उद्देश्य मेरा सेवा का पौधारोपण



उद्देश्य मेरा निस्वार्थ प्रेम का पौधारोपण 

अपनत्व का गुण मेरे स्वभाव में 

शायद इसी लिए नहीं रहता अभाव में 

 सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

समाज हित की पौध लिए

श्रद्धा के पुष्प लिए भावों की 

ज्योत जलाएं चाहूं फैले च हूं और 

उजियारा निस्वार्थ दया धर्म

का बहता  दरिया हूं बहता हूं निरंतर 

आगे की ओर बढ़ता सदा निर्मलता 

का संदेश देता भेदभाव का सम्पूर्ण 

मल किनारे लगाता सर्व जन 

हित में उपयोग होता सर्वप्रथम खड़ा हूं पंक्ति में 

निर्मलता का गागर भरता ।







अखण्ड ज्योति

 निरंतर आशा के दीप जलाते चलो 

अंधियारा तनिक भी रहने पाए 

पग- पग पर हौसलों के प्रकाश 

फैलाते चलो ।

देखो! किसी दीपक की लौ 

ना डगमगाये उम्मीद की नयी किरणों के 

प्रकाश मन - मन्दिर में जलाते चलो 

 मन के अंधियारे में धैर्य और विश्वास 

 की अखण्ड ज्योति प्रकाशित करो

 हौसलों के बांध बनाते चलो 

देखो कोई ना अकेला ना रह जाये सबको 

संग लेकर चलो सौहार्द का वातावरण बनाते चलो

 दुर्गम को सुगम बनाते चलो‌

 पग -पग पर शुभता के दीप जलाते चलो 

 अंधियारा को तनिक भी ना समीप बुलाओ  

उजियारा हो ऐसे जैसे हर रोज 

 हर- पल दीपावली हो, परमात्मा के 

आशीषो की शीतल छाया का एहसास निराला हो।

 


विचार बड़े अनमोल

विचार बड़े अनमोल होते 

विचारों ही बनाते हैं 

विचार ही बिगाड़ते हैं 

जिव्हा पर आने से पहले 

विचार मस्तिष्क में पनप जाता है 

विचारों का आकार होता है 

विचारों का व्यवहार होता है 

कौन कहता है हम करते हैं 

पहले विचारों के बीज पनपते हैं

फिर हम उन्हें नए -नए आकार देते हैं 

कौन कहता है विचार मनुष्य के बस में नहीं होते 

विचारों का दरिया जब बहता है

तब उसमें बांध बनाने होते हैं 

नहीं तो विचारों का ताण्डव 

क्रोध की अग्नि बन स्वयं भी 

जलता है और अन्यों को भी 

जलाता है।


परोपकार

चमत्कारों का आधार 
ए मानव तूमने बहुत 
किये चमत्कार 
तरक्की के नाम पर 
सुविधाओं की भरमार 
आशावादी विचार 
टूटते परिवार 
रोती हैं आंखें 
बिकती हैं सासे 
कुछ तो कारण होगा 
घुटन भरा माहौल 
हवाओं में फैला ज़हर 
यह कैसा कहर 
चार पहियों पर 
अंतहीन दौड़ती गाड़ियों का 
अंधाधुंध सफर प्राणवायु देते 
वृक्षों का कटाव अपनी ही 
सांसों पर प्रहार यह कैसी रफ्तार
प्रकृति की करुण पुकार 
ए मानव तू थोड़ी कम करता चमत्कार 
प्रकृति में निहित समस्त समाधान 
कर मानवजाति पर और समस्त प्राणियों पर उपकार 
प्रकृति का उपकार निहित मनुष्य जाति का हितोपकार ।

प्रकृति

 जिन्दगी को नये मायने मिले हैं 

जब से सूकून के पल मिल हैं 

पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी 

पत्थर के मकानों ‌‌‌‌‌में रहते 

एक अनजानी दौड़ में शामिल 

बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल 

फिर क्या हुआ हासिल 

हवाओं 

चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है 

जब प्रकृति के समीप जाती हूं 

घने वृक्षों की शीतल छाया में  

तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं

मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के 

चहकने की आवाज से कानों में

मीठा एहसास हो जाता है



चित्रकार

तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 
चल संवार अपना भाग्य संवार 
अच्छी सोच सभ्य आचरण एवं 
कर्मठता के प्रयासों से दे 
स्वयं के जीवन को सुन्दर आकार 
योग्यता अपनी-अपनी
बुद्धि, विवेक, एवं श्रम 
की मथनी धैर्य,
लगन की स्याही 
प्रयासों की की कूंजी
खोले भाग्य के द्वार
तुम स्वयं अपने चित्रकार 
तो आगे बढ़ो 
दृढ़ निश्चय की छैनी 
कर्मठता का हथौड़ा 
संवार अपना भाग्य संवार 
तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 

 

बेहतर कल के लिए

 आज रुक जाना बेहतर है 

अच्छे कल के लिए 

भीड़ ज्यादा थी 

रफ्तार बहुत तेज 

रोक दिया गया 

अच्छा हुआ 

चोट खाने से 

घायल,जख्मी 

बहुत कुछ क्षतिग्रस्त 

होने से बच गया 

दुर्घटनाओं का 

सिलसिला थम गया 

कई घरों के चिराग 

बुझने से बच गए 

कई घरों की 

दो वक्त की रोटी

का प्रबन्ध बना रहा .... 


आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...