*दिल के कोरे काग़ज़
पर कुछ शब्द ,गुमनाम से लिखता हूं *
* मैं तो हर शब्द में मोहब्बत का पैग़ाम लिखता हूं
आगाज़ दर्द से ही सही पर ,
खुशियों के पैग़ाम लिखता हूं *
मोहब्बत करना कोई फ़िज़ूल का शौंक नहीं
ये तो फरिश्तों की नियामत है
सारी कायनात ही मोहब्बत की
बदोलत है , मोहब्बत ही तो सच्ची इबादत है *
**हां मैं नफरतों की वादियों से
तंग आकर मोहब्बतें
पैग़ाम भेजता हूं **
**जितनी तोहमत लगानी है ,लगाओ
हां _ हां मैं इससे _उससे हर शकस
से मोहब्बत करता हूं **
**तोहफा ए मोहब्बतें के लिए
मैं ऊपर वाले का शुक्रिया अदा करता हूं
इतने सुंदर किरदार को निभाने की
कला जो मुझको मिली ,
अपने किरदार को निभाने की
भरकस कोशिश करता हूं *
बहुत ख़ूब सखी 👌
जवाब देंहटाएंAabhar
हटाएंक्या बात है प्रिय ऋतु जी। सच है कि मुहब्ब्त फरिश्तों का पैगाम है।
जवाब देंहटाएंbahut khoob
जवाब देंहटाएंThanks
हटाएंबेहतरीन रचना
जवाब देंहटाएंहां मैं नफरतों की वादियों से
जवाब देंहटाएंतंग आकर मोहब्बतें
पैग़ाम भेजता हूं
बहुत खूब रितु दी।
आभार सखी
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/12/mitrmandali100.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर..
जवाब देंहटाएंधन्यवाद
हटाएंबहुत सुंदर पैगाम देती उत्तम रचना।
जवाब देंहटाएंआदमी आदमी से प्यार करना सीख ले तो सब कुछ सहज और सुन्दर हो जायेगा।
लाजवाब "पैगाम ए मोहब्बत"
जवाब देंहटाएंवाह !!!
बहुत ही सुन्दर सार्थक....