अअपनत्व के बीज ,प्रेम प्यार की फसल “
आपकी प्रतिक्रिया
दुनियाँ की भीड़ संग चल रहा था ,
भीड़ अच्छी भी लग रही थी ,
क्योंकि दुनियाँ की भीड़ मुझे हर पल कई नए पाठ पड़ा रही थी,
किरदार बदल -बदल कर ,दुनियाँ की रफ़्तार संग चलना सिखा रही थी ।
माना की , मैं भी सब जैसा ही था ,
नहीं था ,मुझमे कुछ विशिष्ट ,
यूँ तो चाह थी , मेरी दूनियाँ संग चलूँ , दूनियाँके रंग में रंगूँ ,
फिर भी , मैं दुनियाँ की भीड़ में कुछ अलग दिखूँ
मेरे इस विचार ने मुझमे इंसानियत के दीपक को जला दिया
असभ्यता, अभद्रता के काँटों को हटाकर
शुभ और सभ्य विचारों का बगीचा सजा दिया ,
मेरे विचारों की ज़िद्द ने ,मुझे सलीखे से चलना सिखा दिया
जमाने की भीड़ में रहकर , मुझे भीड़ में अलग दिखना सिखा दिया ।
बस अब ,अपनत्व की बीज बोता हूँ , नफरत की झाडियाँ काटता हूँ