मेरा सुन्दर सपना

 मासूमियत उसके चेहरे से छलक रही थी ,धूल से लतपत से कपड़े पैरों में चप्पल भी नहीं , फिर वो बालक अपनी और आकर्षित कर रहा था ,ना जाने क्यों मन कर रहा था इसे अपने पास बिठाकर बहुत कुछ समझाऊं ‌।

उस नन्हे बालक की भोली निगाहें कभी सामने बनी शानदार बंगलों को निहार रही थी कभी पास में खड़ी मंहगी गाड़ीयों को निहार रही थीं ।

वो नन्हा बालक पास में खड़ी मंहगी लम्बी गाड़ी को ऐसे हाथ लगा कर देख रहा था मानो वह कोई सपना देख रहा हो ,और सोच रहा हो एक दिन बड़ होकर मैं भी शायद ऐसी गाड़ी लूं ‌और उसमें बैठकर दूर घूमने निकलूं ‌।

तभी सामने के बड़े से घर से एक आदमी निकला और उस ‌छोटे बच्चे को दूर से गुस्सा दिखाते हुए अरे हट जा सारी गाड़ी पर निशान बना दिए ,कभी देखी है ऐसी गाड़ी । वह‌ बच्चा डर के गाड़ी से दूर हट गया ।

थोड़ी देर बाद वह‌ बच्चा हिम्मत करके उस गाड़ी वाले आदमी के पास आकर पूछ बैठा अंकल ‌यह गाड़ी कितने की है ,वह आदमी पहले तो उस‌ बच्चे की बात सुनकर जो र के हंसा... और फिर बोला क्या करेगा ,अंकल बड़ा होकर एसी गाड़ी खरीदूंगा ।



कलाकार

 कलाकार होना भी कहां आसान है 

अपनी कला को आकार देना पड़ता है 

एक आधार एक रुप एक ढंग से संवारना 

पड़ता है गुणों को पहचान कर स्वस्थ

सुन्दर आकर्षक प्रेरक प्रस्तुतियां देनी पड़ती हैं 

समाज को एक अनमोल साकारात्मक संदेश देने हेतु

संघर्ष करना पड़ता है 

सर्वप्रथम स्वयं को प्रोत्साहित करना होता है 

समाज के तानों को नजरंदाज करके 

स्वयं में एक उत्साह जागृत करना होता 

स्वयं को साबित करने के लिए एक जंग 

लड़नी पड़ती है कुछ विशेष कर के दिखाने को 

अपेक्षा का पात्र बन अनगिनत बार गिर -गिर कर उठना पड़ता है ।

या यूं कहिए सत्य को अग्नि परीक्षाएं देनी होती हैं

 हास्य का पात्र भी बनना पड़ता है 

यानि कलाकार को अपने हुनर को साबित करने के लिए 

आकार तो देना पड़ता है ।





इन्द्रधनुषी रंगों का सुन्दर संसार


मकसद तो एक है हर रंग को अपनाना
हर रंग से सामंजस्य बिठाना 
हर रंग से प्यार 
मुझे तो लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाऊं
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं
क्यों ना करुं मैं रंगों से प्यार 
इन्द्रधनुषी रंगों से सजा सुन्दर संसार 
हरियाली हरी -भरी समृद्धि का प्रतीक
हरे रंग में व्याप्त खुशहाली
लाल रंग विजय, सम्मान ,सवाभिमान 
केसरी रंग ,साहस, हिम्मत, हौसलों और वीरों का शौर्य
श्वेत रंग स्वच्छता, निर्मलता , पवित्रता एवं  शांति का प्रतीक ........
प्रकृति का अनुपम सौन्दर्य तो देखो 
रंगों का अद्भुत ताल मेल मन को मोहित कर जाता
दिल को हर्षाता सुकोमल ,सुन्दर रंगीन पुष्पों को‌ खिलौने वाला सृष्टि को रचने वाला अद्भुत कलाकार 
मैं भी बोलूं ये ‌कौन चित्रकार है .... श्रेष्ठतम चित्रकार है 
जिसने लगाया रंगों का मेला 
अब ना रहे कोई नीरस‌‌ अकेला 
सृष्टि सजी  है अनेकों रंगों के मिलकर
आओ सजायें और बनायें अलग-अलग रगों से अपनी और अपनों की जिंदगी बेहतर 
मुझे को लागे हर रंग प्यारा
 दिल चाहे मैं हर रंग में घुल मिल जाएं 
उन रंगों से अपने और अपनों की जिंदगी बेहतर बनाऊं।



लेखक और लिखना

लेखक के मन दर्पण में

 विचारों रूपी  भाव 

जब प्रेरणा के रंग भरते हैं 

तब एक लेखक कुछ ज्ञानवर्धक कुछ प्रेरणास्पद 

कुछ सामाजिक ,कुछ मनोरंजक रंगों के सामांजसय से 

लिखकर समाज को एक अनमोल भेंट देता है ।


लेखक एक निर्दशक 

एक विचारक एक दार्शनिक

एक मनोरंजक भी होता है 

लेखक समाज का वो आईना होता है 

जिसमें स्वयं की पारदर्शिता होती है 

लेखक एक जौहरी की भांति 

विचारों को शब्दों को‌ भावों को 

तराशता है फिर संवारता है 

और फिर रसों की अनुभूति से 

एक संकलन तैयार करता‌ 

जो प्रेरणास्रोत बन समाज को 

युगों-युगों तक प्रेरित करता रहता है ‌।



भावों का सुन्दर होना  

स्वस्थ मानसिकता

 मां शारदे का आशीर्वाद 

दार्शनिक विचार

सभ्य सुन्दर सुसंस्कृत समाज हित में 

जो वर्तमान एवं आने वाले 

समाज के लिए प्रेरणा स्रोत 

हो लिखना पड़ता है ।

जिंदा रहने का शौंक

जिंदा है वो जो जीने 
का शौंक रखता है 
शख्सीयत मेरी मिट्टी 
ही सही,लेकिन भव्य
किले,महल बनाने के 
बुलंद हौसले रखता हूं।

मैं अजनबी निकला हूं
अजनबी शहर में
कुछ पाने को 
दिल को समझाने को 
किसी को अपना बनाने को 

मुसाफिरों की भीड़ में
मैं भी एक मुसाफ़िर
सजा रहा हूं आशियाने को
जानता हूं लौट जाना होगा
फिर ना आना होगा 
इसी लिए तो छोड़ जाने को
बेताब हूं कुछ अमिट अनमोल 
निशानियों को ....

जाने से पहले कुछ ऐसी
 छाप छोड़ जाऊंगा याद 
आता रहूंगा अपने द्वारा 
रची कहानियों से कर्मों की 
निशानियों से ....




असली -नकली

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें 

करना चाहता हूं 

मुखौटों के बाजार में 

कौन है असली

 कौन है नकली 

पहचान करना चाहता हूं 

अरे! यहां तो नकली भी 

खालिस नहीं 

असली भी मिलावटी 

अब जायें तो जायें कहां 

नकली भी असली नहीं  

असलियत का चेहरा तो 

अब नजर ही नहीं आता 

किसकी खोज कर रहा हूं मैं 

खोजते -खोजते मैं भी बदल रहा हूं 

उम्र का एक दौर पार कर चुका हूं 

मुखौटों के आकर्षण देख 

अक्सर मोहित हो जाता हूं 

मुखौटों के पीछे का सत्य कैसा होगा

मैं शाश्वत सत्य की बातें करना चाहता हूं 

सत्य की खोज उसकी वास्तविकता को 

समझना चाहता हूं ।

श्रमिक किसान

मैं श्रमिक किसान

लोग मुझे देते सम्मान

कहते अन्नदाता भगवान ......


कृषक हूं ,कृषि मेरा धर्म 

कृषि मेरा कर्म ....


प्रकृति की गोद में पलता -बढता हूं

अनछुये नहीं मुझसे दर्दों के मर्म 

नहीं भाता मुझे उत्पाद 

क्यों बनूं मैं उपद्रवी 

मेरा उत्पादन है , खेतों में बोना 

फसल कीमती पोष्टिक 

कनक,धान ,फल और सब्जी....


धरती माता की समृद्धि देख 

मन हर्षाता ....


नन्हें बीज खेतों में बोता 

प्रकृति मां से अनूकूल 

वातावरण को प्रार्थना करता 

अपनी कर्मठता एवं श्रम से 

अच्छी फसल जब पाता 

मन हर्षाता खुशी के गीत गाता ।


मैं श्रमिक किसान धरती हो 

समृद्ध ना रहे भूखा इन्सान 

मेरे द्वारा उगाऐ अन्न तो देते है 

जीवन में प्राण ....


मैं किसान जीविका के साधनों 

मैं धरती मां समस्त प्रकृति का 

पाकर संग जीवन में भर लेता हूं रंग ।


 




 






आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...