**जीवन पथ **

  **जीवन पथ पर ,मेरे संग सत्य हो ,
     दया धर्म हो, निस्वार्थ प्रेम का अद्भुत रंग हो **

 **मान देना ,सम्मान देना
     पर ना देना अभिमान मुझे **

    ** उपकार करूं , सत्कार करूं मैं
         नहीं किसी का तिरस्कार करूं मैं **

        ** गिरते हुए का सहारा बन जाऊं मैं,
        पर ना किसी को गिराने का प्रयास करूं मैं**

  ** ऊंचा उठना , तरक्की करना हो मंजूर  मुझे,
        किसी को नीचा दिखाना ना भाए कभी मुझे*"
       **
   **ना हो मुझे किसी से कोई ईर्ष्या ,ना कोई
      द्वेष प्रतिस्पर्द्धा **
     ** मेरे कर्म मेरी पहचान बने ,
         मान बने सम्मान बने ,देश की पहचान बने **

     ** चाहे दीपक की तरह जलता रहूं,
          दिन रात पिघलता रहूं ,परंतु आखिरी सांस
          तक उजाले का सबब बन कर जियूं**

      **दरिया के बहते जल सी हो तकदीर मेरी
    रुकना मेरा स्वभाव नहीं ,आगे बढ़ना हो स्वभाव       मेरा**
 **नहीं बनना बड़ा मुझे , कहीं किसी बगिया का पुष्प बनकर ,बगिया को महकाऊ ,अपने छोटे से जीवन को सफल कर जाऊं **


         
     
    

**चिराग था फितरत से**

*******चिराग था फितरत से
              जलना मेरी नियति
               मैं जलता रहा पिघलता रहा
               जग में उजाला करता रहा
               मैं होले_होले पिघलता रहा
               जग को रोशन करता रहा *****
               "जब मैं पूजा गया तो ,

                जग मुझसे ही जलने लगा ,
                मैं तो चिराग था ,फितरत से
                मैं जल रहा था ,जग रोशन हो रहा था
                कोई मुझको देख कर जलने लगा
                स्वयं को ही जलाने लगा
                इसमें मेरा क्या कसूर"
               
                **चल बन जा , तू भी चिराग बन
                थोड़ा पिघल , उजाले की किरण
                का सबब तू बन ,देख फिर तू भी पूजा
                जाएगा ,तेरा जीना सफ़ल हो जाएगा **

****रोना बंद करो ****

      *"*मेरे मित्र तुम्हें क्या हो गया है, आजकल ....,तुम तो ऐसे नहीं थे ।   तुम रोते हुए अच्छे नहीं लगते ।
 **अमन याद है , तुम्हें ,जब में अपने जीवन से निराश और हताश होकर अपना जीवन ही समाप्त करने चला था, तब तुम ढाल बनकर मेरे आगे खड़े हो गए थे । तुमने मुझमें  मेरा आत्म विश्वास वापिस जगाया था । वरना में तो अपनी जिंदगी से हार मान चुका था।  अब तुम्हारा आत्मविश्वास कहां गया , अमन तुम तो इतने कमजोर नहीं हो  ,अच्छा नहीं लगता,  तुम्हारे मुंह से नकारात्मक बातें सुनना , तुम तो वो   सोच हो जो अंधेरे में भी जगमगाए ..... पत्थरों को भी जीवंत कर दे । वीराने में भी मंगल दीप जला दे ।

   ** हां मेरे मित्र "सजग" कई दिनों से ना जाने क्या  हो गया है मुझे ,
 मैं भी बस रोना ही रो रहा हूं ।
 रोना ...... हा _हा,  हां रोना .....
बस हालातों को दोष दे रहा हूं । मैं भी बस जन सामान्य की तरह ,अगर ऐसा होता तो मैं ऐसा होता , मैं ये कर पाता वो कर पाता । कुछ मेरे जैसा ही नहीं ,तो मैं क्या करूं मैं तो  किस्मत को ही  दोष
 दूंगा । अगर मेरे हक में सब होता तो सही होता।
 मेरी किस्मत ही ऐसी है ......
    तुम्हारा स्वास्थ्य ही बिगड़ा है ,मेरे दोस्त अमन .............   आज रसायन विज्ञान ने बहुत तरक्की कर ली है ,तुम बहुत जल्दी ठीक हो जाओगे ।
 अभी तुम्हें बहुत से आशा के दीप जलाने हैं । नकारत्मक विचारों की कंटीली झाड़ियों को नष्ट कर सकारात्मक विचारों के बीज बोने हैं ।
     हां मेरे मित्र "सजग"तुम्हारी बात  सही है ,परंतु यह बात भी तो सत्य है कि जीवन एक सफ़र है ।
मेरे जीवन का सफ़र बहुत बेहतरीन रहा , मैंने जीवन के हर _ पल को भरपूर जिया , हताश होना तो मानों मैंने सीखा ही नहीं था ,बहुत से हताश लोगों को आशा की राह भी दिखाई ।
बस मैं तो यही चाहूंगा ,की सब अपने जीवन को जाने समझे ,देखो साधारण सी बात है ,जब हम गाड़ी चलाते हैं ,तो सफ़र में कई तरह के मोड़ आते हैं ,सफ़र है ,रास्ते कैसे भी हों ,चलना तो पड़ता ही है । तो क्यों ना हंसी खुशी अपने सफ़र को पूरा करे ।
"सजग "ने अपने मित्र "अमन" को अपने गले से लगा लिया ,दोनो मित्रों के नेत्रों से प्रेम की अश्रु धारा बह निकली .....

** पैग़ाम मोहब्बत का **

 
*दिल के कोरे काग़ज़
 पर कुछ शब्द ,गुमनाम से लिखता हूं *

* मैं तो हर शब्द में मोहब्बत का पैग़ाम लिखता हूं
आगाज़ दर्द से ही सही पर ,
खुशियों के पैग़ाम लिखता हूं *

मोहब्बत करना कोई फ़िज़ूल का शौंक नहीं
ये तो फरिश्तों की नियामत है
सारी कायनात ही मोहब्बत की
बदोलत है , मोहब्बत ही तो सच्ची इबादत है *

**हां मैं नफरतों की वादियों से
तंग आकर मोहब्बतें
पैग़ाम भेजता हूं **

**जितनी तोहमत लगानी है ,लगाओ
हां _ हां मैं इससे _उससे हर शकस
से मोहब्बत करता हूं **

**तोहफा ए मोहब्बतें के लिए
मैं ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करता हूं
इतने सुंदर किरदार को निभाने की
कला जो मुझको मिली ,
अपने किरदार को निभाने की
भरकस कोशिश करता हूं *



”मंजरी”

 
    “  मंजरी को शहर आकर बहुत अच्छा लग रहा था ।
  अभी कुछ ही दिन पहले वो अपनी मौसी के साथ गाँव से शहर घूमने आ गयी  थी ।
  शहर की भागती दौड़ती चकाचौंध से भरी ज़िन्दगी मंजरी को लुभा रही थी ।
 घर में मौसी -मौसा उनके चार बच्चे तीन  लड़कियाँ और एक चौथा भाई जो अभी पाँच ही साल का था सभी लगभग आठ  दस बारह साल के थे ,मंजरी की उम्र भी बारह वर्ष ही थी ।सभी बच्चे मिलकर ख़ूब मस्ती करते थे ।
मौसा मज़दूरी करते थे ,मौसी भी चार पाँच घरों में सफ़ाई का काम करती थी ।
 कुछ दिन तो मौसी -मौसा को मंजरी बहुत अच्छी लगी परन्तु अब मंजरी मौसा की आँखो को खटकने  लगी ।मौसी -मौसा अपने ही परिवार को मुश्किल से पाल रहे थे ,अब ये मंजरी का खर्चा और बड़ गया था ।
अब मौसी मंजरी को गाँव वापिस लौट जाने की सलाह देने लगी ।

लेकिन मंजरी गाँव जाने को बिलकुल भी तैयार नहीं थी ।

एक दिन की बात है ,मौसी की तबियत अच्छी नहीं थी उस दिन काम का बोझा भी ज़्यादा था ,और आज तो मौसा भी ज़्यादा पीकर आये थे ,घर में बहुत हंगामा हुआ ,मौसी बोल रही थी एक तो घर में वैसे ही खाने वाले ज़्यादा और कमाने वाले कम ऊपर से तुम शराब पीकर पैसा उड़ा रहे हो ,घर में तो ख़र्चा देते वक़्त हाथ तंगी है और तुम्हारी अय्याशी के लिये कोई तंगी नहीं ......इतने में मौसी की नज़र मंजरी पर पड़ी .....और एक तू इतने दिन से मुफ़्त की रोटियाँ तोड़ रही है ,यहाँ कोई टकसाल नहीं लगी अगर  रहना है तो मेहनत करो मज़दूरी करो या फिर गाँव वापिस जाओ......
आज मंजरी के कानों को मौसी की बात चीर रही थी .....
मंजरी गाँव वापिस जाकर क्या करती ...थोड़ा सा खेत का टुकड़ा ज़रूर है गाँव में धान ,गेहूँ ,की कोई कमी नहीं थी पेट तो किसी तरह भर ही जाता है , लेकिन पेट के अलावा और भी ज़रूरतें होती हैं जिनके लिए पैसे की आव्य्श्क्ता होती है ।
अच्छे कपड़े ,टेलेविजन ,फ़्रिंज इत्यादि सभी देखकर मंजरी की इच्छा होती थी की गाँव में उसके घर में भी ये सब कुछ हो ,वो मौसी से बोली मुझे कुछ काम दिलवा दो , मैं कुछ पैसे कमा कर गाँव ले जाऊँगी और टी॰वी॰ ,फ्रिज ख़रीदूँगी ।
मौसी को हँसी आ गयी बोली बेटा काम करना इतना आसान नहीं है ,चल फिर भी तू कह रही है तो कल से तुझे काम पर लगवाती हूँ आज ही कोई कह रहा था ,सुबह आठ बजे से रात आठ बजे तक उन्हीं के घर रहना होगा ,खाना पीना वही होगा रात को घर वापिस .....
मंजरी अगले ही दिन काम पर लग गयी ,चार हज़ार रुपया एक महीना तय हुआ था अच्छा काम मिलने पर दो महीने बाद पैसे बड़ा देने की बात हुई ।
मंजरी पूरे दिल से उस घर में सुबह से शाम करती ,सब सुविधा थी मंजरी को मंजरी ख़ुश थी ,काम करते -करते मंजरी को छः महीने बीत गये थे ,मंजरी हर महीने के पैसे अपनी मौसी को दे देती थी मौसी भी यह कहती की तेरे पैसे मेरे पास सुरक्षित पड़े हैं ।अब छः महीने हो गये थे मंजरी ने मौसी से कहा मौसी वो थोड़े दिन के लिए गाँव जाना चाहती है , उसके जो पैसे हैं वो गाँव लेकर जायेगी और घर पर देगी ....
मौसी बोली कौन से पैसे घर का किराया और ख़र्चे और तू भी तो सुबह का नाश्ता और कभी -कभी तू रात का खाना भी तो खाती है ।
मंजरी का मन बहुत उदास हो रहा था ,अब उसने सोच लिया था कि वो अगले महीने सिर्फ़ एक हज़ार रुपया ही मौसी को देगी बाक़ी गाँव जाने के लिये जमा करेगी ।
अगले महीने मंजरी ने ऐसा ही किया , मौसी -मौसा में बहुत कोशिश करी पैसे निकलवाने की लेकिन इस बार मंजरी ने भी जिद्द ठानी थी । चार महीने बीत गये थे मौसी -मौसा की पैसे देने वाली मुर्ग़ी मंजरी ने भी अब पैसे देने बंद कर दिए थे ।
अब तो मौसी मानों ऐसे हो गयी जैसे मंजरी उसकी बहन की बेटी ही ना हो , कहने लगी यहाँ रहना है तो पाँच हज़ार किराया देना होगा .मंजरी अब पूरी तरह समझ गयी थी की जब तक पैसा हो जेब मैं कोई पूछता है ,वरना धक्का मार निकालते हैं ।
अकेली लड़की को कोई किराये पर मकान देने को भी तैयार नहीं था , उधर से मौसी -मौसा के आँख में चुभने लगी थी मंजरी । उसके गाँव में फ़ोन करके बहुत कोशिश की गयी की मंजरी महीने में जो कमाती है ,वो उन्हें देती रहे तो ....मंजरी  उनके  घर रह सकती है वरना मंजरी अपना अलग ठिकाना करे ,मंजरी को सारे महीने की कमायीं देनी मंज़ूर ना थी क्योंकि वो सारे दिन तो काम के घर में रहती थी खाना खाती थी फिर किस बात के पैसे दे मौसी को और मौसी भी माँगने पर कहती थी पैसे ख़र्च हो गये ।नहीं मंजरी अब अपनी मेहनत की कमायीं नहीं देगी उसके भी कुछ अरमान हैं जिन्हें वो पूरा करना चाहती थी ।
इधर मौसी ने मंजरी को उसके गाँव भेजने की पूरी तैयारी कर ली थी ।
मंजरी उदास थी ,पर उसे यक़ीन था वो फिर शहर लौट कर आयेगी और अपने सपने सच करेगी ......
क्योंकि वो जान चुकी थी की मेहनत से सब कुछ मिलता है ।



**सच्चा मित्र **

 **** 
          **सच्चे मित्र से मिलने की खुशी और मन में
          कशमकश करते , कई प्रश्न ,कई बातें ,यूं ही             बयान हो जाती है ,जब लगता है ,कोई अपना मिल गया है ,अब कुछ कहना इतना जरूरी नहीं,क्योंकि वो मेरा मित्र है, वो मुझे देख कर ही मेरे  दिल में क्या चल रहा  है सब जान जाएगा ।
     
       ** हर बार सोचता हूं
            आज उसे दिल के सारे
            हाल बता दूंगा ,शब्द जुबान
            पर होते हैं ,मैं बोल भी नहीं पाता
            वो मुझे देखकर यूं मुस्कराता है
                *जैसे सब समझ गया *
            वो  मेरा मित्र, कुछ अलग है दुनियां से ।
            मेरा सहयोगी तो है ,पर जताता नहीं
            मैं जानता हूं,वो प्रेरणा बनकर मुझे
            प्रेरित करता रहता है, क्योंकि वो मुझे ही
            योग्य और समझदार बनना चाहता है ।

         **घंटों बैठ कर मैं उससे बातें करता रहा,ना जाने   क्या _ क्या.......
   आज पता नहीं  उससे बातें करने के लिए मेरे पास इतना समय कहां से आ गया था ।
वरना , मेरे कितने काम यूं ही रुके रहते थे कि आज समय नहीं है कल करूंगा, प्रतिदिन का यही बहाना, आज समय नहीं है कल करूंगा ।
मैं स्वयं हैरान था ,चार घंटे उसके साथ बैठकर ऐसे बीते जैसे चार पल ।
   परंतु आज दिल पर पढा सारा बोझ हल्का  हो गया था ,मैंने अपने दिल की सारी बातें उसको कह  सुनाई थी।  मैं सुनाता रहा वो सुनता रहा मैं हैरान था ,      मैंने कहा आज तक मेरी इतनी बातें किसी ने नहीं सुनी जितनी तुमने सुनी ,वो बोला मैं तो कब से इंतजार में था कि तुम मुझसे बातें करो ,तुम ही मेरे पास नहीं आए ,तुमने सोचा होगा कि मैं भी औरों की तरह हूं ।
 ऐसा ही होता है जिसे हम अपना समझते हैं वो अपना नहीं होता ,और जो अपना होता है उसे हम अपना नहीं समझ पाते ।
हमें जो मिलता है उससे हमें खुशी नहीं मिलती, और हमारे पास जो नहीं होता उसमें हम खुशी ढूंढ़ते हैं ,और पागलों की तरह अपना जीवन कष्टदाई करते रहते हैं ।
 जो मिला है ,वो पर्याप्त है ,और आवयश्कता से बहुत अधिक है ,यह हम जान के भी अनजान बने रहने का नाटक करते रहते हैं ,ना जाने क्या ढूंढ़ते रहते हैं हम मनुष्य अपने इस जीवन में .....
  सत्य भी है,जीवन आगे बड़ने का नाम है ।
   एक जगह एकत्र रुका हुआ जल भी कुछ समय बाद दुर्गन्ध देने लगता है । जीवन बड़ा हो अती उत्तम ,परंतु जीवन बड़ा होने के साथ ही साथ उपयोगी होना भी आवश्यक है ।
  सभी रिश्ते _नाते ,मित्र माना कि सब अपने हैं ,परंतु हर किसी की स्वयं की उलझनें हैं ,प्रत्येक व्यक्ति स्वयं में उलझा हुआ है ,किस को अपनी उलझन बताएं ,जिसको बताओ ,वो अपना ही रोना लेकर बैठ जाता ।
आखिर समझ आया किसी को भी अपनी उलझन बता कर कोई फायदा नहीं  यहां सभी उलझे पड़े हैं    परन्तु इस बार मुझे जो मित्र मिला ,वो मेरा बड़ा सहयोगी निकला , उसे मैंने दिल के सारे हाल बताएं ,उसने बहुत अच्छे उपाय,और हल बताए ।
वास्तव में मेरी उलझन मेरे ही मन की उपज थी ,अब मैं उलझता नहीं ,उलझन भी मेरे पास आने से डरती है क्योंकि उलझन को मैं उलझनें ही नहीं देता ।
वो मेरा मित्र मेरे मन का सहयोगी हर पल मेरे साथ रहता है ।
बड़ी मुश्किल से पहचान पाया हूं ,मैं अपने मित्र को अब उसे अपने से दूर कभी नहीं जाने दूंगा ।
मेरा मित्र मेरी अंतरात्मा की आवाज ,मेरे परमपिता परमात्मा हैं । सच कहूं उससे बड़ा दुनियां में किसी का कोई मित्र नहीं ,अपनी अंतरात्मा की आवाज सुनिए वही आप सब का सच्चा मित्र है ।





















**हां मुझे आगे बढ़ने का शौंक है ***

  *****हां मुझे आगे बढ़ने का शौंक है **
  **परंतु किसी को पीछे करके नहीं
  *आगे बढ़ना प्रकृति का नियम है।
  और अपने जीवन के अंतिम क्षण
  तक मैं आगे बढ़ने का प्रयास करती रहूंगी **

  **जीवन प्रतिस्पर्द्धा नहीं ,
  प्रतिस्पर्द्धा कीजिए स्वयं से
  स्वयं के परिश्रम से,संयम से**
 
  परंतु किसी को धक्का देकर करके नहीं
  मुझे स्वयं की जगह स्वयं बनानी है ।
 
   मैं किसी का स्थान लूं ये मुझे
   मंजूर नहीं
   मेरा स्थान मेरे कर्म ,मेरे धर्म
  ओर मेरे प्रयास पर निर्भर है ।

  ना मुझे किसी से कोई प्रतिस्पर्द्धा है
  ना किसी से वैर ,मेरी अपनी मंजिल
  मेरा अपना सफर,
 **मैं अगर अपने कर्मो के बल पर आगे बढ़ती हूं
  तो यह कदापि नहीं की मैं किसी का स्थान लेना      चाहती हूं **
 **या मै किसी को पीछे करना चाहती हूं
 मेरा तो हरदम यही प्रयास रहेगा कि,
 सब आगे बढ़े ,सब अपनी मंजिल स्वयं बनाएं 
 सब समृद्ध हों ,सबका विकास हो ।

  ****मैं सूरज की तरह चमक सकता हूं
  पर सूरज की जगह ले पाना असम्भव ही ,
  नहीं ,नामुमकिन हैं।
  माना कि मैंने बहुत बड़ी बात कह दी ।


  मैंने अक्सर देखा है ,कुछ बढ़े व्यक्ति
  स्वयं से पद में छोटे व्यक्तियों को ,
  पीछे करके स्वयं आगे
 आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं ,
  परंतु बढ़े व्यक्तियों  की महानता इसमें है की
  वह उन्हें  को आगे बढ़ाने का प्रयास करें
  क्योंकि जो बढ़ा है, वो तो बढ़ा ।
   ऐसा करके वो
   और बड़ा और सम्मानित होगा ***



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...