प्रार्थना दुखों का अब अंत करो

हे सृष्टिकर्ता शिव शक्ति परमात्मा 

धरती पर तुमने हमें जीने का अधिकार दिया

धरती का हाल हमने बुरा किया 

कर्मों का है खाता बढ़ा, धर्म के नाम पर 

बहुत पाखंड किया इंसानियत को भूलकर 

हैवानियत का संग किया, स्वार्थ में अंधे 

हुए हम ,परमार्थ ना कोई कर्म किया 

भक्ति दो,शक्ति दो, कष्टों से अब मुक्ति दो 

हे नीलकंठ, प्राणियों को स्वस्थ जीवन 

का वरदान दो प्राणी हैं हम तेरे,बालक नादान 

बनकर अंजान कर बैठे हैं कर्म जैसे हों शैतान 

क्षमा करो अपराध हम सब की पुकार सुनो  

परमात्मा,हम सब हैं तुम्हारी ही आत्मा, 

धरती पर फैला है कहर 

सांसों में घुल रहा है जहर,मनुष्य मर रहा है 

दम घुट-घुट कर, प्राण वायु को अब स्वच्छ करो 

हवाओं में फैले विष का अब अंत करो 

हे नीलकंठ, प्राणियों को दो स्वस्थ जीवन 

का वरदान हम सब हैं आपकी संतान ।

भटके हुओं को सही राह दिखाओ  

पाप कर्मों से हमें मुक्ति दिलाओ 

राह सही चले भलाई के कर्म करें 

एसी राह दिखाओ,शक्ति का वरदान दो भक्ति दो , 

पापों से मुक्ति दो स्वास्थ्य धन के

जीवन को मंत्र दो, बुद्धि की शुद्धि 

का महादान दो ,भला करे और सोचें सभी का भला

जन की शुभ भावना का प्रसाद दो‌ पवित्रता के

महासागर का अमृत मनुष्यों की मन, बुद्धि, वाणी और 

कर्मों में भरपूर भरो ,से सृष्टिकर्ता नीलकंठ परमात्मा 

दुखों का अब करो खात्मा मनुष्य जाति सह रही है यातना 

हम सब प्राणी हाथ जोड़ ह्रदय से करें यह प्रार्थना 

स्वीकार करो हम सब की प्रार्थना ।।।।।






भक्ति दो

आत्मा में शुद्ध बुद्धि का वास हो 

 शान्ती का 

वर

सन्नाटा भागती दौड़ती 

सड़कों पर छायी है उदासी 


हौसलों के दीपक  

सदा अपने संग रखो 

मुश्किलों का तूफान कब 

आंधियां बनकर आ जाये  

उम्मीदों ‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌‌के आसमां संग रखो ।   

मुश्किलों की घड़ी है 

हौसलों के दीप उजागर 

करने की अवधि आन पड़ी है ।


तूफानों की रफ्तार तेज है 

सम्भल कर रहने की जरूरत 

आन पड़ी है ।


हवाओं में जिवाणुओ 

के जहर का कहर 

थोड़ा रुक जाने की 

सतर्कता से रहने की 

जरूरत आन पड़ी है ।



मैं तो सदा से अपने संग 

शुभ आशाओं का एक दीप 

लेकर चलता हूं , उम्मीद की 

नयी किरणों के प्रकाश से 

अंधेरों को दूर करता हूं 

  

सकारात्मक सोच की 

इंसानियत के चिराग 

माना की अंधेरा बड़ा 

अंधेरा है एक दिन तो 

होना अवश्य सवेरा है 

सवेरे में काली घटाऐं हैं 

उजाले पर भी कुछ आशायें है

एक दीप आशा का एक दीप उम्मीद का 

संग लेकर चलता हूं अंधेरे में हैं जो 

उनके लिए आशा की किरण बनाता हूं 

अंधेरा यानि विश्राम भी तो होता है


 





क्यों रोता है मानव अंधेरे को क्यों कोसता है 

अंधेरा यानि विश्राम की रात्रि आयी है 

रात्रि में सतर्कता के गुणों की भरपाई है   

रात्रि का अंधकार पश्चाताप की 

पीड़ा को कम करने की गहराई है 

हर रात के बाद सवेरे की घड़ी आयी है 

आज तबाही का मंजर देख आंसुओं से 

अपना दामन भीगोता है 

भूल को सुधार यह तेरे ही

 कर्मों का लेखा-जोखा है 

सम्भल जा अभी भी ए मानव,

 वही पायेगा जो तूने रौपा है

हारना नहीं हराना है 

माना की मुश्किलें भी बड़ी हैं 

किन्तु हमारे हौसलों के आगे 

पर्वतों की चोटियां भी झुकी हैं 

एक वाईरस ने तबाही मचाई है ।

लगता है राक्षस योनि फिर से 

जीवंत हो आयी है ।्

सम्भल जा अभी भी ए मानव , 

वहीं पायेगा जो तूने रौपाहै ।




अमृत कुंभ

ध्यान-योग की पवित्र स्थली

शुभ कर्म जो, गंगा मैय्या की 

शरण मिली, महाकुंभ में 

आलौकिक स्वर्ग स्वरूपणी 

ऋषिकेश त्रिवेणी संगम की गंगा घाट की 

अद्वितीय छवि अन्नत,अथाह ,अविरल 

अमृतमयी जल धारा का विहंगम दृश्य

अमृत का कुम्भ पवित्र करो वाणी

गंगा मैय्या के जयकारों से तुम

तन-मन की पवित्रता का महान संयोग

मिटाने को पाप कर्मों के भोग ....

भाग्यवान हैं, उत्तम बना है संयोग 

भक्ति रस से सरोबार ,गूंजते शंखनाद

ऋषिकेश त्रिवेणी हर-हर गंगे के जाप

अमृतमयी जलधारा का अमृत

करने को तत्पर है तन मन को पवित्र
अमृत कलश में भर लो गंगाजल
सुलझ जायेगे जीवन के सभी प्रश्नों के हल  ... हर - हर गंगे जय मां गंगे 🙏🙏🙏🙏



 

दिव्य अर्क



मिलन समारोह का 
शुभारंभ धरा अम्बर 
मध्य दिवाकर भोर लालिमा मनभावन










सुप्रभात,नव प्रभात 
नव आगमन 
बाल मन,बन नाचे 
मयूर सम, हर्षित स्वप्न 
प्रतीत प्राप्त शुभ रत्न  
स्वर्ण सम कान्तिमय 
उदित सूर्य प्रभात बेला, 
कहे, अब तो जागो  
दस्तक दे रहा है नया 
सवेरा,स्वर्णिम किरणों 
का सजा है रेला
नये दौर का नया मोड़ है 
निराश दिलों में जगी 
है एक नव आशाऐं 
जीवन की रचने को 
नयी परिभाषाएं नया 
केनवास इच्छित रंगों से
आकार बनाओ जीवन को 
मन भावन रंगों से सजाओ 
मिलन समारोह में शामिल
कोमल कोंपलों की लताऐं 
संग अपने नयी शाखाएं 
सुख-समृद्धि की जागृत 
हो रही हैं नव नूतन अभिलाषाऐं ।।





मेरा आशियाना


 निकला जाता हूं अक्सर 

घर से कहीं दूर दिल को बहलाने को

कुछ पल सूकून के पाने को 

दुनिया भर के झंझटों से आजाद हो जाने को

बेफिक्र परिंदा बन आकाश की 

ऊंचाइयों में उड़ जाने को ...

शाम होते ही लौट आता हूं अपने 

आशियाने को, सादे भोजन से तृप्ति पाता हूं 

रख कर सिर लुढ़क जाता हूं खटिया पर रखे सिरहाने पर 

शायद भटक -भटक कर थक जाता हूं 

और समझ जाता हूं अपने आशियाने और 

अपनों के जैसा अपनत्व कहीं नहीं जमाने में 

लाखों की भीड़ है ज़माने में बहुत कुछ आकर्षक

है देखने को दिल बहलाने को 

किन्तु अपनों के जैसा अपनत्व नहीं जमाने में 

मुझे मेरे अपने मिलते हैं मेरे आशियाने में 

खट्टी मीठी एहसास कराने को संरक्षण पाने को ।


  


 

अमृत धारा

श्रद्धा से मेरे दर पर आ कर तो देखो ‌ 

तन के संग मन के समस्त मैल धुल जायेंगे 

सब द्वंद संग बहा ले जाती ‌हूं 

एक ही पल में नव निर्मल धारा 

का आगमन नये आने वाले समय का

आगाज ‌मैं मुक्ति की पवित्रता की बहती धार...

रोक ना सकोगे , मैं बहती जलधार हूं 

प्रकृति की रफ्तार हूं

मैं तरल,सरल, निर्मल हूं 

वसुन्धरा का प्यार हूं दुलार हूं 

आंचल में धरती मां के समाती 

धरा अम्बर का समर्पित प्यार हूं 


बहना आगे की और बढ़ना 

मेरी नियति,बस करो बांध बनाना मुझपर

मेरी फितरत को नहीं बदल सकोगे जानते भी हो 

मुझमें निहित शीतलता में विद्युत तरंगों का तेज भी है 

शीतल हूं , तो जलनशील भी हूं लहरों के उतार-चढ़ाव संग 

सम्भलना भी सीखो ए मानव ,हर बार मैं ही क्यों 

कुछ तुम भी तो बदलो ए मानव .....

 


आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...