“आध्यातम और वास्तविकता “

                          “ भक्ति श्रद्धा है , आस्था है ,शुभ भावनायें हैं “
                             भक्ति को अन्धी दौड़ ना बनाये ,परमात्मा तो सर्वत्र है”

 🎉🎉🎉🎉🎉 भारतीय संस्कृति ,विभिन्न रंगों में रंगी ,अद्भुत ,अतुलनीय है ।
                            इन्द्र्ध्नुष के रंगो में रंगा ,विभिन्न संस्कृतियाँ भिन्न -भिन्न रूप -रंगो से रंगे प्रत्येक प्रान्त की अपनी एक अलग पहचान है ।
 विभिन्न रूप हैं ,भाषायें अनेक हैं , फिर भी “हम भारतीय एक हैं “
वास्तव में भारत में हर एक प्रान्त अपना जीवन जीता है ,अपने -अपने प्रान्त की अतुलनिय ,अद्भुत छ्टा लिए हर प्रान्त इन्द्रधनुष के रंगो की भाँति भारत में सतरंगी छ्टा बिखेरता है ।
भारतवर्ष प्राचीन काल से ही ,भक्ति प्रधान देश रहा है ।
आस्था उस “परमसत्ता परमात्मा के प्रति पूर्ण समर्पण , विश्वास ...,

 हमारी भारतीय संस्कृति प्राचीन काल से आध्यात्मिक रहस्यों से प्रेरित है ,और इसका प्रमाण हमारे प्राचीन वेद ,ग्रन्थ,पुराण इत्यादि हैं । आध्यात्मिकता के कई गूढ़ रहस्यों को हमारे आध्यात्मिक  गुरुओं ने अपनी तपस्या के प्रताप से जाना है । आध्यात्मिकता के क्षेत्र में आज भी भारतवर्ष को विश्वगुरु का ही स्थान प्राप्त है ।

जैसा कि सब जानते हैं कि भारत धर्म निरपेक्ष देश है , हमारा भारत देश विभिन्न रंगो में सिमटा विभिन्न धर्मों में में रंगा हुआ है । “ धर्म चाहे अनेक हैं , तरीक़े भी भिन्न -भिन्न है ,हमारे ईष्ट देवी -देवता हम भारतियों की आस्था भिन्न -भिन्न प्रान्तों का पूजा ,उपासना करने का तरीक़ा भी भिन्न -भिन्न है ,परंतु मंज़िल सबकी एक है ,उस परम सत्ता से एकीकार होना ।

“कोई भी पूजा -पाठ ,व्रत, नियम इत्यादि किसी भी देश की परिस्थिति ,समय , वातावरण के अनुरूप बने होंगे “
परन्तु हम भारतीय ठहरे भोले भक्त जैसा कि आज कल सावन का महीना चल रहा है शिव भोले बाबा को प्रसन्न करने का महीना , कहते है सावन के मास में जो भगवान  शिव की पूजा -अर्चना रुद्राभिषेक ,व्रत नियम इत्यादि करता है उसके सब मनोरथ पूरे होते हैं ,वो मोक्ष का भी अधिकारी होता है ।
बहुत उत्तम परमात्मा से जुड़ना अच्छी बात है ,जैसा कि मान्यता है कि शिव बाबा को जल ,दधि,दुग्ध भेलपत्र ,पुष्प आदि से अभिषेक कराने वाला पुण्य का भागी बनता है  ।  और  हम तो ठहरे भोले भक्त भगवान को प्रसन्न करना है ,बिना विचार किए हम भोले भक्त शिव लिंग पर जल व दुग्ध चड़ाए जाते हैं , आप जानते हैं जो आप भगवान शिव को अर्पित कर रहे हैं वो ,क्या भगवान शिव स्वयं ग्रहण कर रहे है ?
नहीं ना फिर ये अंध श्रद्धा क्यों ?
भगवान तो सिर्फ़ भाव के भूखे हैं , वो हमारे पूजनीय हमारे माता -पिता हैं , उन्हें हमसे क्या चाहिये सिर्फ़ आदर ,प्रेमपूर्ण व्यवहार ,वो ही तो हमें सब दे रहे हैं ,जो वस्तुएँ अर्पण करके हम उन्हें ख़ुश करना चाहते हैं उन वस्तुओं के अन्नत भण्डार उनके पास भरे पड़े हैं वो दाता हैं ......वृक्ष अपने फल कभी नहीं खाता ,नादिया अपना नीर कभी नहीं पीती ,क्योंकि ये इनका स्वभाव है इन्हें इसी में संतोष है ..... बस अपनी प्राकृतिक सम्पदा का संरक्षण कीजिये उनका सही और यथयोग्य उपयोग कीजिये
चलिये मान लेते है की आपको कोई चीज़ बहुत प्रिय है , चलिये दुग्ध और फल ही सही ,
किसी को पता चला कि आपको दुग्ध और मीठा खिलाने से किसी एक को कोई लाभ हो गया ,चलो अच्छी बात है ।
अब किसी दूसरे को यह पता चला वो भी आपको प्रसन्न करने के लिये दुग्ध और मीठा ले आया  एक बार फिर आ गया परन्तु अब तो यह सिलसिला बहुत बड़ा रूप ले चुका है ,माना कि ये आपको पसन्द है परन्तु इतने अधिक मात्रा में ...

अब तो आपको इन सब चीजों से ऊब होने लगेगी .....

 ज़रा सोचिये .......
अरे ज़रा सोचिये .........तो सही शिवरात्रि का पर्व हो  या सावन का महीना दे धड़ा -धड़ अभिषेकआख़िर कितना जल ग्रहण करेंगे शिवजी .. बेचारे शिवजी ....पर्याप्त मात्रा में अभिषेक करके भेल पुष्प इत्यादि भगवान को समर्पित करें ....,.
किसी ग़रीब बच्चे को दूध पिलाये , फल खिलायें , पर्याप्त मात्रा में भोजन कराएँ ...यक़ीन मानिये भगवान भोले बाबा बहुत प्रसन्न होंगे और किसी ग़रीब की दुआयें आपका जीवन सार्थक कर देंगी ।
परमात्मा को प्रसन्न करना मतलब कभी किसी का बुरा नहीं सोचना , जो काम करो किसी की भलायी के लिये करो ।
जीते जी यह जीवन किसी के काम आ जाये ,धरती पर जीवन सार्थक हो जायेगा ।
आध्यात्मिकता का तात्पर्य है ,आत्मा का परमात्मा शिव ,से एकीकार होना ।
प्यार से आप अपने भगवान को जिस भी नाम से पुकारोगे वो ,तुम्हारी पुकार अवश्य सुनेगा जिस प्रकार एक माँ अपने बच्चे की तोतली भाषा भी समझती है ।



“एक आवाज़”

  “जब से मैंने अन्तरात्मा की आवाज सुनी 
  उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“सभ्य, सुसंस्कृत -संस्कारों”से रहित 
  ज़िन्दगी कुछ भी नहीं —-“सभ्य संस्कारों “
  के बीज जब पड़ते हैं , तभी जीवन में नये-नये 
  इतिहास रचे जाते हैं ।

“आगे बहुत आगे निकल आया हूँ “मैं”
ज़िन्दगी के सफ़र में चलते-चलते “

“डरा-सहमा ,घबराराया ,
थका -हारा ,निराश 
सब कोशिशें, बेकार 
मैं असाहाय ,बस अब 
और नहीं , अंत अब निश्चित था 
जीवन के कई पल ऐसे गुज़रें “
“ज़िन्दगी की जंग इतनी भी आसान ना थी 
जब तक मैंने अन्तरात्मा की आवाज़ ना सुनी थी 
         “तब तक “
जब से अन्तरात्मा की आवाज़ सुनी 
उसके बाद ज़माने में किसी की नहीं सुनी “

“कर्मों में जिनके शाश्वत की मशाल हो 
उस पर परमात्मा भी निहाल हो “
“नयी मंज़िल है ,नया कारवाँ है 
नये ज़माने की , सुसंस्कृत तस्वीर 
बनाने को ,’नया भव्य , सुसंस्कृत 
खुला आसमान है “
                       
“एक आवाज़ जो मुझे हर -पल
दस्तक देती रहती है , कहती है
जा दुनियाँ को सुन्दर विचारों के
सपनों से सजा , पर ध्यान रखना
कभी किसी का दिल ना दुखे
संभल कर ज़रा .......
सँभल कर ज़रा..,.,



“ बहारें तो आज भी आती हैं “

    रौनक़ें बहार तो हमारे आँगन
    की भी कम ना थीं , चर्चा में तो हम
     हमेशा से रहते थे
   “बहारें तो आज भी आती हैं
    वृक्षों की डालों पर पड़ जाते है झूले ,
    झूलों पर बैठ सखियाँ हँसी -ख़ुशी के
    गीत जब गाती हैं , लतायें भी अँगड़ायी
    लेकर इतराती हैं
 
“  आँगन भी है ,
  क्यारियाँ भी हैं
 हरियाली की भी ख़ूब बहार है
 पर मेरे आँगन के पुष्पों ने
 अपनी -अपनी अलग -अलग
 क्यारियाँ बना ली हैं
 वो जो पुष्प मेरे आँगन की रौनक़ थे
 वो आज किसी और आँगन की शोभा
 बड़ा रहे हैं , अपनी महक से सबको लुभा रहे हैं

 कभी -कभी उदास बहुत उदास हो जाता हूँ
 पर फिर जब दूर से मुस्कुराते देखता हूँ
 अपने पुष्पों को तो ,ख़ुश हो जाता हूँ
 आख़िर उनकी भी तो चाह है
अपनी दुनियाँ बसाने की
ख़्वाब सजाने की
चलो उन्हें भी तो अपनी दुनियाँ बसाने का हक़ दो
दूर से ही सही ,
अपने पुष्पों को मुस्करता देख
मीठे दर्द की दवा ढूँढ लेता हूँ
जीने की वजह ढूँढ लेता हूँ ।



 
 
    

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...