*मानव पहुंच गया आज चांद पर
तुम खटिया पर बैठे दिन -भर
क्या बड़बड़ाती रहती
इंटरनेट है ,हम सब का साथी
उसके बिना ना हम सब को जिंदगी भाती
तुम क्यों बेवजह अम्मा बड़बड़ाती
तेरी बात ना कोई समझना चाहता
सारा ज्ञान इंटरनेट से मिल जाता
अम्मा बोली हां मैं अनपढ़, ना अक्षर ज्ञानी
उम्र की इस देहलीज पर आज पहुंची हूं
क्या दे सकती हूं मैं तुम सबको
अपना काम भी ना ढंग से कर पाती
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर
के संभली यही तो मैं कहना चाहती
बेटा चलना थोड़ा संभलकर
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी
मैं तो सिर्फ अपने अनुभव बांटती
जो आता है जीवन जीने से देखो
तुम नाराज़ ना होना मेरे बच्चों
आज जमाना इंटरनेट का
चन्द्रमा तक तुम पहुंच चुके हो
अंतरिक्ष में खोजें कर रहे हो
आशियाना बनाओ चन्द्रमा पर अपना
पूरा हो तुम सब के जीवन का सपना
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।
मैं तो बस अपने अनुभव बांटती
ना मैं ज्ञानी ,ना अभिमानी।
जवाब देंहटाएंमैं तो बस अपने अनुभव बांटती
जीवन के उतार-चाढाव के कुछ
किस्से सुनाती कई बार गिरी ,गिर-गिर
के संभली यही तो मैं कहना चाहती
बेटा चलना थोड़ा संभलकर
तुम ना करना मेरे जैसी नादानी
बेहतरीन रचना ऋतु जी
जी शुक्रिया नमन अनुराधा जी
हटाएं
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ अगस्त २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद
जी शुक्रिया स्वेता जी मेरी लिखी रचना को पांच लिंको के आनंद में शामिल करने के लिए नमन शुक्रिया
हटाएंबहुत बहुत सुंदर सार्थक मन को अंदर तक छूने वाली रचना ।
जवाब देंहटाएंजी आभार
हटाएंबहुत सटीक...
जवाब देंहटाएंइन्टरनेट के जमाने में बुजुर्गों के अनभव भला कौन सुन रहा है
उम्दा सृजन...
जी सुधा जी नमन
हटाएंवाह! प्रिय ऋतू जी !
जवाब देंहटाएंबड़ी प्यारी अम्मा सयानी
कहती रहती जो खूब कहानी
अनुभव इनका अनमोल बड़ा
ना कोई जैसा सुघड़ ज्ञानी
मन खुश हु पढकर ये भावपूर्ण सीढ़ी सड़ी सी रचना | हार्दिक बधाई ऋतू जी | बड़े भाग्य शाली हैं वो जो इन अम्माओं के सानिध्य में रहते हैं |
जी रेणु जी नमन शुक्रिया
हटाएं