग, समर्पण

निस्वार्थ सेवा परस्पर प्रेम का 

निश्चल पावन‌ सरोवर


सफल जीवन की परिभाषा 

कर्मों से जागे निराश जीवन में आशा

नव जीवन की नव अभिलाषा 

इतिहास गवाह हो जीवन जियो कुछ ऐसा ।

 

नाम:- ऋतु असूजा 

शहर :- ऋषिकेश उत्तराखंड

सदाबहार


फूल खिले हैं क्यारी - क्यारी 
प्रकृति की अनुपम चित्रकारी

माली ने भी की है खूब तैयारी 

वसुन्धरा हर्षित प्रसन्नचित फुलवारी

मौसम अनुकूल कोयल कूके मीठी बोली 

वातावरण में गूंजे प्रकृति होती संगीतमय सारी 

जल स्रोतों में पक्षी विहार

रंग बिरंगी तितलियों का संसार 

मानों प्रकृति का कर रहा हो श्रृंगार 

वादियों में रहे सदाबहार 

हरे भरे वृक्षों की कतार 

फलों फूलों से लदे रहे बागों में 

रहे सदाबहार अबकी बार सदा सर्वदा

खुशहाली हो सबके घर द्वार 

करते हैं यही दुआ प्रभु से आपार 

प्रकृति अद्भुत चित्रकार यूं ही करते 

रहना वसुन्धरा का श्रृंगार 

हम सब दृढ़ प्रतिज्ञ हो ले शपथ 

प्रकृति का संरक्षण हम सब का अधिकार ।।



 







क्यों ना बस अच्छा ही सोचे

*बडे़ भाग मानुष तन पाया* फिर क्यों ना जीवन में हर दिन हर पल उत्सव मनाएं *जीवन जीना भी एक कला है*
 समयानुसार मौसम भी बदलता है,तब भी तो मनुष्य परिस्थितियों के अनुसार स्वयं को ढालता है और स्वयं की रक्षा करता है। ठीक उसी तरह जीवन में भी उतार -चढाव आते हैं ,बजाय परिस्थितियों का रोना रोने की उन विषम परिस्थितियों से बाहर निकलने की कला सीखें ,जिससे आपका जीवन अन्य मनुष्यों के लिए भी प्रेरणास्पद बन जाएं और आप स्वयं के जीवन में एक मार्गदर्शक की भूमिका निभा सकें ।
परिस्थितियां तो परीक्षाओं के समान है 
कहते हैं कई लाख योनियों के बाद मनुष्य जीवन मिलता है , समस्त प्राणियों में मनुष्य जीवन ही श्रेष्ठ है,क्योंकि मनुष्य ही एक ऐसा प्राणी है जो अपनी बुद्धि ,विवेक के द्वारा धरती पर बडे़ - बडे़ अविष्कार कर सकता है ,चाहे तो अपने कर्मों द्वारा धरती को स्वर्ग बना सकता है ,चाहे तो नर्क ,परमात्मा ने यह धरती मनुष्यों के रहने के लिए प्रदान की,मनुष्यों को चाहिए की वह इस धरती को स्वर्ग से भी सुन्दर बनाएं ।
 परमात्मा द्वारा प्रदत प्रकृति की अनमोल संपदाएं , जल स्रोत,सुन्दर प्रकृति वृक्षों पर लगने वाले फल,फूल हरे -भरे खेतों में उगते अनाज विशाल पर्वत श्रृंखलाएं आदि अंनत उत्तम व्यवस्था की है, परमात्मा ने इस धरती पर मनुष्यों के जीविकोपार्जन के लिए, किन्तु मनुष्यों ने अपने स्वार्थ में अंधा होकर इस धरती का हाल बुरा कर दिया है,संभालो मनुष्यों यह धरती तुम मनुष्यों के लिए ही है, इसे संवारो , बिगाड़ो नहीं ,अभी भी समय है धरती पर प्राप्त प्राणवायु में जहर मत घोलो ।
  प्रत्येक दिन को एक उत्सव की तरह मनाओं क्योंकि प्रत्येक नया दिन एक नए जन्म जैसा होता है ,जन्म के साथ प्रत्येक मनुष्य अपनी मृत्यु की तारीख भी लिखवा कर आया है जो एक कड़वा सत्य है। तो फिर क्यों ना धरती पर प्राप्त इस मनुष्य जीवन का सदुपयोग करें ,अपने जीवन को सार्थक बनाएं। क्यों ना धरती पर कुछ ऐसा कर जाएं जिससे स्वयं का और समाज के भला हो और हमारा जीवन आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणादायक बन जाए  ।
  लोग क्या कहेंगे ,इस बारे में सोचकर अपने जीवन के अनमोल पल व्यर्थ ना गवाएं ,लोग तो कहेंगे लोगों के काम है कहना ,किसी भी व्यक्ति का जीवन उसकी स्वयं की धरोहर है ,अपनी इस अनमोल जिन्दग  में खुशियों के सुन्दर सतरंगी रंग भरे ,उदास ,अभावों का दर्द छलकाते रंगों वाली बेरंग तस्वीर किसी को नहीं भाती ,अतः अपने जीवन को सदैव इंद्रधनुषी रंगों को सुन्दर छवि दें ।  *यूं ही बे वजह मुस्कराया करो माहौल को खुशनुमा बनाया करो *
 यानि हर पल जीवन का उत्सव मनाते रहें । बुरे और नकारात्मक विचारों से स्वयं को बचाएं जिस प्रकार धूल गंदगी मैले वस्त्रों को हम दिन-प्रतिदिन बदलते हैं ,उसी प्रकार समाज में फ़ैल रही नकारात्मक प्रवृतियों को स्वयं को बचाते हुए उस दिव्य शक्ति परमात्मा का नित्य स्मरण करते हुए,परमात्मा से दिव्यता का वरदान प्राप्त करते रहें । व्यर्थ की चिन्ता से स्वयं को बचाएं जीवन में उतार -चढाव तो आते रहेंगे जीवन में निरसता को स्थान नए दें । प्रत्येक दिन एक नई शुरुआत करें ।
 एक महत्वपूर्ण सत्य,अपने जीवन में हर कोई सुख-शांति और खुशियां चाहता है ,अगर किसी कारण वश आप खुश नहीं है आप शान्ति का अनुभव नहीं कर पा रहे हैं तो खुशियों के पीछे भागिये मत,क्योंकि जीतना हम किसी को पाने के लिए भागते हैं, वह चीज हमसे और दूर जाती रहती है। अतः जिस चीज की चाह आपको अपनी जिन्दगी में है ,उसे बांटना सीख लीजिए यकीन मानिए जितना आप खुशियां बांटेंगे उतनी आपकी जिन्दगी में खुशियां बडेंगी ,कभी किसी भूखे को खाना खिलाकर देखिए ,कभी किसी रोते को हंसा कर देखिए ,आपको सच्ची खुशियों की सौगात मिलेगी ,बेसहारों का सहारा बनकर देखिए जीवन में अद्भुत शान्ति का अनुभव होगा 
किसी निराश हताश के मन में आशा के दीप जलाकर उसे आगे बढ़ ने के लिए प्रेरित कीजिए 
दिखायेगा अमुक व्यक्ति के दिल से निकली दुआएं आपका जीवन सफल बना देंगी।
* तो चलिए आइए जीवन को बेहतरीन से बेहतरीन ढंग से जिएं*
*आओ हर दिन हर पल को एक उत्सव की तरह जिएं जीवन में नित नए आशा के दीप जलाये* अपने संग औरों के घर भी रोशन कर आएं ,उम्मीद की नयी किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलायें ,आओ हर दिन प्रेम के रंगों का त्यौहार मनाएं दिलों में परस्पर प्रेम और अपनत्व की फसल उगाये**

क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है ऐसा नहीं की  
मुश्किलें नहीं आती परंतु अच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है।
जो सच्चा होता है वो सरल होता है निर्मल होता है और हल्का होता है । 
आओ हर दिन एक उत्सव की तरह मनाएं ,जीवन में नित नए आशा के दीप जलाएं उम्मीद की किरणों से जीवन में सकारात्मकता का प्रकाश फैलाएं।           हे मानव तुम अपने आत्मबल को कभी कमजोर नहीं होने देना आत्मशक्ति मनुष्य का सबसे बड़ा धन है। जीवन में भले ही धन-दौलत नष्ट हो जाए  लेकिन अगर आपके पास शिक्षा धन और आत्मविश्वास एवम् आत्मबल की शक्ति है तो आपके पास आपके जीवन में सब कुछ प्राप्त है  अतः आत्म शक्ति को कभीकमजोर नहीं होने देना यही है जीवन का सबसे बड़ा गहना।

स्वरचित:
ऋतु असूजा

चलो हल्के हो जाये

चलो आज फिर सब हल्के हो जाएं 

 दिल से सच्चे हो जाएं बच्चे हो जायें

मासूमियत के फ़रिश्ते हो जाएं 

मुस्कुराहटों को अपने चेहरों पर सजाएं

यूं ही बेबाक मुस्करायें 

स्वयं को ना बिन बात पर उलझाएं 

सपनों के ऊंचे महल बनाएं 

परियों की दुनियां सजाएं

राजा -रानी और जिन्न के किस्से  

कहानियों को सच कर जायें

प्रतिस्पर्धा की दौड़ में सब एक 

पंक्ति में आ जाये ,ईर्ष्या द्वेष से दूर 

अंतरिक्ष में चहल कदमी कर सितारों के

जहां में एक नया जहां बनाएं ,धरती पर 

आसमान की दूरियों को दूर कर धरती पर

एक सुन्दर नया प्यारा न्यारा जहां बनायें 

जहां सभी नेकी के फ़रिश्ते हो जायें ।




 उम्मीद रखो सदा स्वयं से 

 स्वयं को स्वयं की उम्मीद पर 

परखो ना किसी को स्वयं को 

खरा बनाओ पारखी बनो 

स्वयं की कमियों को जानो 

उन्हें निखारो, कमियां किसी की

अपनी नहीं उसमे नासमझी की 

जो समझ है हो सके तो उस समझ को 

सवारों ,कोयले की खान में से हीरे को 

तलाशने की नज़र बना लो जीवन 

खूबसूरत होगा नज़र में अच्छी सोच का 

नजरिया तो डालो  ।

सिर्फ पाने की नहीं देने की नियत बना लो 

जिन्दगी बेहतरीन होगी उम्मीद स्वयं की 

सोच से स्वयं के कर्मो में कर्मठता का इत्र मिला लो ।


काबिल बनाने के लिए 

स्वयं के आत्मसम्मान के लिए

स्वयं की और समस्त जहां की खुशियों के 

लिए भलाई के बीज रौपता हूं 

सुख समृद्धि और नेकी के लिए

 स्वस्थ खुशहाल संसार की कल्पना 

करता हूं स्वयं को समझाता हूं 

निष्काम कर्म को अपना मूल मंत्रi

ऊं नमो शिवाय


ऊं नमो शिवाय 

 शिवमय संसार 

शिव ही जीवन का आधार 

ढूंढता हूं शिव को आंखें मूंद 

जबकि शिव तुझमें- मुझमें भीतर- बाहर 

दिव्य ज्योत का लो आधार 

शिव से होगा एकीकार  

भय पर...

 पाकर विजय 

 बना मैं अजेय ...

 भय- भ्रम सब का अंत 

दुविधाओं का डर नहींं  

दौर अग्नि परीक्षाओं का 

हुए सब खोट बाहर 

शिव स्तुति उपासना का आधार 

शिव शक्ति दिव्य ज्योति से जब हुआ एकीकार 

मिला जीवन को सुंदर आकार 

कुन्दन बना ,कोयले  की खानों 

में ज्यों एक हीरा नायाब जैसे 

सृष्टि कर्ता जब संग अपने ‌ 

जीवन के अद्भुत रंग अपने 

शिव शक्ति को स्मरण कर

ऊं नमो शिवाय का मंत्र रख संग अपने 

ऊं नमो शिवाय ।।






जरा सोचिए ...

इतने दिनों से मैं तेरी परिक्षाओं के कारण घर में कैद हूं कई जरुरी काम रुके हुए हैं मेरे ......
बेटी अपनी मां से.... मां आप बताओ परीक्षा में मेरी थी या आपकी .......
मां बेटी से ,माना की परीक्षाएं तुम्हारी थी , किन्तु मेरी भी परीक्षाएं ही थी ।
बेटी ,वो कैसे ?
मां बेटी से , अच्छा बेटा जी , परीक्षाओं के समय तुम्हें सब कुछ एक जगह बैठे बिठाए कौन देता था , थोड़ी भी देर मैं ‌इधर उधर जाती तो तुम मुझे पुकारने लगती । तुम्हारा पूरा ध्यान तुम्हारी पढ़ाई पर हो इसलिए मैं यही रही तुम्हारी सेवा में हाजिर ।
बेटी ,अपनी मां से ओ मां तुम कितनी अच्छी हो .....
मां अच्छा चल अब ज्यादा मक्खन ना लगा । पहले मैं बाज़ार जाऊंगी , फिर मीना मौसी के यहां कब से नहीं आती उससे मिलने हम ही तो हैं उसके अपने .....
बेटी मां से ,बेचारी मीना मौसी कितने अच्छे परिवार में की थी उनके मां बापू ने उनकी शादी ,‌पर शादी जो आप लोगो के लिए सब कुछ है ,आज मीना मौसी ,कल किसी और के साथ भी कुछ भी हो सकता है , इससे अच्छा तो अगर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर कोई काम करने देते यानि वो कोई अपना काम या सर्विस कर रही होती तो उन्हें इस तरह अकेले पन और मोहताज गी की जिंदगी ना झेलनी पड़ती ।
मां निशब्द थी मानों आंखों ही आंखों में कह गयी थी जी लेना बेटी तू अपनी मन मर्जी से ....
 

मुख्य अतिथि


शीर्षक "मुख्य अतिथि"आज का दिन विशेष था ,सभी होनहार विद्यार्थियों के मन में विशेष उत्साह था "                  

   पुरस्कार समारोह का आयोजन था ,सभ्य,शालीन सुव्यवस्था ,गेंदें के फूलों की सजावट यकायक मन मोह रही थी, सुन्दर रंगों के सामंजस्य से सजी रंगोली वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह कर रही थी ।                       सभी के चेहरों पर एक तेज़ था ,तेज़ नये सपनों का नए जीवन की नई परिभाषाओं को लिखने का ।             सभी व्यवस्था ,व्यवस्थित थी अब इंतजार था तो बस मुख्य अथिति का जिन्होंने पुरस्कार प्रदान करना था ।  सभी विद्यार्थियों के चेहरों में खुशी की एक झलक थी , जो मानों कह रही थी उनकी लगन और परिश्रम की एक नई कहानी ,की आगे आने वाले भविष्य के सुनहरे सपनों की बागडोर अब हमारे हाथों में है हम बनायेंगे नये युग का नया जहां।

अचानक से हाल के सब लोग शिष्टाचार दिखाते हुए शांत हो गए , कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता हाथों मे पुष्प मालाएं लिए मुख्य द्वार की और बडे़ ,मुख्य अतिथि का आगमन हो गया था । मुख्य अतिथि के हाल में प्रवेश करते ही सब लोग खड़े हो गए और तालियां बजाकर उनका स्वागत किया गया ।                                                           समारोह का प्रारम्भ सरस्वती वन्दना से किया गया , उसके बाद बच्चों ने कई रंगा-रंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए ।     पुरस्कार वितरण का समय था , एक -एक करके प्रतिभावान विद्यार्थियों को पुरस्कार दिए जा रहे थे ।   अब समय था, मुख्य अतिथि के स्वागत में कुछ कहने का समय था सबने एक से बढ़कर एक कहा।

  अब समय था मुख्य अथिति द्वारा एक अनोखी प्रतियोगिता का ।

 जिसमें उन्होंने एक आठ साल के बच्चे को, और एक पंद्रह साल के बच्चे को अपने पास स्टेज पर बुलाया और उन्होंने उन दोनो बच्चो एक आठ साल का बच्चा  नाम जागृत और एक पन्द्रह साल का नाम राहुल उन दोनो के कान में धीरे से कुछ कहा, और वो दोनो बच्चे स्टेज से उतर गए , हाल में बैठें सभी लोगों की नजरें उन बच्चों को देखने लगी की आख़िर ये दोनों बच्चे स्टेज से नीचे उतर कर जा कहां रहें हैं । 

  अचानक हाल में शान्ति छा गई , आख़िर इस पंद्रह साल के लड़के राघव ने एक दूसरे लड़के को जो उसी लड़के के साथ पड़ता था, खींच कर दो थप्पड़ मार दिये सब लोग हैरान थे आखिर ऐसा क्या हुआ होगा या मुख्य अतिथि ने ऐसा कहा, अगर उन्होंने ऐसा करने को कहा तो बहुत गलत कहा । और वह पंद्रह साल का लड़का स्टेज की ओर चल दिया । 

अब सब की नजरें उस आठ साल के बच्चे जागृत पर थी की वो क्या करेगा , सब लोग डर रहे थे की अगर इसने भी किसी को थप्पड़ मारे तो यह तो छोटा है कोई पलट कर इसे भी मार देगा , इन्तजार था सबको क्या होता है, तभी वह आठ साल का बालक जागृत अपने सहपाठी के पास जाकर खड़ा हो गया , सभी लोग डर रहे थे ,की अचानक एक ऐसा दृश्य देखने को मिला की सबकी आंखें नम हो गई सब भाव विभोर हो गए , उस आठ  साल के बच्चे जागृत ने अपने सहपाठी  के गाल पर प्यार किया और उसे प्यार से गले लगा लिया, दृश्य बहुत भाव विभोर था, इसके पीछे का रहस्य तो मुख्य अतिथि या फिर वो बच्चे ही जानते थे । फ़िर दोनों बच्चे वापिस स्टेज पर पहुंच गए ।  

अब बारी थी , इस अनोखी प्रतियोगिता के परिणाम की । मुख्य अथिति को परिणाम घोषित करना था, वो बोलने लगे मैंने इन दोनों बच्चो को धीरे से एक ही बात कही थी की , इस हाल में बैठा तुम्हारा कोई मित्र जो तुम्हे हर पल तंग करता हो ,और तुम्हारा उससे बिना बात पर झगड़ा होता हो, उससे आज अपने दिल की बात कह कर आओ जैसे इच्छा हो तुम उसे समझा कर आओ की वो तुम्हें आगे से तंग ना करे।

अब आप बताएं किस का तरीका आपको सबसे अच्छा लगा, सभी उस छोटे आठ साल के बच्चे जागृत का नाम लेने लगे । मुख्य अथिति ने उस आठ साल के बच्चे जागृत को सम्मान पूर्वक अपनी कुर्सी पर बिठाया ,और कहा आज का मुख्य अतिथि यह बच्चा है, इस बच्चे के मन में कोई मैल नहीं है हम सब का मन भी इस बच्चे की तरह हो ना चाहिए । 

जैसे - जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारे मनों में विकार रूपी मैल इक्कट्ठे होते जाते हैं , हम सब को चाहिए की हम सब भले ही उम्र में कितने भी बड़े कयों ना हो जाएं , हमारे मन का बच्चा नहीं मरना चाहिए जो हमें वैर भाव ईर्ष्या , द्वेष से दूर रखता है।                     और हिंसा से तो हिंसा ही जन्म है ।  मन की कोमल सच्ची भावनाओं  से बड़ा कोई धन नहीं यह अनमोल है । 

 अतः आज के नन्हें मुख्य अथिति एवम्  विजेता जागृत का स्वागत करिए आप सब लोग.... तालियों के शोर से सारा हाल गूंज रहा था , नन्हें मुख्य अतिथि जागृत ने आज सच मे बहुत बड़ी सीख दी थी सबको की निस्वार्थ प्रेम ही वास्तव में मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है ।

छोटी सी आशा

क्या तुम जिन्दगी में आगे नहीं बढ़ना चाहते , नहीं साहब जी ,बस हम खुश हैं....अपनी इस छोटी सी दुनिया में  इतने ऊंचे सपने हमें नहीं सुहाते ....  हमरा परिवार में हमको मिलाकर पांच जन हैं.. हमारे  दो लड़की दो लड़का है एक पत्नी है उनकी रोटी का इंतजाम होता रहे बस बहुत है ।

और बच्चों की पढ़ाई .....उनकी मां रोज उन्हें भेजती है पास के सरकारी स्कूल में , ज्यादा पढ़-लिख कर क्या करेंगे , बाबू जी .... हमारे पास इतना नहीं की हम इनको ऊंचे-ऊंचे सपने दिखा सके । बच्चों का ब्याह करा दें ‌यही है अपना सपना।





( महीला दिवस विशेषांक ‌)आज भी मेरा दिन है कल भी था और हमेशा रहेगा


 सम्मान देना चाहते हो तो 

 सम्मान दो... सदा सदा के लिए 

शाश्वत.... 

सिर्फ एक दिवस का सम्मान 

मुझे स्वीकार्य नहीं ....

महिला दिवस बता.....

मानों महिलाओं को रिझाते हो 

हाथ में झुनझुना दे दिल बहलाते हो ।

भूल गए मैं तुम्हारी जननी हूं 

माता हूं ..... माना की बीज तुम्हारे हैं

फुलवारी को मैंने बढ़े जतन से पाला है  

 संस्कारों की खाद से पौष्टिकता और 

सभ्यता के विकास को मैंने एक सभ्य 

सुसंस्कृत समाज के निर्माण का काम किया है 

नहीं चाहिए मुझे एक दिन का सम्मान

देना है तो मुझे मेरा अधिकार दो 

बराबरी से चलने की स्वतन्त्रता दो 

रक्षा कवच बन रहो ,

निज पशुता का वर्धन करो 

जंगलराज का अब अंत करो 

कांधे से कांधा मिला संग चलने का आह्वान करो ।




 





रंगों का अद्भुत संसार

 यूं तो मुझे सारे रंग अच्छे लगते हैं किन्तु किस दिन कौन सा रंग पहनूं बढ़ी समस्या होती है ।

अब एक दिन लाल पहना था तो दूसरे दिन कौन से रंग के कपड़े पहनूं ।

हम भारतीय भी हर बात का हल निकाल ना जानते हैं 

भारतीय संस्कृति स्वयं में अतुलनीय है 

चलो सारी समस्या ही खत्म अब किसी को ज्यादा सोचने की आवश्यकता नहीं ।

हम भारतीय सोमवार को भगवान शिव का दिन मानते हैं ,और हमारे ईष्ट शिव शंकर तो भोलेनाथ हैं हमेशा ध्यान तपस्या में लीन रहते हैं । भगवान शिव के नाम पर पवित्र रंग श्वेत , यानि सोमवार का श्वेत रंग ।

मंगलवार ,मगल भवन अमंगल हारी राम भक्त हनुमान केसरी नंदन हनुमान जी का शुभ रंग , केसरी,लाल गुलाबी रंग मंगलवार का शुभ रंग ।

बुधवार ;-‌ज्ञान बुद्धि एवं समृद्धि सम्पन्नता व्यापार में लाभ के दाता भगवान विष्णु को नमन । समृद्धि का रंग हरा रंग ।

बृहस्पतिवार :- जिसे गुरुवार भी कहते हैं , ज्ञान बुद्धि को देने वाले गुरु को प्रणाम ,‌ वन्दना विद्या देवी सरस्वती जी को शुभ रंग पीला , श्वेत ।

शुक्रवार :- वन्दना मां लक्ष्मी देवी माता को भाता लाल‌ गुलाबी रंग प्रिय नमन शक्ति स्वरूपा देवी ।

शनिवार :- धीर गम्भीर कष्टों से मुक्ति देने वाले शनिदेव ‌को

‌‌ ्व्व्व््व्व्व्व्व्व््व्व््व्व्व््व्व्व्व

  प्रणाम शुभ रंग नीला ,काला ।

रविवार :- सूर्य देवाय नमो नमः सूर्य का तेज प्रकाश रोशनी की किरणें जो सबके जीवन में उजाला भर दे ‌। नारंगी  पीला गुलाबी,‌लाल रंग रविवार का रंग ।

बहुत अच्छा लगता है मुझे भारतीय संस्कृति का यह ताल मेल सभ्यता संस्कृति में सब चीजों का हल है ।

किन्तु एक बात और .... जो मन को अच्छा लगे स्वयं के लिए और सबके लिए शुभ हो , किसी भी दिन कोई भी रंग पहने एसा कहीं कोई विवशता नहीं सभी रंग परमात्मा के हैं और उसे सभी रंग प्रिय हैं ।




मेरा सुन्दर सपना

 मासूमियत उसके चेहरे से छलक रही थी ,धूल से लतपत से कपड़े पैरों में चप्पल भी नहीं , फिर वो बालक अपनी और आकर्षित कर रहा था ,ना जाने क्यों मन कर रहा था इसे अपने पास बिठाकर बहुत कुछ समझाऊं ‌।

उस नन्हे बालक की भोली निगाहें कभी सामने बनी शानदार बंगलों को निहार रही थी कभी पास में खड़ी मंहगी गाड़ीयों को निहार रही थीं ।

वो नन्हा बालक पास में खड़ी मंहगी लम्बी गाड़ी को ऐसे हाथ लगा कर देख रहा था मानो वह कोई सपना देख रहा हो ,और सोच रहा हो एक दिन बड़ होकर मैं भी शायद ऐसी गाड़ी लूं ‌और उसमें बैठकर दूर घूमने निकलूं ‌।

तभी सामने के बड़े से घर से एक आदमी निकला और उस ‌छोटे बच्चे को दूर से गुस्सा दिखाते हुए अरे हट जा सारी गाड़ी पर निशान बना दिए ,कभी देखी है ऐसी गाड़ी । वह‌ बच्चा डर के गाड़ी से दूर हट गया ।

थोड़ी देर बाद वह‌ बच्चा हिम्मत करके उस गाड़ी वाले आदमी के पास आकर पूछ बैठा अंकल ‌यह गाड़ी कितने की है ,वह आदमी पहले तो उस‌ बच्चे की बात सुनकर जो र के हंसा... और फिर बोला क्या करेगा ,अंकल बड़ा होकर एसी गाड़ी खरीदूंगा ।



कलाकार

 कलाकार होना भी कहां आसान है 

अपनी कला को आकार देना पड़ता है 

एक आधार एक रुप एक ढंग से संवारना 

पड़ता है गुणों को पहचान कर स्वस्थ

सुन्दर आकर्षक प्रेरक प्रस्तुतियां देनी पड़ती हैं 

समाज को एक अनमोल साकारात्मक संदेश देने हेतु

संघर्ष करना पड़ता है 

सर्वप्रथम स्वयं को प्रोत्साहित करना होता है 

समाज के तानों को नजरंदाज करके 

स्वयं में एक उत्साह जागृत करना होता 

स्वयं को साबित करने के लिए एक जंग 

लड़नी पड़ती है कुछ विशेष कर के दिखाने को 

अपेक्षा का पात्र बन अनगिनत बार गिर -गिर कर उठना पड़ता है ।

या यूं कहिए सत्य को अग्नि परीक्षाएं देनी होती हैं

 हास्य का पात्र भी बनना पड़ता है 

यानि कलाकार को अपने हुनर को साबित करने के लिए 

आकार तो देना पड़ता है ।





इन्द्रधनुषी रंगों का सुन्दर संसार


मकसद तो एक है हर रंग को अपनाना
हर रंग से सामंजस्य बिठाना 
हर रंग से प्यार 
मुझे तो लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाऊं
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं
क्यों ना करुं मैं रंगों से प्यार 
इन्द्रधनुषी रंगों से सजा सुन्दर संसार 
हरियाली हरी -भरी समृद्धि का प्रतीक
हरे रंग में व्याप्त खुशहाली
लाल रंग विजय, सम्मान ,सवाभिमान 
केसरी रंग ,साहस, हिम्मत, हौसलों और वीरों का शौर्य
श्वेत रंग स्वच्छता, निर्मलता , पवित्रता एवं  शांति का प्रतीक ........
प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य तो देखो 
रंगों का अद्भुत ताल मेल मन को मोहित कर जाता
दिल को हर्षाता सुकोमल ,सुन्दर रंगीन पुष्पों को‌ खिलौने वाला सृष्टि को रचने वाला अद्भुत कलाकार 
मैं भी बोलूं ये ‌कौन चित्रकार है .... श्रेष्ठतम चित्रकार है 
जिसने लगाया रंगों का मेला 
अब ना रहे कोई नीरस‌‌ अकेला 
सृष्टि सजी  है अनेकों रंगों के मिलकर
आओ सजायें और बनायें अलग-अलग रगों से अपनी और अपनों की जिंदगी बेहतर 
मुझे को लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाएं 
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं।



लेखक और लिखना

लेखक के मन दर्पण में

 विचारों रूपी  भाव 

जब प्रेरणा के रंग भरते हैं 

तब एक लेखक कुछ ज्ञानवर्धक कुछ प्रेरणास्पद 

कुछ सामाजिक ,कुछ मनोरंजक रंगों के सामांजसय से 

लिखकर समाज को एक अनमोल भेंट देता है ।


लेखक एक निर्दशक 

एक विचारक एक दार्शनिक

एक मनोरंजक भी होता है 

लेखक समाज का वो आईना होता है 

जिसमें स्वयं की पारदर्शिता होती है 

लेखक एक जौहरी की भांति 

विचारों को शब्दों को‌ भावों को 

तराशता है फिर संवारता है 

और फिर रसों की अनुभूति से 

एक संकलन तैयार करता‌ 

जो प्रेरणास्रोत बन समाज को 

युगों-युगों तक प्रेरित करता रहता है ‌।



भावों का सुन्दर होना  

स्वस्थ मानसिकता

 मां शारदे का आशीर्वाद 

दार्शनिक विचार

सभ्य सुन्दर सुसंस्कृत समाज हित में 

जो वर्तमान एवं आने वाले 

समाज के लिए प्रेरणा स्रोत 

हो लिखना पड़ता है ।

जिंदा रहने का शौंक

जिंदा है वो जो जीने 
का शौंक रखता है 
शख्सीयत मेरी मिट्टी 
ही सही,लेकिन भव्य
किले,महल बनाने के 
बुलंद हौसले रखता हूं।

मैं अजनबी निकला हूं
अजनबी शहर में
कुछ पाने को 
दिल को समझाने को 
किसी को अपना बनाने को 

मुसाफिरों की भीड़ में
मैं भी एक मुसाफ़िर
सजा रहा हूं आशियाने को
जानता हूं लौट जाना होगा
फिर ना आना होगा 
इसी लिए तो छोड़ जाने को
बेताब हूं कुछ अमिट अनमोल 
निशानियों को ....

जाने से पहले कुछ ऐसी
 छाप छोड़ जाऊंगा याद 
आता रहूंगा अपने द्वारा 
रची कहानियों से कर्मों की 
निशानियों से ....




असली -नकली

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें 

करना चाहता हूं 

मुखौटों के बाजार में 

कौन है असली

 कौन है नकली 

पहचान करना चाहता हूं 

अरे! यहां तो नकली भी 

खालिस नहीं 

असली भी मिलावटी 

अब जायें तो जायें कहां 

नकली भी असली नहीं  

असलियत का चेहरा तो 

अब नजर ही नहीं आता 

किसकी खोज कर रहा हूं मैं 

खोजते -खोजते मैं भी बदल रहा हूं 

उम्र का एक दौर पार कर चुका हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं ।

श्रमिक किसान

मैं श्रमिक किसान

लोग मुझे देते सम्मान

कहते अन्नदाता भगवान ......


कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म 

कृषि मेरा कर्म ....


प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं

अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म 

नहीं भाता मुझे उत्पाद 

क्यों बनूं मैं उपद्रवी 

मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना 

फसल कीमती पोष्टिक 

कनक,धान ,फल और सब्जी....


धरती माता की समृद्धि देख 

मन हर्षाता ....


नन्हें बीज खेतों में बोता 

प्रकृति मां से अनूकूल 

वातावरण को प्रार्थना करता 

अपनी कर्मठता एवं श्रम से 

अच्छी फसल जब पाता 

मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।


मैं श्रमिक किसान धरती हो 

समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान 

मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है 

जीवन में प्राण ....


मैं किसान जीविका के साधनों 

मैं धरती मां समस्त प्रकृति का 

पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।


 




 






वीरों का शौर्य ......

*भारत माता का गौरव 

वीरों का शौर्य*

*भारत की आज़ादी नहीं इतनी सस्ती

बलिदान हुए हैं असंख्य शहीदों की हस्ती*


*असंख्य सपूतों के बलिदानों की

आहूतियों का सिंदूर भारत माता के  

को भेंट चढ़ा है तब जाकर स्वतंत्र हुआ है*


*अखंड सुहागन सिंदूर मस्तक पर 

रक्षा प्रहरी बन खड़े ‌सीमाओं पर 

भारत माता के लाल जांबाज .......


भारत माता के सिर का ताज‌ 

उत्तर में अडिग अनन्त हिम-आलय 

हिमराज ......


हंसते -खेलते बच्चों की क्रीड़ा में 

      अदृश्य

सिसकती सिसकियों की पीढ़ा 

सूने पड़े असंख्य परिवारों के आंगन 

कहते बिछड़न का दर्द ....



*भारत माता के सिर का ताज 

सिंह दहाड़ वीरांगना जांबाज

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 

अमर प्रेरणा भारत का सम्मान ......


मध्य भारत का विशाल ह्रदय 

फहराता विजय पताकाओं का साम्राज्य ......


राजस्थान की शौर्य गाथा 

देवी पद्मावती पूजनीय माता.....


इतिहास गवाह है मातृभूमि की 

पीढ़ा समाहित अनन्त अद्वितीय

अडिग किलों में जो रक्षा को करें बैठे 

अति उत्तम अमर प्रयास .....


सिंह दहाड़ चीर पहाड़ 

वीर शिवाजी ‌राना सांगा  

ताना जी के शौर्य गाथाओं ‌ 

का भारत ...... 

दक्षिण में कन्या कुमारी 

का गौरव देव तुल्य पूजनीय भारत माता

असंख्य भारत माता के लाल

 बलिदानों 

 आहूतियों का सिंदूर भारत माता के 

का भेंट चढ़ा है ।

सुशोभित हो रहा है 

यह आजादी इतनी सस्ती नहीं  

भारत माता की अखंडता 

भारत माता की स्वतंत्रता को 

खण्ड खण्ड हुए असंख्य बलिदानों का 








अच्छा सोचने की आदत डालें

"आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें
मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें"
" माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है
   और गन्दगी भी बहुत है ।

 तो इसका मतलब क्या ? हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?  

    जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।

 बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच , अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें‌ और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।

 अपनी सोच और अपने विचारों को‌ को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराई यों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें। 

नज़रों का खेल है सारा 
दुनियां में अच्छाई भी है 
बुराई भी , किन्तु मनुष्य की
विडम्बना तो देखो .
कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया
वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है 
अनेकों खूबियों के बावजूद 
एक बुराई ग़लत सोचने को‌ विवश 
कर देती है ।
बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है
या यूं कहिए किसी और की होती है 
और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के 
बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही
गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है ।





आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...