मधुर राग *****

लिखने जो बैठा मधुर राग 
खुलने लगे कई राज
लब गीत गुनगुनाने लगे
चेहरे मुस्कराने लगे
हृदय ने छेड दी  तान
बजने लगे साज
आज बस में नहीं मेरे जज़्बात

आज फिर हृदय तरंगों में सुनाई
दे रहे है कई  शुभ संकेतों की पदचाप

फिजाओं में बिखरी है मंद मंद सुगंध
मन मयूर नाचे दसों दिशाओं में
फैल रहा है प्रकाश का स्वर्ण
गुनगुना रहे हैं भंवरे स्वछंद

मीठी सी कसक
चेहरे पर बिखरी है चमक
प्रफुल्लित है दिल ए गुलाब
सुनाई दे रही है मीठी सी खनक
सोलह कला सम्पूर्ण है पूर्णिमा का आफताब.....






*पदचाप जिसने बढ़ाया रक्तचाप*


 उस पल उस "पदचाप" की आवाज सुनकर जो मेरा रक्तचाप बड़ा था ,वो रक्तचाप आज भी बड़ने लगता है जब वो पल मुझे याद आता है ।

 आज भी मेरे रोंगटे खड़े हो जाते हैं आखिर मुझे उस दिन इतना डर क्यों लगा , मैं इतनी डरपोक तो नहीं फिर भी ऐसा क्या हुआ उस दिन जो मैं भी डर गयी थी।
 यह बात सच है की कोई भी मनुष्य कितना भी ब हादुर क्यों ना हो परन्तु उसके दिमाग के कोने में एक डर अवश्य छिपा होता है ।

उस दिन लगभग रात्रि दो बजे की बात होगी, मुझे प्यास लगी थी ,यूं तो हर रोज रात्रि शयन से पहले मैं एक गिलास पानी अपने कमरे में रख लेती थी लेकिन उस ना जाने क्यों पानी रखना भूल गई ,प्यास बहुत तेज थी मूंह सूख रहा था मैं पानी लेने के लिए रसोई घर की और चल दी ।  हमारे घर में बालकनी से होकर सीढ़ियां ऊपर की और जाती हैं ,तभी मुझे सीढ़ियों में कुछ आवाज सुनाई दी पायल खनकने की ,मैंने न नजरअंदाज  किया ,और अपना पानी लेकर पीने लगी , मैं पानी लेकर अपने कमरे में जा रही थी ,तभी सीढ़ियों में से कुछ गिरने की आवाज अाई और मैं डर के मारे कांप गई ।
  अरे भाभी आप पानी लेने आयी थी , मैं भी अभी यहां से पानी लेकर गई जाते हुए जग का ढ़क्कन गिर गया था उसकी ही आवाज आई थी ।
 चलो आप भी अपने कमरे में जाओ और मैं भी जाती हूं नींद आ रही है ,इतने में फिर से किसी के पदचापों की आवाज आई दोनो फिर डर गई शांति से हम उस आवाज को सुनने लगे की यह आवाज कहां से और किसकी है ,हमारे कान आवाज कहां से आ रही है महसूस करना चाह रहे थे ,तभी एक और कुछ अलग से आवाज आई ,हमने अपने जासूस दिमाग  दौड़ाया ,दरवाजों की झिरियों से झांकने लगे ,सोचा डरना नहीं है ,अगर डर गए तो मर गए ,में और मेरी भाभी सीढ़ियों से बालकनी पर चड़ गए बालकनी से
छुपते- छीपाते हम ताका-झांकी के रहे थे ,तभी हमारी नजर सड़क पर घूम रहे कुत्ते पर पड़ी जिसने अपने मूंह में कुछ दबा रखा था ,जब वो उसे मूंह से निकलता उसमें से कुछ ढूंढने की कोशिश करता तब आवाज आती ।
इतने में पीछे से हाथ में डंडा लिए वही पद चाप करता जो हमने सुनी थी चौकीदार आ गया ,हमारी सांस में सांस अाई चलो कोई डर वाली बात नहीं ।
 कुछ पल को पदचाप ने हमें डरा ही दिया था ।
वो हमारा चौकीदार था ।
  

** जीवन की ऊंचाईयां**

*ऊंचाइयों पर पहुंचेगा अवश्य
आचरण की सभ्यता का संग
जीवन में श्रेष्ठ विचारों का रंग
सत्य और सरलता की मशाल
विश्वास की डोर थाम ...
कहीं समतल,कहीं खाई
कहीं जंगल तो कहीं विशाल
पर्वत चट्टानों सी अडिग
बाधाओंं की जंजीरों की बेड़ियां
पत्थरों की ठोकरों से
लहूलुहान तुम हार मत जाना
नकारात्मकता के अंधेरे में
घिर मत जाना
सकारात्मकता की ज्योत से
अडिग निडर हर
बाधा से लड़ जाना
तेरे परिश्रम का फल तू एक दिन
अवश्य पाएगा श्रेष्ठ विचारों की पूंजी से
तेरा जीवन सर्वत्र पूजा जायेगा ।

*अभी ना होगा तेरा अंत ,अभी तो तू जन्मा है *


* अभी तक तो तू सोया था
मद के सपनों में खोया था
अभी ना होगा तेरा अंत
अभी तो हुआ है तेरा जन्म
करके वसुन्धरा को नमन
आत्मा से बोल वन्दे मातरम्

मानवता कराह रही है
फैल रहा है कूटनीति का जहर
आतंकियों रूपी रक्तबीजों का उत्पाद
करने को निशाचरों का नाश
हो सिंह पर सवार
बन चंडी दुर्गा और काली
उठा त्रिशूल और बचा मानवता की लाज....
परशुराम बन उठा फरसा और
उखाड़ फेंक जहरीले बीजों को काट..

अधर्म पर धर्म की जीत
असत्य पर सत्य की जीत
रामराज्य स्थापित करना है फिर से
घर -घर माखन मिश्री की रस धार बहे
पन्ना धाय सी हर माता हो
मदर टेरेसा सा निस्वार्थ सेवा धर्म हो
घर-घर प्रेम का मन्दिर हो
अभिवादन हो सबका अथिति सत्कार
*सोने की चिड़िया*बनने को फिर से उत्सुक है
भारत माता के सिर सुशोभित रहे विश्व गुरु का ताज ।




















**देश भक्ति की चिंगारी ***


  *भारत माता की जय *
*मेरा देश महान *
*भारत भूमि *की आन में
 और शान में 
 ये महज शब्द नहीं 
 मेरे मन के भाव हैं
 देश प्रेम के प्रति 
 दिल में सुलगतीआग है 
 देश प्रेम की आग जो 
 मुझे भीतर ही भीतर
  सुलगाती है
आत्मा रोती है जब मेरे देश की जनता धर्म
जाति और राजनीति के आड़ में हिंसा फैलाती है
मेरे हृदय की आग मुझमें धधकती है जब
किशोरियों की अस्मिताएं लूटी जाती हैं
मेरे हृदय की आग ज्वाला बनकर
मुझे मुझमें ही जलाती है जब सरहद पर तैनात
भारत का वीर सपूत भारत भूमि की आन में
शहीद हो जाता है
मेरे भीतर देश प्रेम की आग
मुझे मेरे देश की शान में
कुछ लिखने को कुछ कहने
को और भारत माता के सम्मान
में भारत माता की जय
बोलने को प्रेरित करती है ।
मेरे भीतर की आग मुझे भारत
की आन में और शान में
एक सभ्य सुशिक्षित मनुष्य
 बनने को प्रेरित करती है ।




आग नहीं तो क्या है...

भूख की आग कभी
किसी को ना सताए
कभी किसी को ना रुलाए
आग लगी थी पेट में भूख की
जो पांच साल के बच्चे
को रोटी चोरी करने
को मजबूर कर गई

चक्षुओं से कपोलों
तक छपे अश्रुओं के
अमिट निशान
नासिका पर सूखता
द्रव्य पदार्थ
तन पर पड़ा आधा-अधूरा पट

वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
झूठे पत्तलों में से अन्न के दाने
बीन कर खाने को ....

वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
कचरे में निगाहों को घुमाने को
पेट की क्षुधा मिटाने को....
एक आग ही तो थी
रोटी के टुकड़े को चोरी करने को.....


खामोशी भी बोलती है


 बहुत बोलता रहा अभी तक 
किसी ने कुछ नहीं सुना 
या यूं कहिए सुनना ही नहीं चाहा
अब मैंने मौन धारण कर लिया है।

जब से मैंने मौन धारण किया 
लोग हैरान और परेशान हैं 
मेरा बोलना जिन्हें तनिक भी 
ना भाता था ,आज मेरे
मौन से भी बैचैन हैं ।

फिर भी अब मैं खुश हूं 
ना कुछ कहने का ना सुनने का गम

एक राज की बात बताऊं 
अब तो मेरी खामोशी भी बोलती है 


पर मौन की भाषा जो समझ
जाते है।वो ख़ास होते हैं ।
क्योंकि ?

खामोशियों में ही अक्सर
गहरे राज होते है ।
जुबाँ से ज्यादा मौन की भाषा
में कशिश होती है ।

जब तक मैं बोलता रहा
किसी ने नहीं सुना ।
कई प्रयत्न किये ,
अपनी बात समझाने
की कोशिश करता रहा
चीखा चिल्लाया गिड़ गिड़ाया
प्यार से समझाया, हँस के रो के
सारे प्रयत्न किये पर कोई समझ
ना पाया ।

पर अब मै मौन हूँ 
किसी से कुछ नहीं कहता
ना कोई शिकवा ना शिकायत ।

पर अब बिन कहे सब मेरी
बात समझ जाते जाते हैं
लोग कहते हैं,कि मेरी खानोशी
बोलती है।

अब सोचता हूँ व्यर्थ बोलता रहा
मौन में तो बोलने से भी ज्यादा
आवाज होती है।


आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...