*तीज का त्यौहार लेकर आता खुशियों की सौगात*

 पक्षियों के चहकने की आवाज
  खनकती चूड़ियों का आगाज
  सुहागनों के हाथों में रचती पवित्र
   मेहंदी की सौगात आओ सखियों
    झूमे नाचें गाएं आया है हरियाली तीज का त्यौहार
     **सावन का मौसम आया
संग अपने सुख-समृद्धि लाया
वर्षा की फुहारों से धरती का
जल अभिषेक जब होता है
प्रकृति प्रफुल्लित
हरी-भरी हो जाती है
वृक्षों की डालियां अपनी
बाहें फैलाती हैं
झूला झूलन को
सखियों को बुलाएं
प्रकृति संग सखियां भी
सोलह श्रृंगार करती हैं
वृक्षों की ओट में बैठ कोयल भी
मीठा राग सुनाती है
समस्त वातावरण संगीतमय हो जाता है
चूड़ियों की खनक मन को लुभाती है
हरियाली तीज को देवी पार्वती ने भी
सोलह श्रृंगार और कठिन उपवास कर
शिव को प्रसन्न किया था
उस दिन से हरियाली तीज की शुभ बेला पर
सुहागनें उपवास नियम करती हैं
वृक्षों पर झूलों की पींगे जब चड़ती हैं
आसमान की ऊंचाइयों में सखियां
झूल-झूल कर हंसती है
धरती झूमती है
प्रकृति निखरती है
पक्षीयों की सुमधुर ध्वनियों से
सावन में प्रकृति समृद्ध और संगीतमय हो जाती है**



*अनुभव*

 
  *मानव पहुंच गया आज चांद पर
 तुम खटिया पर बैठे दिन -भर 
 क्या बड़बड़ाती रहती

   इंटरनेट है ,हम सब का साथी
 उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती

   तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती 
 तेरी बात ना कोई समझना चाहता
 सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता

 अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
 उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको 
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती

मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ 
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर 
के संभली यही तो मैं कहना चाहती 
बेटा चलना थोड़ा संभलकर 
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी

मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों 
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो 
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना 
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।







कलम के सिपाही को कोटि-कोटि नमन



**कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी
 को शत -शत नमन **
   गबन, गोदान, नमक का दारोगा ,
कफ़न,ईदगाह ,आदि महान साहित्य
के राचियता की लेखनी
समाजिक विडंबनाओं और कुरीतियों
को देख तलवार की भांति चल पड़ती थी
जीवन का यथार्थ चित्रण कर
मानव जीवन का गहन दर्शन
उनकी गतिविधियों पर कठोर प्रहार
करती कलम के सिपाही जी की लेखनी
अपना इतिहास रच 
युगों -युगांतर तक लोगों के दिलों
में राज कर रही हैं और करती रहेंगी
समाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती
कलम के सिपाही मुंशी प्रेमचंद जी की
कहानियां आज भी एक सजीव चित्रण
के रूप में समाज को आईना
दिखाने में सक्षम हैं
और अमर है जीवन के
अनुभव परिवेश का सत्य
मुंशी प्रेमचन्द जी का लेखन
सत्य की मशाल लिए
समाज को आज भी प्रेरित
कर मार्गदर्शन कर रहा है
मुंशी जी कलम के सिपाही
को कोटि -कोटि प्रणाम

*बदलो तो यूं बदलो की आपको देखकर जमाना स्वयं को बदलने लगे*

*नकल करना बहुत आसान है पर कहते हैं ना नकल के लिए भी अकल चाहिए होती है किसी की अच्छी नकल करना जहां अच्छी बात है नहीं किसी की बुरी नकल करके हम स्वयं का ही बुरा कर बैठते हैं।
  बात हैआज की युवा पीढ़ी की, पाश्चात्य संस्कृति की ओर बढ़ती आज की युवा पीढ़ी

*मेघों की पालकी *

*मौसम वर्षा का था

नील गगन में मेघों

का राज था

मेघों का समूह गगन

में उमड़-घुमड़ कर रहा था

विभिन्न आकृतियां बना-बना

कर मानों अठखेलियां

कर रहा था जी भर के

अपनी मनमर्जीयां कर रहा था

मेघों का राज था

श्वेत मखमली मेघों का टुकड़ा

आचनक धरती पर उतर आया

मुझे अपने संग

श्वेत मखमली पालकी में बिठाकर

सुन्दर सपनों की दुनियां में

विहार करने को ले गया

मेघों की गोद और मैं रोमांचित

हृदय की धड़कने प्रफुल्लित

स्वर्ग सी अनुभूति

जादुई एहसास सिर्फ

प्रसन्नता ही प्रसन्नता

अक्लपनिय ,अद्भुत दुनियां

क्षण भर की सही

बेहतरीन बस बेहतरीन

फरिश्तों से मिलन की

अतुलनीय अद्वितीय कहानियां *






*क्यों ना बस अच्छा ही सोचें *

**क्यों अपने संग बेवजह का बोझ
लेकर चलूं क्यों ना हल्का हो जाऊँ और
बिना पंखों के भी ऊंचा उड़ूं
क्योंकि जो जितना हल्का होगा
उतना ऊंचा उड़ेगा

क्यों ना कुछ अच्छा सोचें
अच्छा ही बोले अच्छा ही सुने
और अच्छा ही करें
और फिर अच्छा करते-करते
जब सब और अच्छा ही हो जाए

अच्छों की दुनिया अच्छी ही होती है
ऐसा नहीं की की बुराई नहीं आती
मुश्किलें नहीं आती
आती तो है कठिनाइयां बहुत आती हैं
परंतुअच्छा सोचने वालों के लिए हर मुश्किल भी अच्छाई की ओर ले जाने वाली सीढ़ियां बन जाती है

इल्जाम भी लगते हैं
स्वार्थी घमंडी अहंकारी
होने की तोहमतें भी लगती हैं
पर जो अच्छा सोचता है
उसे आदत पड़ जाती
वो बुराई के नरक में जाने से
कतराता है झूठ के जाल में
फंसने से डरता है
जो सच्चा होता है वो
आजाद हो जाता है
झूठ के नकाब के मायाजाल से
फ़िर क्यों ना मैं भी उडूं
मदमस्त ,बेफिक्र आसमां की ऊंचाइयों में
और अच्छा बनने की कोशिश करूं ।

**किसान हमारा भगवान **



**किसी भी देश,प्रदेश समाज जाति का सबसे उच्चतम और सम्मानिय वर्ग अगर कोई है तो वो हैं हमारे किसान ,यानि अन्नदाता धरती पर मनुष्यों के भगवान ।
ऊंचे-ऊंचे पदों पर बैठे पदाधिकारी आज उन्नति और प्रग्रती की ऊंचाइयां छू रहे हैं यह तभी संभव है जब देश की सभी लोग तन-और मन से पुष्ट हों और यह तभी संभव है जब उन्हें पौष्टिक अन्न मिलेगा ।
अतः सर्वप्रथम देश का किसान सबसे उच्चतम पद पर होता है ।

**कृषक यानि अन्नदाता जिस वर्ग को समाज में सबसे ज्यादा समृद्ध होना चाहिए वही वर्ग यानि कृषक हम सब के लिए धरती पर हमारा अन्नदाता ही सबसे ज्यादा अभावों में जीवन जीता है । इससे बड़ी और क्या विडंबना होगी।
किसी भी मनुष्य को धरती पर जीवन जीने के लिए सबसे पहली और आखिरी आवयश्कता अन्न ही है ।
अन्न किसी भी रूप में, अन्न की खातिर ही मनुष्य की सबसे पहली दौड़ शुरू होती है ।
कोई भी मनुष्य दो वक़्त की रोटी के लिए मेहनत करना शुरू करता है ,कभी भी किसी ने  इतनी गहराई से नहीं सोचा होगा की वो अन्न कहां से और कैसे आता है माना कि सबको ज्ञात है ।
एक कृषक तपती दोपहरी में खेतो में काम करता है
खेतों की मिट्टी को उपजाऊ बनाने के लिए कठोर परिश्रम करता है एक कृषक का जीवन मेहनत और लगन की अद्भुत मिसाल होता है एक कृषक के वस्त्र और हाथ अपने खेतों की मिट्टी का हमेशा परिचय देते रहते हैं ।
वहीं दूसरा पहलू बड़े -बड़े पदों पर कार्यरत  वातानुकूलित कक्षों में बैठे पदाधिकारी इन्हीं कृषकों और इनके मिट्टी से सने वस्त्रों को देख इनसे दूरी बनाते हैं ।
विषय विचारणीय है ,उसी मिट्टी से सने हाथों और मिट्टी में उपजे अन्न से ही हम सब की पेट की भूख मिटती है और हम तृप्त होते हैं
अन्न अमृत है ,अन्न और अन्नदाताओं कृषकों का यथोचित सम्मान होना आव्यशक है।
जिस तरह घर में गृहणी अगर प्रसन्न और स्वस्थ रहती है तो घर स्वर्ग बन जाता है उसी तरह अगर देश के अन्नदाताओं कृषकों को यथोचित सम्मान मिलेगा तो कृषक स्वस्थ और सम्पन्न रहेंगे तो देश भी उन्नति करेगा और देश खुशहाल और समृद्ध होगा।




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...