"अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल "


अपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल “

दुनियाँ की भीड़ संग चल रहा था ,
भीड़ अच्छी भी लग रही थी ,
क्योंकि दुनियाँ की भीड़ मुझे हर पल कई नए  पाठ पड़ा रही थी,
किरदार बदल -बदल कर ,दुनियाँ की रफ़्तार संग चलना सिखा रही थी ।
माना की , मैं भी सब जैसा ही था ,
नहीं था ,मुझमे कुछ विशिष्ट ,
यूँ तो चाह थी , मेरी दूनियाँ संग चलूँ , दूनियाँके रंग में रंगूँ ,
फिर भी , मैं दुनियाँ की भीड़ में कुछ अलग दिखूँ
मेरे इस विचार ने मुझमे इंसानियत के दीपक को जला दिया
असभ्यता,  अभद्रता  के काँटों को हटाकर
शुभ और सभ्य विचारों का बगीचा सजा दिया ,
मेरे विचारों की ज़िद्द ने ,मुझे सलीखे से चलना सिखा दिया
जमाने की भीड़ में रहकर , मुझे भीड़ में अलग दिखना सिखा दिया ।
बस अब ,अपनत्व की बीज बोता हूँ ,  नफरत की झाडियाँ काटता हूँ

प्रेम ,प्यार की ,फसल उगाता हूँ।।।।।।।।।।।




"माँ आदि शक्ति "

भारत देश एक ऐसा देश है, जहाँ  दिव्यशक्ति जो इस सृष्टि का रचियता है,विभिन्न अवतारों रूपों में आराधना की जाती है । परमात्मा के विभिन्न अवतारों के कोई ना कोई कारण अवश्य है ,जब -जब  भक्त परमात्मा को पुकारतें हैं ,धरती पर पाप और अत्याचार अत्यधिक हो जाता तब परमात्मा अवतार लेते हैं और धरती को पाप मुक्त करतें है।  हमारे यहाँ जगदम्बा के नवरात्रे की भी बड़ी महिमा है  ,जगह -जगह जय माता दी ,के जयकारे ,माता के जागरण चौकी ,माता की भेंटों से गूंजते मंदिर ........पवित्र वातावरण
सजे धजे मंदिर मातारानी का अद्भुत श्रृंगार लाल चुनरिया लाल चोला, लाल चूड़ियाँ ,निहार माँ के लाल होते है ,निहाल ।
माँ का इतना सूंदर भव्य स्वागत ये हमारा देश भारत ही है ,जहाँ माँ का स्थान सबसे ऊँचा  है ,फिर चाहे वो धरती पर  जन्म देने वाली माँ हो ,या जगत जननी , क्यों न हो वो एक माँ ही तो है ,जो दृश्य या अदृशय रूप से अपनी संतानो का भला  ही करती है ।
कहतें हैं ,धरती पर जब पाप और अत्याचार ने अपनी सीमायें तोड़ दी थी ,साधू सज्जन लोग अत्यचार का शिकार होने लगे  थे,चारों और अधर्म ही अधर्म होने लगता था,तब शक्ति ने  अधर्म का नाश करने के लिए और धर्म की रक्षा के लिए धरती पर अवतार लिया था, पापियों और राक्षसों का अंत किया,और फिर से धर्म  की स्थापना की ,राक्षसों का अंत करने के लिए माँ को कई  रूप धारण करने पढे ,माँ गौरी ,माँ दुर्गा , अम्बे ,माँ काली आदि माँ आदिशक्ति कई नामो जानी जाती है ।
  माँ  अन्नपूंर्णा बन अपनी संतानों का पालन पोषण करती है , तो कभीमाँ  सरस्वती का रूप धारण कर अपनी संतानों में ज्ञान के बीज बोती है, तो वहीँ लक्ष्मी बन जगत को सुख समृद्धि प्रदान करती है।
माँ हमेशा से पूजनीय है , नवरात्रों में देवी की पूजा का विशेष महत्व है , नवरात्रों  में गुजरात में गरबा का विशेष महत्त्व है । कोल्कता में  काली माँ की पूजा ,बंगाली समुदाय द्वारा काली पूजा  बड़े ही पाराम्परिक ढंग से व् श्रद्धा से की जाती है ।
हमें जन्म देने वाली.माँ को भी हमें उतना ही सम्मान देना चाहिए ,क्योंकि धरती पर सर्वप्रथम माँ ने ही हमें समर्थ बनाया ।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...