अमृत धारा

श्रद्धा से मेरे दर पर आ कर तो देखो ‌ 

तन के संग मन के समस्त मैल धुल जायेंगे 

सब द्वंद संग बहा ले जाती ‌हूं 

एक ही पल में नव निर्मल धारा 

का आगमन नये आने वाले समय का

आगाज ‌मैं मुक्ति की पवित्रता की बहती धार...

रोक ना सकोगे , मैं बहती जलधार हूं 

प्रकृति की रफ्तार हूं

मैं तरल,सरल, निर्मल हूं 

वसुन्धरा का प्यार हूं दुलार हूं 

आंचल में धरती मां के समाती 

धरा अम्बर का समर्पित प्यार हूं 


बहना आगे की और बढ़ना 

मेरी नियति,बस करो बांध बनाना मुझपर

मेरी फितरत को नहीं बदल सकोगे जानते भी हो 

मुझमें निहित शीतलता में विद्युत तरंगों का तेज भी है 

शीतल हूं , तो जलनशील भी हूं लहरों के उतार-चढ़ाव संग 

सम्भलना भी सीखो ए मानव ,हर बार मैं ही क्यों 

कुछ तुम भी तो बदलो ए मानव .....

 


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