**चिराग था फितरत से**

*******चिराग था फितरत से
              जलना मेरी नियति
               मैं जलता रहा पिघलता रहा
               जग में उजाला करता रहा
               मैं होले_होले पिघलता रहा
               जग को रोशन करता रहा *****
               "जब मैं पूजा गया तो ,

                जग मुझसे ही जलने लगा ,
                मैं तो चिराग था ,फितरत से
                मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
                कोई मुझको देख कर जलने लगा
                स्वयं को ही जलाने लगा
                इसमें मेरा क्या कसूर"
               
                **चल बन जा , तू भी चिराग बन
                थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
                का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
                जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा **

16 टिप्‍पणियां:

  1. नमस्ते,

    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरुवार 27 दिसम्बर 2018 को प्रकाशनार्थ 1259 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।

    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  2. धन्यवाद रविन्द्र जी मेरे द्वारा सृजित रचना को पांच लिंकों के आनंद में प्रकाशित करने के लिए ....

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  3. वाह बहुत सुन्दर!
    तूं भी किसी शिवाले की रौनक बनेगा बस दीप बन जलना सीख तो सही

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  4. बहुत ही सुंदर..

    चल बन जा , तू भी चिराग बन
    थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
    का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
    जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा ...बहुत खूब !

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  5. बहुत सुंदर रचना रितु जी... चिराग तो यों भी बेहद प्रेरक प्रतीक है...।

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  6. वाह! स्वयं जलकर दूसरों को आलोकित करने का अद्भुत सन्देश!

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  7. बहुत ही सुन्दर रचना ऋतु जी

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  8. आपकी भावनायें एकदम नि:शब्द कर गयीं ...

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 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...