विचार अभिव्यक्ति को
विचारों का मंथन तो
अवश्य होता है किन्तु
भावों की उलझन में
भावों की खिचड़ी ही बन जाती है ।
ना भाव रहते हैं ना भावों का सार
सारा रस ही समाप्त हो जाता है
और वास्तविक विचार स्वाहा हो जाता है
विचार अभिव्यक्ति की उलझन में ।
विपरीत परिस्थितियां
विपरीत हालात
फिर भी जीने का हो मस्त अंदाज
जिंदादिली से जीने कला
हौसलों में हो उड़ान ,
मुश्किलों को हंसकर पार कर जाना जिसकी शान
किस्मत के हाथों बदल ही जाते हैं उसके हालत ।
वाह!!!
जवाब देंहटाएंसही कहा भावों की खिचड़ी ही बना देते हैं...
बहुत ही सुन्दर विचार।
Wah
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