जिन्दगी को नये मायने मिले हैं
जब से सूकून के पल मिल हैं
पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी
पत्थर के मकानों में रहते
एक अनजानी दौड़ में शामिल
बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल
फिर क्या हुआ हासिल
हवाओं
चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है
जब प्रकृति के समीप जाती हूं
घने वृक्षों की शीतल छाया में
तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं
मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के
चहकने की आवाज से कानों में
मीठा एहसास हो जाता है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें