अधूरा मनुष्य

चाहे कितना भी आगे बढ जाए मनुष्य कहीं भी पहुंच जाए आसमान की ऊंचाईयां छू ले दुनियां के सारे सुख साधन मिल जाएं मानव को ।
परंतु वास्तविक सुख और शांति का एहसास नहीं होता ।
एक शून्यता एक खोज सब सुख-साधन होने के पश्चात ,मनुष्य स्वयं को रिक्त पाता है,जाने कौन सी खोज जाने कौन सी प्राप्ति मनुष्य को विचलित करती रहती है ।
 सत्य एक खोज ,प्राप्ति तो आत्मा से परमात्मा के मिलन की होती है ।
मनुष्य की स्मृतियां संसार के सुख भीगते-भीगते विस्मृत हो जाती हैं ,वह भूल जाता है की वो यात्रा पर है, तन तो एक माध्यम है धरती पर जीवन यात्रा का ।

सत्य जो शाश्वत है, सत्य जो सरल है ,सत्य प्रेम है।

माना कि आगे बढना प्रकृति का नियम है ,नित नए शोध ,आविष्कार करना मनुष्य का अधिकार है ।

सत्य जो शाश्वत है सत्य जो कल भी थी आज। ही और सदा सर्वदा रहेगा

भारत कौन है,क्या है,भारत आप हैं मैं हूं ,और हम सब हैं ,भारत की पहचान भारत लका अस्तित्व ,हम सब भारत के नागरिकों से हैं ,हम सब भारतीयों भारत के नागरिकों के बिना भारत देश मात्र क्षेत्रफल या सीमा ही बनकर रह जाएगी ।
भारत मेरे देश की पहचान है यहां की संस्कृति ।

मेरे प्यारे देशवासियों ,भारत के नागरिकों
 भारत की पहचान क्या है?
 भारत मात्र क्षेत्रफल या क्या किसी सीमा का नाम  ही है ?  नहीं
भारत की पहचान हैं , हम सवा सौ करोड़ देशवासी।
आप , मैं और हम सब के बिना भारत की पहचान सिर्फ एक क्षेत्रफल है ।
किसी भी देश की संस्कृति ,वहां की सभ्यता ही वहां के नागरिक और नागरिकों के उच्च आदर्श ,कर्मों में कर्मठता ,ज्ञान ,विज्ञान और संस्कार ही उस देश की पहचान होते हैं ।
  सभी भारतीय ,भारत के नागरिकों के द्वारा किए गए निस्वार्थ कर्म जो स्वार्थ सिद्धि से ऊपर उठ कर सबके और समाज के हित में किए जाते हैं । 



डरना किस बात का .......

 डरते हैं, ना जाने क्यों एक
अनजाना डर से हम
 मनुष्य ग्रसित रहते हैं
आवयशक है ,यह डर भी
किन्तु डर से डरने की नहीं
सचेत रहने की आवश्यकता है
हर परिस्थिति से लडने में सक्षम
बनिए, डरिए नहीं, ऐसे बनिए की डर
भी आपको देखकर नम्र हो जाए।
अपना आज खराब क्यों करना
वर्तमान को संवारिए ,भविष्य
स्वयं संवर जायेगा ।
जो बीत गया लौट कर नहीं आने वाला
बीते हुए कल के दर्दों को कुरेदना भी
बहुत भाता है मनुष्य को
तभी तो मनुष्य अपनी जिंदगी के
सौ प्रतिशत में से कुछ प्रतिशत ही
वर्तमान में जीता है, बाकी सब
भूत और भविष्य की चिंता में बीता देता है
वर्तमान को बेहतर दें,भविष्य सुन्दर होगा
आत्मविश्वास ,साहस,और
धैर्य  की पूंजी संग रखिए ।
डर कुछ नहीं ,डर हम मनुष्यों
की सबसे बड़ी कमजोरी है
कमजोरी को ही अपनी ताकत बनाईए
डर कुछ नहीं हमारी सोच है इसे बदलकर
अपना जीवन खुशहाल बनाइए।




*लहूलुहान सृष्टि*

सृष्टि की रचना                     
प्रकृति की अद्भुत देन
प्राणियों के लिए के लिए वरदान                 
स्वार्थ में अंधा मानव 
बन बैठा शैतान 
मानव हो गया पथभ्रष्ट       
इंसानियत  लहूलुहान
नसों में हैवानियत का जहर
मानव कृत्यों का कहर   
राक्षस वृत्ति, मनुष्य बुद्धि
अब आने को है जलजला
प्रकृति में अत्यंत जहर घुला
मानवता कराह रही
सृष्टि डगमगा रही 
परीक्षा की घड़ी
अंत होने को है सृष्टि
मनुष्य ने मनुष्यता के नाम पर
घोर  अनिष्ट की उपज करी
 अन्तिम घड़ी जीवन की
भर गई पाप की गठरी
अस्तित्व विहीन होने को है सृष्टि
लहूलुहान घायल हो रूदन कर रही ......                  

गीली मिट्टी



चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूं आकार प्रिए
नव सृजन की नव रचना
कोमल,प्यारी नन्हीं कलियां
मन हर्षित होकर अपना
सुन्दर जीवन और शुभ सपना।

चाक चले जब गीली मिट्टी
कच्ची मिट्टी का नव आकार
व्याकुल मन के सपने हजार
देने को नव रंगो का संसार
आतुर हो रहा चित्रकार।

चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
दुनियां में पहचान बनेगी
मेरी कृति महान बनेगी
दूंगा मैं तुझे दिव्य संस्कार
उच्च आदर्शों का व्यवहार।


चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार
अग्नि परीक्षाओं का संसार
ठोक पीट का व्यवहार
तू संवरेगा तू निखरेगा
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यों नव आकार










जिन्दगी कोई रेस तो नहीं

जिन्दगी है साहब 
कोई रेस नहीं
इतना दौड़ कर जाओगे 
कहां ? जिन्दगी कोई प्रतिस्पर्धा
नहीं ,जीवन के आरम्भ और अंत
 का खेल है सारा

भागना सिर्फ भागना
ही तो नहीं जिन्दगी 
थोड़ा संभलकर चलें
जिन्दगी स्वयं की है 
सीमित रफ्तार से चलें

यात्रा पर हो
सफ़र का आनंद लो
यात्रा पर यात्रा
ना दो स्वयं को यातना
स्वयं ही स्वयं की प्रताडना
मनुष्य की विचित्र विडम्बना

सिलसिला है, सफ़र का
बेहतरीन यादों का सिलसिला
संग ले जाईए
कुछ लाज़वाब दे जाइए
कुछ सर्वश्रेष्ठ कर्मों के कर्मफल
का मुनाफा ले जाइए ।








लोभ ,कपट अब व्यसन रोग से
मुक्ति की युक्त
आंखे मूंद कर बैठा हूं
कर रहा हूं प्रभु सिमरन।

संसार प्रलोभन में
क्यों उलझ जाता है मन
बड़ा ही निष्ठुर ,और प्रलोभी
है यह मन।मुक्ति की युक्ति को
करू लाख जतन ।


मुक्ति के द्वार कब खुलेंगे
युक्तियों में मैं उलझा
कर्मकांड मुझ को भरमाया
जप-तप नियम सब किए
मन का द्वार खोल ना पाया

मुक्ति द्वार पर भिक्षा मांगू
हे प्रभु अन्तर्मन के चक्षु खोलो
भाग्य मेरे का मार्ग दिखाओ
रहस्य खोलो, युक्ति की
परिभाषा बोलो।

मुक्ति की युक्ति को
लोभ,कपट,सब व्यसन है छोड़े
मन के नैना में प्रभु बसाए
सब और बस प्रभु नजर आए

यूं ही मैं भटका बेघर होकर
प्रभु मिले मुझे मेरे ही अंदर
नयनों में दरिया ,दिल में समुन्द्र
द्वार मुक्ति का मन मन्दिर के अंदर।







अनसुनी चीख


जीवन पंक्ति के पन्नों में
कुछ पन्ने रहे अधूरे
सटीक उत्तर की चाहत में
प्रश्न मेरे रहे निरुत्तर
शब्द व्यंगों के तीखे तीर
कमल हृदय में अनसुनी चीख
हृदय पीर से शब्द पिघलते
वर्ण वर्ण आकार लिए
विचारों समुंदर बीच भवंडर
लहरों का आना-जाना
तूफानों का तबाही मचाना
बिछड़न का नासूर दे जाना
दर्द ए दिल का नया बहाना
अद्भुत प्रकृति रीत विधाता
परखे वक़्त कसौटी
घात हृदय विरह गीत गाता
मन ही मन को स्वयं समझाता
गंभीर पीर पर भारी पीड़
रक्तिम अधर पर बंसी रीत
मेघ-मल्हार राग भैरवी
पाषाण प्रहार ओलावृष्टि
हृदय पीर संग अश्रु द्रव्य
राख आत्मजा भाव तरलता
हृदय पीर पिघलते शब्द
वर्ण आकार लिए दर्द
व्यंग शब्द तीखे तीर
कमल हृदय अनसुनी चीख  ।

















आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...