*अनुभव*

अनुभव ना होते तो
आज मैं जो हूं ,वो ना होता
अनुभवों ने मुझे
जीने की कला सिखाई
अब मैं भी माहिर हो गया हूं
अपना हर कदम
अपने अनुभव के आधार
पर उठता हूं ,ऐसा भी नहीं की
मैं कुछ ज्यादा जानता हूं
मैंने अपनी गलतियों से ठोकरें
बहुत खायी हैं ,अब संभला हूं तो
अनुभव हुआ , इसी लिए
कहता हूं अनुभव इंसान का सबसे
बड़ा मित्र है, कोई भी इंसान सीखने
या सीखाने से इतना नहीं सीख पाता
जितना वो अपने अनुभवों से सीखता है
इसलिए कहते हैं अनुभव होना जरूरी है
चलो तो सही एक बच्चा भी गिर-गिर कर ही
संभलना सीखता है ।

                                           



**उम्मीद **

जहां तक बात उम्मीद की है
मेरी मानना है की किसी से भी उम्मीद ना ही रखी जाए तो अच्छा है क्योंकि जब किसी से उम्मीद रखते हैं और वो उम्मीद पूरी नहीं होती या अमुक व्यक्ति हमारी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो हमें दुःख होता है ,हम स्वयं तो दुःखी होते हैं और अमुक व्यक्ति को भी बुरा कहते हैं ।
हां हो सकता है अमुक व्यक्ति ने आपसे वादा किया था और वो आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो थोड़ा सोचने वाली बात है ....परंतु यहां भी नुकसान अपना ही है ,सोच -सोच कर हम स्वयं को ही मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं ।
परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को सोचने -समझने की शक्ति दी है जिस शक्ति का हम स्वेच्छा से अपनी सामर्थ्य अनुसार भला -बुरे के विवेक के अनुसार उपयोग कर सकते हैं ।
उम्मीद रखिए स्वयं से ,स्वयं के मनोबल से .....
अपनी योग्यता ,और परिश्रम को इतना योग्य बनाइए कि आपको किसी से उम्मीद की आ -वश्यकता ही ना पड़े ।
मान लीजिए आपको नदी के उस पार जाना है तो आप उम्मीद करें कि ये नदी का जल कुछ देर के लिए ख़तम हो जाए या नदी ही हट जाए तो ये तो होने वाला नहीं है यानि ये उम्मीद ही करनी बेकार है ।

** रोना बंद करें स्वयं को सक्षम बनाइए **

      मेरे एक मित्र ने मुझे कहा कि मैं किसी की वजह से बहुत दुःखी हूं ।
   मैंने उसके साथ कभी भी बुरा नहीं किया ,उसने मेरे साथ इतना बुरा क्यों किया ,मैंने उसका क्या बिगाड़ा था ।
उसने जो कुछ भी बुरा किया है ,ना उसका फ़ल उसे भगवान देगा ...........
   एक पल को तो मैं अपने मित्र की बातों से भावुक हो गई ,बड़ा दुःख हो रहा था मुझे उसकी स्थिति देखकर ...... फिर मैंने सोचा एक तो यह पहले ही दुःखी है , मैं इसका दुःख कम करने की बजाय बढ़ाने का काम करूं ,नहीं -नहीं यह ठीक नहीं होगा ...........
   मैं अपने मित्र की हर बात बड़े ध्यान से सुन रही थी,वो इसलिए नहीं की मैं उससे सहमत हूं ,वरन इसलिए कि वो अपने दिल की सारी भड़ास निकाल दे और अपना दिल हल्का कर ले......
   मेरा मित्र इतना दुःखी हो रहा था मानों...आगे कोई उपाय ही ना हो ....
  इतना सारा शब्दों का जहर उसके मुंह से बातों के रूप में निकल रहा था , कि सारी धरती जहरीली हो जाए ,उसने मेरे साथ बुरा किया ,उसका भी कभी भला नहीं होगा उसने धोखे से हमसे सब कुछ छीना है भगवान उससे भी उसका एक दिन सब कुछ छीन लेगा ,जो छल-कपट से काम करते हैं उनके साथ भी वही होता है ,जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है........
  ।अब मैंने मित्र की बात काटते हुए कहा सही......जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है ,अब तुम क्या कर रही हो ,तुम भी तो वही कर रही हो ,उसने जो ग़लत किया वो उसके कर्म ....अब तुम उसके बारे में सोच -सोच कर अपने लिये गलत कर रहे हो ।
अगर किसी ने कुछ ग़लत भी किया है, और उससे तुम्हारे जीवन में प्रभाव पड़ता है तो ,इसका मतलब तुम कमजोर हो ,अपनी आत्मिक शक्ति को मजबूत बनाओ ....
  इसने ये कर दिया वो कर दिया ,हमारे साथ ही बुरा क्यों होता है .....बुरा सिर्फ तुम्हारे साथ नहीं ...जिसकी वृत्ति बुरी है या गलत है ,या यूं कहिए जिसके पास जो होगा वो देगा ,कोई बुरा दे रहा है  आप उसे तो नहीं रोक सकते परंतु आप स्वयं को इतना मजबूत तो अवश्य बनाइए कि आप के पास जो बुराई आए आप उसे अपनी तरफ़ आने ही ना दे
     अब मौसम को ही ले लो .....मौसम कभी भी एक समान नहीं रहता,सर्दी,गरमी,बरसात, हम मौसम के अनुसार स्वयं को ढालते हैं।
अचानक से मौसम बिगड़ता भी है ,तेज आंधी ,तूफान आने लगता है ,तब क्या आप ये कहेंगे मौसम बड़ा ख़राब है ,इसने हमारे घर में ये कर दिया वो कर दिया ,नहीं ना ......आपको पता है ,मौसम बिगड़ता है आंधी, तूफ़ान ,सैलाब ,जलजला, कभी भी आ सकते हैं ,और इन हालातों से बचने के लिए आप स्वयं को तैयार रखते हैं ।
  ऐसे ही जिस प्रकार हाथ की पांचों उंगलियां एक जैसी नहीं होती ,उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव भी एक जैसा नहीं होता ,माना कि किसी में बुरा करने के गुण हैं ,और उससे आपको प्रभाव पड़ रहा है, तो जैसा खराब मौसम होने पर आप स्वयं को तैयार रखते हैं ऐसे ही नकारात्मक लोगों के प्रभाव में आते ही ,स्वयं को अपने सद्गुणों का कवच पहनाइए ,स्वयं की रक्षा व बचाव आपको स्वयं ही करना है ,सिर्फ रोते रहने और किसी को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला है ।
मजबूत बनिये दुनियां में कई परिस्थितियां आएंगी आपको प्रभावित करेंगी ,बजाय परिस्थिति या व्यक्ति को कोसने को इन नकारत्मक परिस्थितियों से लड़ते के योग्य बनाइए ।
 मित्र परिस्थितियां तो अच्छी या बुरी दोनों आयेंगी ही ,स्वयं को मानसिक रूप से भी सक्षम बनाइए
इतने कमजोर मत बनो की कोई भी बुरी परिस्थिति आए और तुम्हारा अस्तित्व हिला कर चले जाएं ।
किसी को या भाग्य को दोष देने से पहले स्वयं का विश्लेषण कीजिए ,और आने वाली किसी भी परिस्थिति का नकारात्मक प्रभाव आपके ऊपर ना पड़े स्वयं को इस योग्य बनाइए ।
                                                 ऋतु असुजा
                                                  ऋषिकेश

स्वर्ण मंदिर


स्वर्णिम आभा और दिव्य आलौकिक
प्रकाश पवित्र स्थल स्वर्ण मंदिर
दिव्य प्रकाश का तेज
सरोवर में देदीप्यमान स्वर्ण मंदिर
अद्भुत ,अकल्पनीय ,अवर्णनीय
चांद था ,चांदनी थी ,
झिलमिल सितारों की बारात थी
चांदनी की आगोश में सारा समा था
श्वेत, निर्मल,सादगी में सौंदर्य की चरमसीमा
सोलह कला सम्पूर्ण
आसमान से चांदनी बरस रही थी
सरोवर में यूं नहा रही थी मानों कई
परीयां जल में विहार कर रही हो

**सफलता की सीढ़ियां **

 **दुनियां के पास आपकी सफलता को नापने के अलग- अलग पैमाने हैं ,दुनिया की नज़रों से देखोगे तो कभी भी पूर्णतया सफ़ल नहीं हो पाओगे ,स्वयं की   कसौटी पर खरा उतरना है ....अगर आपको आत्मिक रूप से संतुष्टता  और प्रसन्नता प्राप्त हो रही है तो आप सफल हैं **
   **सफलता क्या है ,सफलता क्या सिर्फ कार्य सिद्धि है**
   *सफ़लता के बदले कुछ पा लेना ही सम्पूर्ण सफलता माना जाता है *

**मेरे लिए तो सफलता आत्मसंतुष्टि है**
अगर आपने किसी भी कार्य को पूर्ण निष्ठा ईमानदारी और लगन के साथ किया और अपना सर्वश्रेष्ठ उसमे दिया है ,तो मेरे लिए यह सम्पूर्ण सफलता है **
  साधारणतया लोग सफलता को  हार और जीत तक ही सीमित कर देते हैं ।
  सफलता क्या सिर्फ जीत या हार पर निर्भर है ,या सिर्फ कुछ पा लेना ही तो सफलता है।
    सफलता को कभी भी किसी रैंक से मत जोड़िए
प्रत्येक व्यक्ति की अपनी विशेषतायें होती है ।
   सबकी अपनी पहचान ,हाथ की भी सभी उंगलियां बराबर नहीं होती ,परंतु प्रत्येक की अपनी  विशेषता होती है।
   कोई किसी कार्य में निपुण होता है और कोई किसी अन्य कार्य में विशेष होता है ।
  अपनी विशेषताओं को पहचानिए और अपने कार्य में अपना विशिष्ट दीजिए ,अगर आप को संतुष्ट हैं तो आप सफल हैं ।
     संभवतः सत्य भी है ,लेकिन सफलता को कभी भी हार या जीत से मत जोड़िए अगर आपने कोई भी कार्य सम्पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से पूर्ण किया है ,और आपका वह कार्य संतोषजनक है ,और सकारात्मकता की और ले जाता है ,तो आप सफल है ।
    अगर आप किसी  प्रतियोगिता में भाग ले रहें हैं उसमें भी आपकी कार्य क्षमता के अनुसार ही परिणाम मिलता है ।
   अतः सफलता को किसी तराजू में मत तोलिए आपकी कार्य क्षमता ,आपके प्रयास आपकी सफलता का परिचय हैं ।
    **आप अपने कार्य से संतुष्ट हैं ,आपको आत्मसंतुष्टि मिल रही है तो निसंदेह सफल हैं ।
सफलता को कभी भी धनोपर्जन से मत जोड़िए ।
सफलता अपना अपना कार्य करते हुए स्वयं का और बेहतर समाज का निर्माण करने में जो सहायक हो सफलता हैं **

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...