"आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें
मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें"
" माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है
और गन्दगी भी बहुत है ।
तो इसका मतलब क्या ? हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?
जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।
बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच , अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।
अपनी सोच और अपने विचारों को को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराई यों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें।
नज़रों का खेल है सारा
दुनियां में अच्छाई भी है
बुराई भी , किन्तु मनुष्य की
विडम्बना तो देखो .
कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया
वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है
अनेकों खूबियों के बावजूद
एक बुराई ग़लत सोचने को विवश
कर देती है ।
बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है
या यूं कहिए किसी और की होती है
और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के
बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही
गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है ।
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