चंद्रमा ,चांदनी और सरिता

चन्द्रमा ,चांदनी और सरिता 
एक कवि का मन रचने लगा कविता 
दिव्य अलौकिक प्रकृति की रचना
मेरे शब्दों में ना समा पाए ए प्रकृति
तेरी सहज ,निर्मल ,अद्वितीय सुंदरता 
गंगा की अमृत मयी जलधारा
चन्द्रमा की चांदनी में चांदी सा 
चमचमाती गंगा की  निर्मल अमिय जलधारा 
वाह प्रकृति का सुन्दर मिलन अद्भुत ,अतुलनीय 
अलौकिक अकल्पनीय ।



प्रकृति ने स्वयं के श्रृंगार की भी
क्या खूब अनुपम व्यवस्था की है
रंग-बिरंगे पुष्पों से धरती मां का
आंचल भर दिया है ,मानों धरती मां को
रंग बिरंगे पुष्पों वाली चुनरिया ही उड़ा दी हो
गुलाब, चंपा ,चमेली गेंदा आदि अनेक पुष्पों की
सुगंधी ,वाह इत्र की भी पूर्ण व्यवस्था
वृक्षों की लताएं मानों जुल्फें बनकर लहरा रही हों
फलों से लदे वृक्ष मानों बूटी वाली झालर
पक्षियों की सुमधुर कुंके कानों में रस घोलती
अनगिनत वाद्य साधनों की प्राकृतिक
सौम्य सुमधुर धुन
मन मोहिनी कोयल की मीठी बोली वाह क्या
मानों प्रकृति ने अपने संगीत की भी पूर्ण
व्यवस्था की हो
बहुत खूब हैं प्रकृति तेरे भी गुण
क्या खूब किया है तुमने
धरती मां का श्रंगार
सौम्य चंचल ,मनमोहनी प्रकृति तेरे रूप को देख मैंने तेरा नाम रख दिया मनमोहनी



तकदीर



सजदा


*अनुभव*

अनुभव ना होते तो
आज मैं जो हूं ,वो ना होता
अनुभवों ने मुझे
जीने की कला सिखाई
अब मैं भी माहिर हो गया हूं
अपना हर कदम
अपने अनुभव के आधार
पर उठता हूं ,ऐसा भी नहीं की
मैं कुछ ज्यादा जानता हूं
मैंने अपनी गलतियों से ठोकरें
बहुत खायी हैं ,अब संभला हूं तो
अनुभव हुआ , इसी लिए
कहता हूं अनुभव इंसान का सबसे
बड़ा मित्र है, कोई भी इंसान सीखने
या सीखाने से इतना नहीं सीख पाता
जितना वो अपने अनुभवों से सीखता है
इसलिए कहते हैं अनुभव होना जरूरी है
चलो तो सही एक बच्चा भी गिर-गिर कर ही
संभलना सीखता है ।

                                           



**उम्मीद **

जहां तक बात उम्मीद की है
मेरी मानना है की किसी से भी उम्मीद ना ही रखी जाए तो अच्छा है क्योंकि जब किसी से उम्मीद रखते हैं और वो उम्मीद पूरी नहीं होती या अमुक व्यक्ति हमारी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो हमें दुःख होता है ,हम स्वयं तो दुःखी होते हैं और अमुक व्यक्ति को भी बुरा कहते हैं ।
हां हो सकता है अमुक व्यक्ति ने आपसे वादा किया था और वो आपकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरता तो थोड़ा सोचने वाली बात है ....परंतु यहां भी नुकसान अपना ही है ,सोच -सोच कर हम स्वयं को ही मानसिक रूप से कमजोर बनाते हैं ।
परमात्मा ने प्रत्येक मनुष्य को सोचने -समझने की शक्ति दी है जिस शक्ति का हम स्वेच्छा से अपनी सामर्थ्य अनुसार भला -बुरे के विवेक के अनुसार उपयोग कर सकते हैं ।
उम्मीद रखिए स्वयं से ,स्वयं के मनोबल से .....
अपनी योग्यता ,और परिश्रम को इतना योग्य बनाइए कि आपको किसी से उम्मीद की आ -वश्यकता ही ना पड़े ।
मान लीजिए आपको नदी के उस पार जाना है तो आप उम्मीद करें कि ये नदी का जल कुछ देर के लिए ख़तम हो जाए या नदी ही हट जाए तो ये तो होने वाला नहीं है यानि ये उम्मीद ही करनी बेकार है ।

** रोना बंद करें स्वयं को सक्षम बनाइए **

      मेरे एक मित्र ने मुझे कहा कि मैं किसी की वजह से बहुत दुःखी हूं ।
   मैंने उसके साथ कभी भी बुरा नहीं किया ,उसने मेरे साथ इतना बुरा क्यों किया ,मैंने उसका क्या बिगाड़ा था ।
उसने जो कुछ भी बुरा किया है ,ना उसका फ़ल उसे भगवान देगा ...........
   एक पल को तो मैं अपने मित्र की बातों से भावुक हो गई ,बड़ा दुःख हो रहा था मुझे उसकी स्थिति देखकर ...... फिर मैंने सोचा एक तो यह पहले ही दुःखी है , मैं इसका दुःख कम करने की बजाय बढ़ाने का काम करूं ,नहीं -नहीं यह ठीक नहीं होगा ...........
   मैं अपने मित्र की हर बात बड़े ध्यान से सुन रही थी,वो इसलिए नहीं की मैं उससे सहमत हूं ,वरन इसलिए कि वो अपने दिल की सारी भड़ास निकाल दे और अपना दिल हल्का कर ले......
   मेरा मित्र इतना दुःखी हो रहा था मानों...आगे कोई उपाय ही ना हो ....
  इतना सारा शब्दों का जहर उसके मुंह से बातों के रूप में निकल रहा था , कि सारी धरती जहरीली हो जाए ,उसने मेरे साथ बुरा किया ,उसका भी कभी भला नहीं होगा उसने धोखे से हमसे सब कुछ छीना है भगवान उससे भी उसका एक दिन सब कुछ छीन लेगा ,जो छल-कपट से काम करते हैं उनके साथ भी वही होता है ,जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है........
  ।अब मैंने मित्र की बात काटते हुए कहा सही......जो जैसा कर्म करता है उसको वैसा ही फल मिलता है ,अब तुम क्या कर रही हो ,तुम भी तो वही कर रही हो ,उसने जो ग़लत किया वो उसके कर्म ....अब तुम उसके बारे में सोच -सोच कर अपने लिये गलत कर रहे हो ।
अगर किसी ने कुछ ग़लत भी किया है, और उससे तुम्हारे जीवन में प्रभाव पड़ता है तो ,इसका मतलब तुम कमजोर हो ,अपनी आत्मिक शक्ति को मजबूत बनाओ ....
  इसने ये कर दिया वो कर दिया ,हमारे साथ ही बुरा क्यों होता है .....बुरा सिर्फ तुम्हारे साथ नहीं ...जिसकी वृत्ति बुरी है या गलत है ,या यूं कहिए जिसके पास जो होगा वो देगा ,कोई बुरा दे रहा है  आप उसे तो नहीं रोक सकते परंतु आप स्वयं को इतना मजबूत तो अवश्य बनाइए कि आप के पास जो बुराई आए आप उसे अपनी तरफ़ आने ही ना दे
     अब मौसम को ही ले लो .....मौसम कभी भी एक समान नहीं रहता,सर्दी,गरमी,बरसात, हम मौसम के अनुसार स्वयं को ढालते हैं।
अचानक से मौसम बिगड़ता भी है ,तेज आंधी ,तूफान आने लगता है ,तब क्या आप ये कहेंगे मौसम बड़ा ख़राब है ,इसने हमारे घर में ये कर दिया वो कर दिया ,नहीं ना ......आपको पता है ,मौसम बिगड़ता है आंधी, तूफ़ान ,सैलाब ,जलजला, कभी भी आ सकते हैं ,और इन हालातों से बचने के लिए आप स्वयं को तैयार रखते हैं ।
  ऐसे ही जिस प्रकार हाथ की पांचों उंगलियां एक जैसी नहीं होती ,उसी प्रकार प्रत्येक मनुष्य का स्वभाव भी एक जैसा नहीं होता ,माना कि किसी में बुरा करने के गुण हैं ,और उससे आपको प्रभाव पड़ रहा है, तो जैसा खराब मौसम होने पर आप स्वयं को तैयार रखते हैं ऐसे ही नकारात्मक लोगों के प्रभाव में आते ही ,स्वयं को अपने सद्गुणों का कवच पहनाइए ,स्वयं की रक्षा व बचाव आपको स्वयं ही करना है ,सिर्फ रोते रहने और किसी को दोष देने से कुछ नहीं होने वाला है ।
मजबूत बनिये दुनियां में कई परिस्थितियां आएंगी आपको प्रभावित करेंगी ,बजाय परिस्थिति या व्यक्ति को कोसने को इन नकारत्मक परिस्थितियों से लड़ते के योग्य बनाइए ।
 मित्र परिस्थितियां तो अच्छी या बुरी दोनों आयेंगी ही ,स्वयं को मानसिक रूप से भी सक्षम बनाइए
इतने कमजोर मत बनो की कोई भी बुरी परिस्थिति आए और तुम्हारा अस्तित्व हिला कर चले जाएं ।
किसी को या भाग्य को दोष देने से पहले स्वयं का विश्लेषण कीजिए ,और आने वाली किसी भी परिस्थिति का नकारात्मक प्रभाव आपके ऊपर ना पड़े स्वयं को इस योग्य बनाइए ।
                                                 ऋतु असुजा
                                                  ऋषिकेश

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...