Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
वक्त का सिलसिला
उद्देश्य मेरा सेवा का पौधारोपण
उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण
अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में
शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में
सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
समाज हित की पौध लिए
श्रद्धा के पुष्प लिए भावों की
ज्योत जलाएं चाहूं फैले च हूं और
उजियारा निस्वार्थ दया धर्म
का बहता दरिया हूं बहता हूं निरंतर
आगे की ओर बढ़ता सदा निर्मलता
का संदेश देता भेदभाव का सम्पूर्ण
मल किनारे लगाता सर्व जन
हित में उपयोग होता सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में
निर्मलता का गागर भरता ।
अखण्ड ज्योति
निरंतर आशा के दीप जलाते चलो
अंधियारा तनिक भी रहने पाए
पग- पग पर हौसलों के प्रकाश
फैलाते चलो ।
देखो! किसी दीपक की लौ
ना डगमगाये उम्मीद की नयी किरणों के
प्रकाश मन - मन्दिर में जलाते चलो
मन के अंधियारे में धैर्य और विश्वास
की अखण्ड ज्योति प्रकाशित करो
हौसलों के बांध बनाते चलो
देखो कोई ना अकेला ना रह जाये सबको
संग लेकर चलो सौहार्द का वातावरण बनाते चलो
दुर्गम को सुगम बनाते चलो
पग -पग पर शुभता के दीप जलाते चलो
अंधियारा को तनिक भी ना समीप बुलाओ
उजियारा हो ऐसे जैसे हर रोज
हर- पल दीपावली हो, परमात्मा के
आशीषो की शीतल छाया का एहसास निराला हो।
विचार बड़े अनमोल
विचार बड़े अनमोल होते
विचारों ही बनाते हैं
विचार ही बिगाड़ते हैं
जिव्हा पर आने से पहले
विचार मस्तिष्क में पनप जाता है
विचारों का आकार होता है
विचारों का व्यवहार होता है
कौन कहता है हम करते हैं
पहले विचारों के बीज पनपते हैं
फिर हम उन्हें नए -नए आकार देते हैं
कौन कहता है विचार मनुष्य के बस में नहीं होते
विचारों का दरिया जब बहता है
तब उसमें बांध बनाने होते हैं
नहीं तो विचारों का ताण्डव
क्रोध की अग्नि बन स्वयं भी
जलता है और अन्यों को भी
जलाता है।
परोपकार
प्रकृति
जिन्दगी को नये मायने मिले हैं
जब से सूकून के पल मिल हैं
पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी
पत्थर के मकानों में रहते
एक अनजानी दौड़ में शामिल
बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल
फिर क्या हुआ हासिल
हवाओं
चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है
जब प्रकृति के समीप जाती हूं
घने वृक्षों की शीतल छाया में
तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं
मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के
चहकने की आवाज से कानों में
मीठा एहसास हो जाता है
चित्रकार
आओ अच्छा बस अच्छा सोचें
आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...
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इंसान होना भी कहां आसान है कभी अपने कभी अपनों के लिए रहता परेशान है मन में भावनाओं का उठता तूफान है कशमकश रहती सुबह-शाम है ब...
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*ए चाॅंद* कुछ तो विषेश है तुममें जिसने देखा अपना रब देखा तुममें ए चाॅद तुम तो एक हो तुम्हें चाहने वालों ने जाने क्यों अलग-अलग किया खुद ...
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रास्ते भी क्या खूब हैं निकल पड़ो चल पड़ो मंजिलों की तलाश में किसी सफर पर रास्ते बनते जाते हैं रास्ते चलना सिखाते हैं,गिरना-समभलना फिर उ...