असली -नकली

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें 

करना चाहता हूं 

मुखौटों के बाजार में 

कौन है असली

 कौन है नकली 

पहचान करना चाहता हूं 

अरे! यहां तो नकली भी 

खालिस नहीं 

असली भी मिलावटी 

अब जायें तो जायें कहां 

नकली भी असली नहीं  

असलियत का चेहरा तो 

अब नजर ही नहीं आता 

किसकी खोज कर रहा हूं मैं 

खोजते -खोजते मैं भी बदल रहा हूं 

उम्र का एक दौर पार कर चुका हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं ।

श्रमिक किसान

मैं श्रमिक किसान

लोग मुझे देते सम्मान

कहते अन्नदाता भगवान ......


कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म 

कृषि मेरा कर्म ....


प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं

अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म 

नहीं भाता मुझे उत्पाद 

क्यों बनूं मैं उपद्रवी 

मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना 

फसल कीमती पोष्टिक 

कनक,धान ,फल और सब्जी....


धरती माता की समृद्धि देख 

मन हर्षाता ....


नन्हें बीज खेतों में बोता 

प्रकृति मां से अनूकूल 

वातावरण को प्रार्थना करता 

अपनी कर्मठता एवं श्रम से 

अच्छी फसल जब पाता 

मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।


मैं श्रमिक किसान धरती हो 

समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान 

मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है 

जीवन में प्राण ....


मैं किसान जीविका के साधनों 

मैं धरती मां समस्त प्रकृति का 

पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।


 




 






वीरों का शौर्य ......

*भारत माता का गौरव 

वीरों का शौर्य*

*भारत की आज़ादी नहीं इतनी सस्ती

बलिदान हुए हैं असंख्य शहीदों की हस्ती*


*असंख्य सपूतों के बलिदानों की

आहूतियों का सिंदूर भारत माता के  

को भेंट चढ़ा है तब जाकर स्वतंत्र हुआ है*


*अखंड सुहागन सिंदूर मस्तक पर 

रक्षा प्रहरी बन खड़े ‌सीमाओं पर 

भारत माता के लाल जांबाज .......


भारत माता के सिर का ताज‌ 

उत्तर में अडिग अनन्त हिम-आलय 

हिमराज ......


हंसते -खेलते बच्चों की क्रीड़ा में 

      अदृश्य

सिसकती सिसकियों की पीढ़ा 

सूने पड़े असंख्य परिवारों के आंगन 

कहते बिछड़न का दर्द ....



*भारत माता के सिर का ताज 

सिंह दहाड़ वीरांगना जांबाज

झांसी की रानी लक्ष्मीबाई 

अमर प्रेरणा भारत का सम्मान ......


मध्य भारत का विशाल ह्रदय 

फहराता विजय पताकाओं का साम्राज्य ......


राजस्थान की शौर्य गाथा 

देवी पद्मावती पूजनीय माता.....


इतिहास गवाह है मातृभूमि की 

पीढ़ा समाहित अनन्त अद्वितीय

अडिग किलों में जो रक्षा को करें बैठे 

अति उत्तम अमर प्रयास .....


सिंह दहाड़ चीर पहाड़ 

वीर शिवाजी ‌राना सांगा  

ताना जी के शौर्य गाथाओं ‌ 

का भारत ...... 

दक्षिण में कन्या कुमारी 

का गौरव देव तुल्य पूजनीय भारत माता

असंख्य भारत माता के लाल

 बलिदानों 

 आहूतियों का सिंदूर भारत माता के 

का भेंट चढ़ा है ।

सुशोभित हो रहा है 

यह आजादी इतनी सस्ती नहीं  

भारत माता की अखंडता 

भारत माता की स्वतंत्रता को 

खण्ड खण्ड हुए असंख्य बलिदानों का 








अच्छा सोचने की आदत डालें

"आंखों को सिर्फ अच्छा देखने की आदत डालें
मन को सिर्फ अच्छा सोचने की आदत डालें"
" माना की दुनियां में बुराई भी बहुत है
   और गन्दगी भी बहुत है ।

 तो इसका मतलब क्या ? हम बुराई छल-कपट के बारे में सोच -सोच कर अपने मन में नाकारात्मक विचार भर लें और अच्छाई में भी बुराई ढूंढ -ढूंढ कर सब ओर बुराई ही देखने लग जायें , और बहर का सारा कूड़ा और बुराईयों को अपने अन्दर भर लें ?  

    जी नहीं यहां हमें अपनी सोच और अपनी नजरों को साफ रखना होगा।

 बदलनी होगी यहां हमें अपनी सोच , अपनी सोच और अपनी नजरों को इतना अच्छा कर लें कि बाहर की बुराईयों से आप बच कर निकल जायें‌ और वो आपके मन मस्तिष्क में अपना नाकारात्मक प्रभाव डालने में असफल हो जायें ।

 अपनी सोच और अपने विचारों को‌ को इतना साकारात्मक और पवित्र कर लिजिए कि, आप बुराई यों के कारण जान उनके निवारण का हल निकाल उनमें साकारात्मक परिवर्तन ला पायें। 

नज़रों का खेल है सारा 
दुनियां में अच्छाई भी है 
बुराई भी , किन्तु मनुष्य की
विडम्बना तो देखो .
कुछ बुरा या ग़लत क्या देख लिया
वह हर चीज में बुराई ढूंढने लगता है 
अनेकों खूबियों के बावजूद 
एक बुराई ग़लत सोचने को‌ विवश 
कर देती है ।
बुराई ,गन्दगी या छल-कपट कहीं बाहर होता है
या यूं कहिए किसी और की होती है 
और मनुष्य को तो देखो उस बुराई के 
बारे में सोच सोच कर मनुष्य अपना मन मस्तिष्क ही
गन्दा कर लेता है या यूं कहिए बाहर की गन्दगी अपने अन्दर भर लेता है ।





सपने ही तो अपने होते हैं

सपनों के पंख जब यथार्थ के 

धरातल पर पर उड़ान भरते हैं 

तब ही तो अद्भुत अविष्कार एवम्

चमत्कार होते हैं भव्य अतुलनीय

प्रस्तुतियों की मिसाल विश्व की धरोहर बनते हैं

सपने तो सपने होते हैं

सपने ही तो सिर्फ अपने होते हैं

बंद आंखो से देखे सपने भी सुनहरे होते हैं 

खुली आंखों से देखे सपनों में राज गहरे होते हैं 

खुली किताब पर कलम स्याही से तो

 हिसाब-किताब होते हैं

सपनों के बिना जीवन निराधार होता है

सपनों से ही जीवन का आधार होता है

सपनों से जीवन का सुन्दर आकर होता है

सपनों में ही तो बसा सुन्दर संसार होता है ।।

भावों का सार


विचार अभिव्यक्ति को 

विचारों का मंथन तो 

अवश्य होता है किन्तु 

भावों की उलझन में 

भावों की खिचड़ी ही बन जाती है ।

ना भाव रहते हैं ना भावों का सार 

सारा रस ही समाप्त हो जाता है 

और वास्तविक विचार स्वाहा हो जाता है 

विचार अभिव्यक्ति की उलझन में ।

विपरीत परिस्थितियां 

विपरीत हालात 

फिर भी जीने का हो मस्त अंदाज

जिंदादिली से जीने कला 

हौसलों में हो उड़ान ,

मुश्किलों को हंसकर पार कर जाना जिसकी शान  

किस्मत के हाथों बदल ही जाते हैं उसके हालत । 






 


हिंदी हिंदुस्तान का गौरव

 "हिन्दुस्तान" का गौरव ,हिंदी मेरी मातृ भाषा, हिंदुस्तान की पहचान हिंदुस्तान का गौरव "हिंदी" मेरी मातृ भाषा का इतिहास सनातन ,श्रेष्ठ,एवम् सर्वोत्तम है ।

भाषा विहीन मनुष्य पशु सामान है ,भाषा ही वह साधन है जिसके द्वारा हम अपने विचारों को शब्दों और वाक्यों के माध्यम से एक दूसरे से अपनी बात कह सकते हैं और भव प्रकट कर सकते हैं ।

हिंदी मात्र भाषा ही नहीं, हिंदी संस्कृति है,इतिहास है,हिंदी इतिहास की वह स्वर्णिम भाषा है जिसमें अनेक महान वेद ग्रंथो के ज्ञान का भण्डार संग्रहित है । 

अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा को अपनाना स्वयं का एवम अपने माता - पिता  के अपमान जैसा हैं ।

मातृ भाषा से मातृत्व के भाव झलकते है ।

हिन्दी मेरी मातृ भाषा मां तुल्य पूजनीय है ।

जिस भाषा को बोलकर सर्वप्रथम मैंने अपने भावों को प्रकट किया उस उस मातृ भाषा को मेरा शत-शत नमन ।

जिस प्रकार हमें जन्म देने वाली माता पूजनीय होती है उसी तरह अपनी मातृ भूमि अपनी मातृ भाषा भी पूजनीय होनी चाहिए ।

मातृ भाषा का सम्मान ,यानि मां का सम्मान मातृ भूमि का सम्मान ।  मां तो मां होती ,और मां सिर्फ एक ही होती है ,बाकी सब मां जैसी हो सकती है। ऐसे ही मातृ भाषा भी एक ही होती है।

अपनी मातृ भाषा को छोड़कर किसी अन्य भाषा की ऊंगली पकड़ना ,मतलब बैसाखियों का सहारा लेना स्वयं को अपंग बनना ।

अपनी मातृ भाषा हिन्दी अनमोल है ,अद्वितीय है ,जीतना पुरातन इतिहास हिन्दी भाषा का उतना किसी अन्य भाषा का नहीं । अपनी भाषा को अपना गौरव समझते हुए उसके साथ चलिए इतिहास गवाह है भारतीय संस्कृति का लोहा विश्व में सदियों से अपना गौरवान्वित इतिहास बनाता आया है ,और आगे भी बनाएगा ।

  



आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...