अपना घर

दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
लौट कर आए अपने वतन
मिला बड़ा सुकून
जैसा भी है
महल ना सही
छोटी सी झोपड़ी
में भी मिलता है
सुख-चैन भरपूर
तंग गलियां
कच्ची मिट्टी से बनी
उबड़- खाबड़ सड़कें
घर के आंगन में पड़ी
वो पुरानी चारपाई
पुराने जमाने की कुर्सी
सुकून तो वहीं बैठ गए
मिलता है ,ना खराब होने का
डर ना टूटने की चिंता
जैसे चाहो वैसे लुढ़क जाओ
घर में मां के हाथों से बने
भोजन का स्वाद,सच में भूख
तो मां के हाथों बने खाने से ही
मिटती है ,घर का खाना यानि पेट
भर के तृप्ति ।
दिखावे की दुनियां से दूर
मेरा घर शहर से बहुत दूर
परंतु फिर भी मुझे मेरे घर
पर है गुरूर ,पैसा ना सही
यहां खेतों में अन्न होता है
भरपूर ,मेरे घर में नहीं
सताती है किसी को भूख ।


क्षितिज एक चित्रकला

 अरुणोदय क्षितिज दृश्य
  प्रकृति निपुण चित्रकार
 सौम्य अलौकिक दिव्यता
 संग समर्पण और विश्वास

 मन दर्पण पनपते प्रश्न
 रंगों के अद्भुत सामंजस्य का संगम
 इंद्रधनुषी रंगों की कतार
 स्वर्णिम सपनों का सुन्दर संसार

कैनवास में कूची का विस्तार
नयनों के छाया चित्र का आधार
सटीक, चित्र पर रंग बिखेरता चित्रकार

क्षितिज के उस पार
मधुर मिलन की संपूर्णता
का एहसास ,सत्यता पर
पूर्ण विश्वास .....

दो किनारों का मिलन 
मानों नभ करता धरा का वंदन 
अद्भुत आभास 
दूर होकर भी निकट
विस्तृत ,विराट 
आकार ,गोलाकार कहीं तो
संभव होगा मिलन  
दोनों ही अस्तित्व का आधार.....
  

मौन की भी भाषा होती है .....

मौन की भी भाषा होती है 
सत्य,सटीक और निर्भीक 
मौन की भी भाषा होती है
आंखे भी बोलती है
शब्दों की भी जुबान होती 
किन्तु जो शब्द बोलते नहीं 
वो बहुत कुछ कह जाते हैं
कभी कोई वाक्य बनकर 
जब गीत ,कभी गजल,
या कभी कोई कविता या कहानी 
बनकर दिलों दिमाग़ पर अपनी 
अमिट छाप छोड़ अमर हो जाते
हैं ,कागज पर अंकित शब्द ......

मौन भी बोलता है ,सत्य ही तो है
कभी कोई सजीव सा चित्र भी बहुत कुछ कह 
जाता है, एक अनकही कहानी 
कभी कोई संदेश 
कभी किसी का दर्द, 
प्रेम,सुंदरता,भाव,बंगीमा सब क
जाता है एक सजीव चित्र भी
अनगिनत लोगों के लिए प्रेरणा बन उभरता है
जब किसी चित्रकार का चित्र 
तब कुछ ना कहकर भी बहुत कुछ जाता है एक चित्र। मौन रहकर भी बोलती है प्रकृति 
कभी पतझड, बसंत , सावन, और समृद्धि के रूप में
हरियाली बनकर ,रंग-बिरंगे पुष्पों की सौगात बनकर ........


करोना योद्धा


वारियर्स यानि योद्धा
योद्धा के भी कई रूप होते हैं
क्योंकि जीवन में कई
पड़ाव ऐसे आते हैं
जब हमें उन परिस्थितियों का सामना
एक योद्धा की तरह करना पड़ता है
यानि ऐसी परिस्थिति जिससे
हमें बहुत क्षति हो सकती है
हमें जीवन और मृत्यु के
बीच की जंग लड़नी होती है
जंग में क्या होता है ,की हमें
स्वयं को सुरक्षित रखकर
अपने दुश्मन से या  फिर यूं कहिए
उस विषम परिस्थिति से बचकर
उस शत्रु को सबक सिखाते हुए
अपने मार्ग से हटाना होता है।

अमृत रस


नए युग का नया सवेरा
स्वर्णिम सपनों का
अद्भुत मेला
मन अलबेला
देखे स्वर्णिम युग का
नित्य नूतन सवेरा।

मन में भावनाओं
का गहरा समुंदर
जिसमे विचारों का
अद्वितीय खजाना
जीवन का तराना
सरगम की धुन पर
जीवन के उतार-चढ़ाव का
आना जाना ।

जीवन के हर राग
पर मधुर संगीत बजाना
अनुभूतियों के प्रवाह मध्य
बहती नदिया बीच मझधार
विवेक ज्ञान ही जिसका आधार

विचारों की कश्मकश का सागर
सागर में लहरों का उठना
कुछ अनकहा उछाल जाना।

गागर में जो सागर
छलक-छलक जाए
कभी गद्य कभी पद्य
विचारों के मंथन का अमृत रस
काव्य रस का अद्वितीय खजाना
मेरे सपनों में
स्वर्ग से सुन्दर
समाज का सपना
सत्यता की मशाल
लिए विचारों के द्वंद
से नित -प्रतिदिन युद्ध करना
हे परमात्मा मुझमें मेरी प्रतिज्ञा को
बुद्ध करना ,विचारों को नित्य शुद्ध करना ।








*दोहे संस्कृति और सभ्यता*

*भारतीय संस्कृति
का घोर पतन
देवालय बंद
मदिरालय खुले *

*लोभ का प्रचण्ड
तांडव नशे में
धुत मानव*

*चूल्हा ठंडा
बाल नयन अश्रु
भोजन ताकते चक्षु*

*उच्च संस्कारों की
धरती पर नग्न नृत्य
हाय! निंदनीय
संस्कृति का चीरहरण*

 *आधुनिकता के नाम पर
सभ्यता का ढोंग
मनुष्यता को लगाते
भद्दा दाग  *

" शोहरत का नशा *

( शोहरत का नशा जब चड़ता है,तब मनुष्य ऊपर बस ऊपर की और देखता है उसे यह भी ज्ञात नहीं होता की एक ना एक दिन यह नशा जब उतरेगा तब वह चित होकर धरती पर गिरेगा )

   रमन और मयंक दो मित्र थे ,बचपन से एक साथ एक ही विधालय में पड़े ,दोनों में अच्छी मित्रता थी ।
लेकिन जैसे -जैसे उम्र बड़ रही थी ,दोनों में एक अलग सी दूरियां पैदा होने लगी थी ।
रमन और मयंक यूं तो बहुत अच्छे मित्र थे और भावात्मक सम्बन्ध था रमन और मयंक में ।

  रमन को विरासत में अपने पिता का कारोबार ,जमीन जायदाद की हिस्सेदारी मिली थी ।

 वहीं मयंक एक मधयम परिवार से था ,मयंक पिताजी नौकरीपेशा थे ,और मयंक भी किसी कम्पनी में नौकरी करने लगा था ।

 रमन के रहन -सहन का स्तर ,बहुत बड़ गया था ,मंहगी, लम्बी गाड़ियों में घूमना उसे बहुत अच्छा लगता था । रमन ने अपने व्यापार में भी बहुत तरक्की कर ली थी ,शोहरत रमन के कदम चूम रही थी।

यहां मयंक अपने आफिस के काम काज में व्यस्त रहता था ।
एक दिन मयंक को आफिस के काम से रमन के पास जाना पड़ा ,कुछ कागजों में साइन करने थे , मयंक ने रमन के कमरे के बाहर खड़े वाच मेन से कहा ,की साहब को कहें की उनका मित्र मयंक आया है,आफिस के काम से, वॉचमैन अन्दर गया रमन ने का जवाब था ,की कागज दे दिए जाएं ,उन्हें पड़कर उनपर साइन हो जायेंगें ,यहां कोई किसी का मित्र नहीं सब कर्मचारी हैं ।
 थोड़ी देर में वॉचमैन ने साइन किए हुए कागज लाकर मयंक को दे दिए थे।
 मयंक ने वॉचमैन से कहा ,की वह रमन से निजी रूप से मिलना चाहता है ,आखिर वह उसका मित्र है ,यह संदेशा रमन जी को दिया जाए ।
 रमन ने वॉचमैन से कहलवा कर मयंक से मिलने को मना के दिया था ।
रमन उदास मन से वहां से जाने लगा ,अब मयंक समझ गया था की रमन की आंखों पर उसकी धन-दौलत और शोहरत का पर्दा चड़ चुका है ।
  तभी रमन ,अपने आफिस से बाहर जाते हुए चाल में तेजी थी ,और शोहरत का अहंकार था ।




आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...