“हौसलों का दामन पकड़ “ “

“हौसलों का दामन पकड़ “

“ तिमिर घोर तिमिर
वो झिर्रीयों से झांकती
प्रकाश की किरण
व्यथित , व्याकुल ,
पराजित मन को ढाढ़स बँधाती
हौंसला रख ए बंदे
उम्मीदों का बना तू बाँध
निराशा में मत अटक
भ्रम में ना भटक
वो देख उजाले की झलक
कर्मों में जगा कसक
नाउम्मीदी को ना जकड़
उजियारा दे रहा है तेरे द्वार
पर दस्तक
तेरा हौसला ही तेरे आगे बढ़ने का सबब
हौसलों ने उम्मीद के संग मिलकर
रचे हैं कई आश्रयजनक अचरज
तेरे हौसलों ने दिखाने हैं अभी कई बड़े- बड़े करतब ।

16 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! हौसले ज़िंदगी को सार्थक अर्थ प्रदान करते हैं। सुन्दर रचना।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ८ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. जी sweta सिन्हा जी धन्यवाद मेरी लिखी रचना को पाँच लिंको के आनंद में सम्मिलित करने के लिये आभार

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  3. वाह बहुत सुंदर,
    प्रेणादायी रचना।हौसला कभी नही हरण चाहिए।हिम्मत करने वालो की कभी हार नही होती।
    आभार

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  4. बेहद लाजवाब रचना
    हौसले बुलंद हों तो क्या क्या नहीं होता इस जहाँ में.

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  5. होंसला ... बहुत जरूरी है होना इसका ...
    इनकी बुलंदी दिवाली है कितने मुकाम ... सुन्दर रचना है ...

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  6. वाह!!रितु जी ,बहुत सुंदर हौसला बढाती हुई रचना !

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  7. वाह बहुत सुन्दर कर्म पथ का आह्वान करती भाव प्रणव रचना ।

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  8. बहुत सुन्दर ...हौसला बढाती रचना...
    वाह!!!

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