लिखने जो बैठा मधुर राग
खुलने लगे कई राज
लब गीत गुनगुनाने लगे
चेहरे मुस्कराने लगे
हृदय ने छेड दी तानबजने लगे साज
आज बस में नहीं मेरे जज़्बात
आज फिर हृदय तरंगों में सुनाई
दे रहे है कई शुभ संकेतों की पदचाप
फिजाओं में बिखरी है मंद मंद सुगंध
मन मयूर नाचे दसों दिशाओं में
फैल रहा है प्रकाश का स्वर्ण
गुनगुना रहे हैं भंवरे स्वछंद
मीठी सी कसक
चेहरे पर बिखरी है चमक
प्रफुल्लित है दिल ए गुलाब
सुनाई दे रही है मीठी सी खनक
सोलह कला सम्पूर्ण है पूर्णिमा का आफताब.....
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