जरा सोचिए ...

इतने दिनों से मैं तेरी परिक्षाओं के कारण घर में कैद हूं कई जरुरी काम रुके हुए हैं मेरे ......
बेटी अपनी मां से.... मां आप बताओ परीक्षा में मेरी थी या आपकी .......
मां बेटी से ,माना की परीक्षाएं तुम्हारी थी , किन्तु मेरी भी परीक्षाएं ही थी ।
बेटी ,वो कैसे ?
मां बेटी से , अच्छा बेटा जी , परीक्षाओं के समय तुम्हें सब कुछ एक जगह बैठे बिठाए कौन देता था , थोड़ी भी देर मैं ‌इधर उधर जाती तो तुम मुझे पुकारने लगती । तुम्हारा पूरा ध्यान तुम्हारी पढ़ाई पर हो इसलिए मैं यही रही तुम्हारी सेवा में हाजिर ।
बेटी ,अपनी मां से ओ मां तुम कितनी अच्छी हो .....
मां अच्छा चल अब ज्यादा मक्खन ना लगा । पहले मैं बाज़ार जाऊंगी , फिर मीना मौसी के यहां कब से नहीं आती उससे मिलने हम ही तो हैं उसके अपने .....
बेटी मां से ,बेचारी मीना मौसी कितने अच्छे परिवार में की थी उनके मां बापू ने उनकी शादी ,‌पर शादी जो आप लोगो के लिए सब कुछ है ,आज मीना मौसी ,कल किसी और के साथ भी कुछ भी हो सकता है , इससे अच्छा तो अगर उनके माता-पिता उन्हें पढ़ा लिखा कर कोई काम करने देते यानि वो कोई अपना काम या सर्विस कर रही होती तो उन्हें इस तरह अकेले पन और मोहताज गी की जिंदगी ना झेलनी पड़ती ।
मां निशब्द थी मानों आंखों ही आंखों में कह गयी थी जी लेना बेटी तू अपनी मन मर्जी से ....
 

मुख्य अतिथि


शीर्षक "मुख्य अतिथि"आज का दिन विशेष था ,सभी होनहार विद्यार्थियों के मन में विशेष उत्साह था "                  

   पुरस्कार समारोह का आयोजन था ,सभ्य,शालीन सुव्यवस्था ,गेंदें के फूलों की सजावट यकायक मन मोह रही थी, सुन्दर रंगों के सामंजस्य से सजी रंगोली वातावरण में सकारात्मक ऊर्जा के प्रवाह कर रही थी ।                       सभी के चेहरों पर एक तेज़ था ,तेज़ नये सपनों का नए जीवन की नई परिभाषाओं को लिखने का ।             सभी व्यवस्था ,व्यवस्थित थी अब इंतजार था तो बस मुख्य अथिति का जिन्होंने पुरस्कार प्रदान करना था ।  सभी विद्यार्थियों के चेहरों में खुशी की एक झलक थी , जो मानों कह रही थी उनकी लगन और परिश्रम की एक नई कहानी ,की आगे आने वाले भविष्य के सुनहरे सपनों की बागडोर अब हमारे हाथों में है हम बनायेंगे नये युग का नया जहां।

अचानक से हाल के सब लोग शिष्टाचार दिखाते हुए शांत हो गए , कुछ वरिष्ठ कार्यकर्ता हाथों मे पुष्प मालाएं लिए मुख्य द्वार की और बडे़ ,मुख्य अतिथि का आगमन हो गया था । मुख्य अतिथि के हाल में प्रवेश करते ही सब लोग खड़े हो गए और तालियां बजाकर उनका स्वागत किया गया ।                                                           समारोह का प्रारम्भ सरस्वती वन्दना से किया गया , उसके बाद बच्चों ने कई रंगा-रंग कार्यक्रम प्रस्तुत किए गए ।     पुरस्कार वितरण का समय था , एक -एक करके प्रतिभावान विद्यार्थियों को पुरस्कार दिए जा रहे थे ।   अब समय था, मुख्य अतिथि के स्वागत में कुछ कहने का समय था सबने एक से बढ़कर एक कहा।

  अब समय था मुख्य अथिति द्वारा एक अनोखी प्रतियोगिता का ।

 जिसमें उन्होंने एक आठ साल के बच्चे को, और एक पंद्रह साल के बच्चे को अपने पास स्टेज पर बुलाया और उन्होंने उन दोनो बच्चो एक आठ साल का बच्चा  नाम जागृत और एक पन्द्रह साल का नाम राहुल उन दोनो के कान में धीरे से कुछ कहा, और वो दोनो बच्चे स्टेज से उतर गए , हाल में बैठें सभी लोगों की नजरें उन बच्चों को देखने लगी की आख़िर ये दोनों बच्चे स्टेज से नीचे उतर कर जा कहां रहें हैं । 

  अचानक हाल में शान्ति छा गई , आख़िर इस पंद्रह साल के लड़के राघव ने एक दूसरे लड़के को जो उसी लड़के के साथ पड़ता था, खींच कर दो थप्पड़ मार दिये सब लोग हैरान थे आखिर ऐसा क्या हुआ होगा या मुख्य अतिथि ने ऐसा कहा, अगर उन्होंने ऐसा करने को कहा तो बहुत गलत कहा । और वह पंद्रह साल का लड़का स्टेज की ओर चल दिया । 

अब सब की नजरें उस आठ साल के बच्चे जागृत पर थी की वो क्या करेगा , सब लोग डर रहे थे की अगर इसने भी किसी को थप्पड़ मारे तो यह तो छोटा है कोई पलट कर इसे भी मार देगा , इन्तजार था सबको क्या होता है, तभी वह आठ साल का बालक जागृत अपने सहपाठी के पास जाकर खड़ा हो गया , सभी लोग डर रहे थे ,की अचानक एक ऐसा दृश्य देखने को मिला की सबकी आंखें नम हो गई सब भाव विभोर हो गए , उस आठ  साल के बच्चे जागृत ने अपने सहपाठी  के गाल पर प्यार किया और उसे प्यार से गले लगा लिया, दृश्य बहुत भाव विभोर था, इसके पीछे का रहस्य तो मुख्य अतिथि या फिर वो बच्चे ही जानते थे । फ़िर दोनों बच्चे वापिस स्टेज पर पहुंच गए ।  

अब बारी थी , इस अनोखी प्रतियोगिता के परिणाम की । मुख्य अथिति को परिणाम घोषित करना था, वो बोलने लगे मैंने इन दोनों बच्चो को धीरे से एक ही बात कही थी की , इस हाल में बैठा तुम्हारा कोई मित्र जो तुम्हे हर पल तंग करता हो ,और तुम्हारा उससे बिना बात पर झगड़ा होता हो, उससे आज अपने दिल की बात कह कर आओ जैसे इच्छा हो तुम उसे समझा कर आओ की वो तुम्हें आगे से तंग ना करे।

अब आप बताएं किस का तरीका आपको सबसे अच्छा लगा, सभी उस छोटे आठ साल के बच्चे जागृत का नाम लेने लगे । मुख्य अथिति ने उस आठ साल के बच्चे जागृत को सम्मान पूर्वक अपनी कुर्सी पर बिठाया ,और कहा आज का मुख्य अतिथि यह बच्चा है, इस बच्चे के मन में कोई मैल नहीं है हम सब का मन भी इस बच्चे की तरह हो ना चाहिए । 

जैसे - जैसे हम बड़े होते जाते हैं हमारे मनों में विकार रूपी मैल इक्कट्ठे होते जाते हैं , हम सब को चाहिए की हम सब भले ही उम्र में कितने भी बड़े कयों ना हो जाएं , हमारे मन का बच्चा नहीं मरना चाहिए जो हमें वैर भाव ईर्ष्या , द्वेष से दूर रखता है।                     और हिंसा से तो हिंसा ही जन्म है ।  मन की कोमल सच्ची भावनाओं  से बड़ा कोई धन नहीं यह अनमोल है । 

 अतः आज के नन्हें मुख्य अथिति एवम्  विजेता जागृत का स्वागत करिए आप सब लोग.... तालियों के शोर से सारा हाल गूंज रहा था , नन्हें मुख्य अतिथि जागृत ने आज सच मे बहुत बड़ी सीख दी थी सबको की निस्वार्थ प्रेम ही वास्तव में मनुष्य की सबसे बड़ी पूंजी है ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...