"*वसुन्धरा**

वसुन्धरा**
जिस धरती पर मैंने जन्म लिया ,
उस धरा पर मेरा छोटा सा घर
मेरे सपनों से बड़ा ।।
बड़े -बड़े अविष्कारों की साक्षी वसुन्धरा
ओद्योगिक व्यवसायों से पनपती वसुन्धरा ।

पुकार रही है वसुन्धरा
,कराह रही है वसुन्धरा ।

देखो तुमने ये मेरा क्या हाल किया
मेरा प्राकृतिक सौन्दर्य ही बिगाड़ दिया ।

हवाओं में तुमने ज़हर भरा
में थर-थर कॉप रही हूँ वसुन्धरा
अपने ही विनाश को तुमने मेरे

दामन में फौलाद भरा
तू भूल गया है ,ऐ मानव

मैंने तुझे रहने को दी थी धरा ।
तू कर रहा है मेरे साथ जुल्म बड़ा

मेरे सीने में दौड़ा -दौड़ा कर पहिया
मेरा आँचल छलनी किया ।

मै हूँ तुम्हारी वसुन्धरा
मेरा जीवन फिर से कर दो हरा -भरा

उन्नत्ति के नाम पर धरा पर है प्रदूषण भरा
जरा सम्भल कर ऐ मानव प्राकृतिक साधनों का तू कर उपयोग जरा
तुमने ही मेरा धरती माता नाम धरा
ये तुम्हारी ही माँ की आवाज है ,सुन तो जरा ।।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...