श्रमिक किसान

मैं श्रमिक किसान

लोग मुझे देते सम्मान

कहते अन्नदाता भगवान ......


कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म 

कृषि मेरा कर्म ....


प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं

अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म 

नहीं भाता मुझे उत्पाद 

क्यों बनूं मैं उपद्रवी 

मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना 

फसल कीमती पोष्टिक 

कनक,धान ,फल और सब्जी....


धरती माता की समृद्धि देख 

मन हर्षाता ....


नन्हें बीज खेतों में बोता 

प्रकृति मां से अनूकूल 

वातावरण को प्रार्थना करता 

अपनी कर्मठता एवं श्रम से 

अच्छी फसल जब पाता 

मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।


मैं श्रमिक किसान धरती हो 

समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान 

मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है 

जीवन में प्राण ....


मैं किसान जीविका के साधनों 

मैं धरती मां समस्त प्रकृति का 

पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।


 




 






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...