भूख की आग कभी
किसी को ना सताए
कभी किसी को ना रुलाए
आग लगी थी पेट में भूख की
जो पांच साल के बच्चे
को रोटी चोरी करने
को मजबूर कर गई
चक्षुओं से कपोलों
तक छपे अश्रुओं के
अमिट निशान
नासिका पर सूखता
द्रव्य पदार्थ
तन पर पड़ा आधा-अधूरा पट
वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
झूठे पत्तलों में से अन्न के दाने
बीन कर खाने को ....
वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
कचरे में निगाहों को घुमाने को
पेट की क्षुधा मिटाने को....
एक आग ही तो थी
रोटी के टुकड़े को चोरी करने को.....
किसी को ना सताए
कभी किसी को ना रुलाए
आग लगी थी पेट में भूख की
जो पांच साल के बच्चे
को रोटी चोरी करने
को मजबूर कर गई
चक्षुओं से कपोलों
तक छपे अश्रुओं के
अमिट निशान
नासिका पर सूखता
द्रव्य पदार्थ
तन पर पड़ा आधा-अधूरा पट
वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
झूठे पत्तलों में से अन्न के दाने
बीन कर खाने को ....
वो उसके पेट की आग ही तो थी
जो उसे मजबूर कर रही थी
कचरे में निगाहों को घुमाने को
पेट की क्षुधा मिटाने को....
एक आग ही तो थी
रोटी के टुकड़े को चोरी करने को.....
बेहतरीन रचना मर्म स्पर्शी
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंवाह!!बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना👌
जवाब देंहटाएंस हृदय आभार शुभा जी
हटाएंस्वेता जी सहृदय आभार मेरी रचना को इस संकलन में स्थान देने के लिए
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