विचार बड़े अनमोल

विचार बड़े अनमोल होते 

विचारों ही बनाते हैं 

विचार ही बिगाड़ते हैं 

जिव्हा पर आने से पहले 

विचार मस्तिष्क में पनप जाता है 

विचारों का आकार होता है 

विचारों का व्यवहार होता है 

कौन कहता है हम करते हैं 

पहले विचारों के बीज पनपते हैं

फिर हम उन्हें नए -नए आकार देते हैं 

कौन कहता है विचार मनुष्य के बस में नहीं होते 

विचारों का दरिया जब बहता है

तब उसमें बांध बनाने होते हैं 

नहीं तो विचारों का ताण्डव 

क्रोध की अग्नि बन स्वयं भी 

जलता है और अन्यों को भी 

जलाता है।


परोपकार

चमत्कारों का आधार 
ए मानव तूमने बहुत 
किये चमत्कार 
तरक्की के नाम पर 
सुविधाओं की भरमार 
आशावादी विचार 
टूटते परिवार 
रोती हैं आंखें 
बिकती हैं सासे 
कुछ तो कारण होगा 
घुटन भरा माहौल 
हवाओं में फैला ज़हर 
यह कैसा कहर 
चार पहियों पर 
अंतहीन दौड़ती गाड़ियों का 
अंधाधुंध सफर प्राणवायु देते 
वृक्षों का कटाव अपनी ही 
सांसों पर प्रहार यह कैसी रफ्तार
प्रकृति की करुण पुकार 
ए मानव तू थोड़ी कम करता चमत्कार 
प्रकृति में निहित समस्त समाधान 
कर मानवजाति पर और समस्त प्राणियों पर उपकार 
प्रकृति का उपकार निहित मनुष्य जाति का हितोपकार ।

प्रकृति

 जिन्दगी को नये मायने मिले हैं 

जब से सूकून के पल मिल हैं 

पत्थर सी हो गई थी ज़िन्दगी 

पत्थर के मकानों ‌‌‌‌‌में रहते 

एक अनजानी दौड़ में शामिल 

बन बैठे स्वयं के ही जीवन के कातिल 

फिर क्या हुआ हासिल 

हवाओं 

चेहरों पर मुस्कान खिल जाती है 

जब प्रकृति के समीप जाती हूं 

घने वृक्षों की शीतल छाया में  

तनाव रहित जीवन का सुख पाती हूं

मन हर्षित हो जाता है पक्षियों के 

चहकने की आवाज से कानों में

मीठा एहसास हो जाता है



चित्रकार

तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 
चल संवार अपना भाग्य संवार 
अच्छी सोच सभ्य आचरण एवं 
कर्मठता के प्रयासों से दे 
स्वयं के जीवन को सुन्दर आकार 
योग्यता अपनी-अपनी
बुद्धि, विवेक, एवं श्रम 
की मथनी धैर्य,
लगन की स्याही 
प्रयासों की की कूंजी
खोले भाग्य के द्वार
तुम स्वयं अपने चित्रकार 
तो आगे बढ़ो 
दृढ़ निश्चय की छैनी 
कर्मठता का हथौड़ा 
संवार अपना भाग्य संवार 
तुम स्वयं ही अपने चित्रकार 

 

बेहतर कल के लिए

 आज रुक जाना बेहतर है 

अच्छे कल के लिए 

भीड़ ज्यादा थी 

रफ्तार बहुत तेज 

रोक दिया गया 

अच्छा हुआ 

चोट खाने से 

घायल,जख्मी 

बहुत कुछ क्षतिग्रस्त 

होने से बच गया 

दुर्घटनाओं का 

सिलसिला थम गया 

कई घरों के चिराग 

बुझने से बच गए 

कई घरों की 

दो वक्त की रोटी

का प्रबन्ध बना रहा .... 


हिम्मत का कदम बढ़ाना हैै, हारना नहीं हराना है 

तूफानों को तो आना है, दस्तूर यह पुराना है 

सही बात है बातें करना बहुत आसान है उन पर अमल करना बहुत मुश्किल ।

 मुश्किल हालातों में जब सब ओर डर और नकारात्मक विचारों का माहौल हो उस समय ,साकारात्मक विचारों से ओत-प्रोत विचार मरहम का काम कर हौसलों को मजबूत करने का काम करते हैं, और मन में आत्मविश्वास का दीप जलाकर मन को धीरज देकर कर कहते हैं रास्ते अभी और भी हैं  हिम्मत मत हारना, कल फिर नया सूरज निकलेगा 

 सच में कहना बहुत आसान है , जिस पर बीतती है वही जानता है । किन्तु हिम्मत तो करनी पड़ेगी अपनों के लिए आने वाले कल के लिए .... 

 सोच को साकारात्मक रखना ही होगा , जो समक्ष है उन्हें साकारात्मकता का प्रकाश देना ही होगा आने वाली पीढ़ी की सोच को साकारात्मक विचारो‌ के हौसलों से तैयार करना होगा । 

जो हो रहा है असहनीय है ,जो छिन रहा है अनमोल है किन्तु जो शेष बच रहा है वह अमूल्य धरोहर है इस समाज की,अपनी आने वाली पीढ़ी को क्या दोगे ,यही सोच कर कुछ प्रेरक कुछ उपयोगी कुछ साकारात्मक विचारो की संपदा छोड़ जाने की चाह में कुछ करते चले जातीहूं ।

 कभी कभी  स्थितियां ऐसी आती है , मनुष्य तन से भी कमजोर हो जाता है परिस्थितियां बिल्कुल विपरीत होती हैं ,उस वक्त मनुष्य को हौसलों की अधिक आवश्यकता होती है ।और साकारात्मक विचार बहुत सहयोगी साबित होते है




सतर्कता से जो कदम बढ़ाता है,

जीत को समीप पाता है 

धैर्य को जो धारण करता है

मुश्किलों से ना घबराता है,

साहस से आगे बढ़ता जाता है 

हौसलों के काफिले बनाता है , 

उम्मीदों की किरणों के दीपक

 लेकर संग लेकर चलता है , 

निराशा में आशा के दीप जलाता है 

वह जीवन की जंग में एक 

सफल यौधा बन जाता है ।।


वह मनुष्य जग को नयी राह 

दिखाता है जग जीवन बन जाता है 

इतिहास बहुत कुछ दोहराता है 

वक्त का चक्र चलता जाता है 

कभी अमृत तो कभी विष भी निकल 

आता है, विष जब अपना प्रताप दिखाता है 

जिवाणुओं का वाईरस महामारी बन अपना 

कहर दिखाता है ,राक्षस की भांति संसार पर  

का विनाश का कारण बन जाता है ,सब और 

त्राहि-त्राहि हो जाता है कलयुग का चौथा चरण 

कष्टदाई आधि-वयाधियों से घिर जाता है 

तब मसीहा, स्वयं धरती पर अवतरित हो जाता 

जागरूकता का की मशाल जलाता  है 

धैर्य,संयम,सतर्कता साहस अनगिनत अनमोल 

रत्नों की उपयोगिता को जीवन में धारण करने की 

उपयोगीता बताता है उम्मीद की किरण बन 

जीवन में अमृत बरसाता है जीने की राह दिखाता  है। 

यौधा है वो जो लड़ता है ,देश का सेवक होता है 

 जीवन दान देता है 


 

कीमती वही जो उपयोगी हो


 राम सिंह:-  यह महानगर है, बड़े -बडे लोग रहते हैं यहां बहुत पैसे वाले यह लोग जमीन पर पैर नहीं रखते , लम्बी लम्बी गाड़ियों में घूमते हैं । और मौका मिले तो हवाई जहाज में बैठ कर आसमान की ऊंचाइयां भी नापते हैं ।

शामू :- अच्छा बड़े -बडे लोग बड़ी बड़ी बातें कितने एश ओ आराम हैं ,वाह जिंदगी हो तो ऐसी हो ।और यह बड़े-बड़े लोहे के सिलेंडर यह किस लिए हैं शामसिंह।

 राम सिंह :- शाम सिंह तुम जहां हो ठीक हो (दूर के ढोल सुहाने ) समझ लो ।

शाम सिह:- नहीं फिर भी जीते तो शहर वाले हैं ,हम गांव वाले दिन भर काम ही काम.....

रामसिंह :-  काम करते हो अच्छी बात है तुम्हारा व्यायाम हो जाता है ,शहर वाले तो पैसे खर्च करते हैं व्यापाम के लिए भी , शहर में तो हर चीज बिकती है ,हवा, पानी,सांसें आदि -आदि जो गांवों में बेमोल हैं इनकी कद्र करो , जीवन रहते मेरे अपनों ...

शामसिंह :- क्या वहां सांसें भी बिकती है ?

राम सिंह :- बिल्कुल सही प्रश्न किया तुमने . आजकल शहरों में एक महामारी फैली हुई हैं , अगर यह बिमारी शरीर में अन्दर तक फैल जाती है तो उस व्यक्ति के फेफड़ों को खराब कर देती है और उस इंसान को सांस लेने में दिक्कत होने लगती है उसका दम घुटने लगता है ,और कभी कभी तो मृत्यु भी हो जाती है ।

किसी किसी को तो डाक्टर की परामर्श से आक्सीजन वही प्राण वायु जो जो गांवों में मुफ्त में पेड़ पौधों से मिल जाती है, सांस लेने के लिए वह हवा उन्हें पैसे देकर खरीद नी पड़ रही है 

शाम सिंह :-  ओहो!  अच्छा वो लम्बे लम्बे लोहे के सिलेंडर उनमें आक्सीजन है ,यानि इंसान के सांसों के लिए हवा ....

कैसा समय आ गया है , प्रकृति ने मनुष्यों के जीने के लिए सब व्यवस्था की है, लेकिन मनुष्यों ने बिना सोचे समझे प्रकृति के साथ खिलवाड़ किया ,आज स्थिति ऐसी कर दी की अपनी सांसों के लिए भी हवा नहीं बची ,वो भी खरीदनी पड़ रही है ।

रामसिंह :- शहर वालों का रुपया पैसा सब धरा के धरा रह जाएगा आज वो दुनिया की मंहगी सी महंगी चीजें खरीद सकते हैं , किन्तु क्या फायदा ,जब सांसें ही नहीं रहेगी तो सब पैसा यहीं पड़  रह जाएगा ।

महंगे से महंगा सौदा भी आपकी सांसें नहीं लौटा सकता 

जीते जी ज़िन्दगी की कद्र करो मेरे अपनों गयी ज़िन्दगी और गया वक्त फिर लौटकर नहीं आता ।






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...