*लक्ष्य *

विचारों में पवित्रता
वाणी में नम्रता
स्वभाव में सौम्यता
कर्मों में श्रेष्ठता और सत्यता
हो तो सफलता निश्चित होती है
ना किसी से ईर्ष्या ,ना द्वेष
ना किसी से प्रतिस्पर्धा
मंजिल की ओर बढते क़दम
राह में चाहे बधायें हो अनेक
नदिया के बहाव की तरह
अपनी राहें बनता चल
तू थकना ना मुसाफ़िर
निगाहों में रख तेरी मंजिल का
रास्ता देख .....
निराशा,हताशा तेरी राह के रोड़े बन
तुझे करेंगे निरुत्साहित इन रोड़ों
से मत घबराना ,मंजिल की ओर बढते जाना
प्रतिस्पर्धा कर स्वयं से
हर दिन एक नया क़दम अग्रसरता की ओर
आत्म केंद्रित हो अपना केंद्रबिंदु रख लक्ष्य की ओर.....

चंद्रमा ,चांदनी और सरिता

चन्द्रमा ,चांदनी और सरिता 
एक कवि का मन रचने लगा कविता 
दिव्य अलौकिक प्रकृति की रचना
मेरे शब्दों में ना समा पाए ए प्रकृति
तेरी सहज ,निर्मल ,अद्वितीय सुंदरता 
गंगा की अमृत मयी जलधारा
चन्द्रमा की चांदनी में चांदी सा 
चमचमाती गंगा की  निर्मल अमिय जलधारा 
वाह प्रकृति का सुन्दर मिलन अद्भुत ,अतुलनीय 
अलौकिक अकल्पनीय ।



प्रकृति ने स्वयं के श्रृंगार की भी
क्या खूब अनुपम व्यवस्था की है
रंग-बिरंगे पुष्पों से धरती मां का
आंचल भर दिया है ,मानों धरती मां को
रंग बिरंगे पुष्पों वाली चुनरिया ही उड़ा दी हो
गुलाब, चंपा ,चमेली गेंदा आदि अनेक पुष्पों की
सुगंधी ,वाह इत्र की भी पूर्ण व्यवस्था
वृक्षों की लताएं मानों जुल्फें बनकर लहरा रही हों
फलों से लदे वृक्ष मानों बूटी वाली झालर
पक्षियों की सुमधुर कुंके कानों में रस घोलती
अनगिनत वाद्य साधनों की प्राकृतिक
सौम्य सुमधुर धुन
मन मोहिनी कोयल की मीठी बोली वाह क्या
मानों प्रकृति ने अपने संगीत की भी पूर्ण
व्यवस्था की हो
बहुत खूब हैं प्रकृति तेरे भी गुण
क्या खूब किया है तुमने
धरती मां का श्रंगार
सौम्य चंचल ,मनमोहनी प्रकृति तेरे रूप को देख मैंने तेरा नाम रख दिया मनमोहनी



तकदीर



सजदा


*अनुभव*

अनुभव ना होते तो
आज मैं जो हूं ,वो ना होता
अनुभवों ने मुझे
जीने की कला सिखाई
अब मैं भी माहिर हो गया हूं
अपना हर कदम
अपने अनुभव के आधार
पर उठता हूं ,ऐसा भी नहीं की
मैं कुछ ज्यादा जानता हूं
मैंने अपनी गलतियों से ठोकरें
बहुत खायी हैं ,अब संभला हूं तो
अनुभव हुआ , इसी लिए
कहता हूं अनुभव इंसान का सबसे
बड़ा मित्र है, कोई भी इंसान सीखने
या सीखाने से इतना नहीं सीख पाता
जितना वो अपने अनुभवों से सीखता है
इसलिए कहते हैं अनुभव होना जरूरी है
चलो तो सही एक बच्चा भी गिर-गिर कर ही
संभलना सीखता है ।

                                           



**उम्मीद **

जहां तक बात उम्मीद की है
मेरी मानना है की किसी से भी उम्मीद ना ही रखी जाए तो अच्छा है क्योंकि जब किसी से उम्मीद रखते हैं और वो उम्मीद पूरी नहीं होती या अमुक व्यक्ति हमारी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो हमें दुःख होता है ,हम स्वयं तो दुःखी होते हैं और अमुक व्यक्ति को भी बुरा कहते हैं ।
हां हो सकता है अमुक व्यक्ति ने आपसे वादा किया था और वो आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो थोड़ा सोचने वाली बात है ....परंतु यहां भी नुकसान अपना ही है ,सोच -सोच कर हम स्वयं को ही मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं ।
परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को सोचने -समझने की शक्ति दी है जिस शक्ति का हम स्वेच्छा से अपनी सामर्थ्य अनुसार भला -बुरे के विवेक के अनुसार उपयोग कर सकते हैं ।
उम्मीद रखिए स्वयं से ,स्वयं के मनोबल से .....
अपनी योग्यता ,और परिश्रम को इतना योग्य बनाइए कि आपको किसी से उम्मीद की आ -वश्यकता ही ना पड़े ।
मान लीजिए आपको नदी के उस पार जाना है तो आप उम्मीद करें कि ये नदी का जल कुछ देर के लिए ख़तम हो जाए या नदी ही हट जाए तो ये तो होने वाला नहीं है यानि ये उम्मीद ही करनी बेकार है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...