*लहूलुहान सृष्टि*

सृष्टि की रचना                     
प्रकृति की अद्भुत देन
प्राणियों के लिए के लिए वरदान                 
स्वार्थ में अंधा मानव 
बन बैठा शैतान 
मानव हो गया पथभ्रष्ट       
इंसानियत  लहूलुहान
नसों में हैवानियत का जहर
मानव कृत्यों का कहर   
राक्षस वृत्ति, मनुष्य बुद्धि
अब आने को है जलजला
प्रकृति में अत्यंत जहर घुला
मानवता कराह रही
सृष्टि डगमगा रही 
परीक्षा की घड़ी
अंत होने को है सृष्टि
मनुष्य ने मनुष्यता के नाम पर
घोर  अनिष्ट की उपज करी
 अन्तिम घड़ी जीवन की
भर गई पाप की गठरी
अस्तित्व विहीन होने को है सृष्टि
लहूलुहान घायल हो रूदन कर रही ......                  

2 टिप्‍पणियां:

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