'' अग्निकुंड ''   
                                                                                                                      

  क्रोध यानि उत्तेजना ,क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु है।
 क्रोध करने वाला स्वयं के लिए अग्नि-कुंड बनाता है ,और उस अग्नि में सवयं को धीरे -धीरे जलाता है। कुछ लोग मानते हैं
 कि ,क्रोध उनका हथियार है ,सब उनसे डरते हैं ,उनकी ईज्जत करते हैं।
परन्तु क्रोधी स्व्भाव का व्यक्ति यह नहीं जानता कि जो लोग उसके  सामने आँखे नीची करके बात करते हैं ,जी -हजूरी करते हैं वह सब दिखावा है
। वास्तव में वह  क्रोधी व्यक्ति कि इज्ज़त नहीं करते ,पीठ पीछे
 क्रोधी व्यक्ति को खडूस ,नकचढ़ा ,एटमबम ,इत्यादि ना जाने क्या -क्या नाम   देते है। इसके विपरीत सीधे सरल लोगों के प्रति सम भाव रखते हैं।

आज के मानव ने सवयं के आगे पीछे बहुत  कूड़ा -करकट इ क्क्ठा कर रखा है। सवयं के बारे में सोचने का आज के मानव के  पास समय ही नहीं है।  वास्तव में मानव को यह ज्ञात ही नहीं या यूँ कहिए कि ,उसे ज्ञात ही नहीं कि वास्तव में वह चाहता क्या है। 
क्यों कहाँ कैसे किसलिए  वह जी रहा है
। सामाजिक क्रिया -कलापों में सवयं को बुरी तरह जकड़ कर रखा है। बस करना है  ,चाहे रास्ता पतन कि और क्यों न ले जाए।  
 क्योंकि सब चल रहे हैं इसलिए मुझे भी चलना है जहां तक और लोग पहुंचे आज के मानव को भी पहुँचना ही है वह तरक्की करना चाहता है परन्तु सही ढंग और सही रास्ता नहीं मालूम नहीं ,किसी भी तरह मंजिल कि और बड़े जा रहा है मंजिल मिले या न मिले। 

तरक्की पाने के लिए आज का मानव सवयं को ईर्ष्या ,द्वेष संशय ,क्रोध लालच वहम इत्ययादी। 

  नकारात्मक विचारों के दल-दल में फंसा रखा है। 
जब हमारे मन कि नहीं होती तब हम धैर्य खो देते है। 
 और फिर हमारे मन में क्रोध उत्त्पन होता है। क्रोध कि अवस्था में क्रोध करने वाले को कुछ नहीं सूझता ,वेह जल रहा होता है ,क्रोध कि अग्नि में ,उसके लिए उचित -अनुचित में भेद कर पाना मुश्किल हो जाता है।

क्रोधी व्यक्ति के मन में नकारात्मक विचारों कि परत च ड़ी होती है।कि उसे सवयं का भला  बुरा नहीं दिखाए देता क्रोधी व्यक्ति का कहना होता है कि ,अमुक व्यक्ति ने मेरा बुरा कर दिया। 
वास्तव में हमारी सोच ही हमारे क्रोध का कारन होती है ,कोई किसी का कुछ नहीं बिगाड़ सकता। 
 हो सकता है कि,किसी वयक्ति के विचार हमारे विचारो से मेल न खाते हों वेह हमारे विचारो के विपरीत परिस्थियाँ उत्त्पन करता हो ,  ऐसे अवस्था में हमें सवयम को समझाना चाहिए। 

किसी दूसरे को बदलना या उसके विचार और वयव्हार से प्रभावित होकर ,क्रोध के वशीभूत होकर हम सवयं का ही नुकसान करते हैं।,जो कि उचित नहीं है। किसी का बुरा आचरण हमें प्रभावित करता है तो हम कमज़ोर।
क्रोध कई बुरे विचारों का जन्मदाता है बुरे विचार किसी का बुरा सोचना, बुरा बोलना,. किसी के प्रति क्रोध करके हम सोचते हैं ,कि हैम उसे सबक सिखा रहे हैं यह हमें भी नहीं समझ नहीं आता वास्तव में तो वेह क्रोध हमें ही सबक सिखा रहा होता है।


हमारा मानसिक सन्तुलन बिगाड़ रक्त-चाप बड़ा देता है।   क्रोध के वशीभूत होकर हम कई नकारात्मक विचारो  का ऐसा जाल बुन लेते है  ,और वह विचार  हमें  अच्छासोचने ही नहीं देते  ,नई -नई विधियाँ  नए -नए विचार  नकारात्मक क्रोध कि  अवस्था में हमारे मन में पनपने लगते हैं
जिन्हे हम  अपना हथियार  समझ रहे होते है

क्रोधी वयक्ति इस जाल में इतनी बुरी तरह फँसा होता है कि वेह उस जाल से निकलना भी चाहता तो निकल नहीं पाता  वह उसके स्व्भाव  का एक हिस्सा  बन जाता है।

अतः उचित यही है कि  क्रोध रूपी अग्नि  को अपने अंदर पनपने ही न दें। क्रोध रुपी हथियार  का जिसका हम स्वयं कि सुरक्षा के लिए उपयोग करते हैं  वह हथियार हमारी स्वयं  कि भी हिंसा कर रहा होता है।

कोई भी  हथियार हिंसा का ही प्रतीक है।  वह हथियार  जो हमें दुश्मनो  से बचने के काम आता है वह हमारे भी हिंसा कर सकता है,  हथियार हिंसा का ही  प्रतीक है।

                 
           ''क्रोध कि अग्नि जो जलाये ,पहले पहल वह  जले दूजे को जलाये ,स्वयं  बुरे विचारों के जाल में फँसे''. 
                                
                                           

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...