**उम्मीद **

जहां तक बात उम्मीद की है
मेरी मानना है की किसी से भी उम्मीद ना ही रखी जाए तो अच्छा है क्योंकि जब किसी से उम्मीद रखते हैं और वो उम्मीद पूरी नहीं होती या अमुक व्यक्ति हमारी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो हमें दुःख होता है ,हम स्वयं तो दुःखी होते हैं और अमुक व्यक्ति को भी बुरा कहते हैं ।
हां हो सकता है अमुक व्यक्ति ने आपसे वादा किया था और वो आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो थोड़ा सोचने वाली बात है ....परंतु यहां भी नुकसान अपना ही है ,सोच -सोच कर हम स्वयं को ही मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं ।
परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को सोचने -समझने की शक्ति दी है जिस शक्ति का हम स्वेच्छा से अपनी सामर्थ्य अनुसार भला -बुरे के विवेक के अनुसार उपयोग कर सकते हैं ।
उम्मीद रखिए स्वयं से ,स्वयं के मनोबल से .....
अपनी योग्यता ,और परिश्रम को इतना योग्य बनाइए कि आपको किसी से उम्मीद की आ -वश्यकता ही ना पड़े ।
मान लीजिए आपको नदी के उस पार जाना है तो आप उम्मीद करें कि ये नदी का जल कुछ देर के लिए ख़तम हो जाए या नदी ही हट जाए तो ये तो होने वाला नहीं है यानि ये उम्मीद ही करनी बेकार है ।

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