"माना कि आज नफ़रत
प्रेम पर भारी है
परंतु नफ़रत की तो सिर्फ
कंटीली झाड़ियां हैं
प्रेम तो वो शाश्वत बीज है
जो किसी भी मनुष्य का
आंतरिक स्वभाव है *
"माना की आज नफ़रत के
आतंक ने तांडव मचा रखा है
ये तो सिर्फ आंधियां हैं
प्रेम की जड़ों की पकड़
धरती पर गहरी हैं
हम तो सूर्य का वो तेज़ हैं
जिसके आगे किसी की भी
कोई बिसात नहीं
प्रेम पर भारी है
परंतु नफ़रत की तो सिर्फ
कंटीली झाड़ियां हैं
प्रेम तो वो शाश्वत बीज है
जो किसी भी मनुष्य का
आंतरिक स्वभाव है *
"माना की आज नफ़रत के
आतंक ने तांडव मचा रखा है
ये तो सिर्फ आंधियां हैं
प्रेम की जड़ों की पकड़
धरती पर गहरी हैं
हम तो सूर्य का वो तेज़ हैं
जिसके आगे किसी की भी
कोई बिसात नहीं