Ritu Asooja Rishikesh , जीते तो सभी है , पर जीवन वह सफल जो किसी के काम आ सके । जीवन का कोई मकसद होना जरूरी था ।परिस्थितियों और अपनी सीमाओं के अंदर रहते हुए ,कुछ करना था जो मेरे और मेरे समाज के लिए हितकर हो । साहित्य के प्रति रुचि होने के कारण ,परमात्मा की प्रेरणा से लिखना शुरू किया ,कुछ लेख ,समाचार पत्रों में भी छपे । मेरे एक मित्र ने मेरे लिखने के शौंक को देखकर ,इंटरनेट पर मेरा ब्लॉग बना दिया ,और कहा अब इस पर लिखो ,मेरे लिखने के शौंक को तो मानों पंख लग
**महिला दिवस विशेषांक **
**महिला दिवस विशेषांक **
प्राचीन काल से ही महिलाएं अपनी ओजिस्वता-अपनी तेजविस्ता,व अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवा ती रही हैं , शास्त्रों में पारंगत विद्योतमा, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई आदि कई ऐसे उदाहरण हैं ।
महिला दिवस ही क्यों मनाया जाता है प्रत्येक वर्ष
क्या आपने कभी सुना है पुरुष दिवस..... नहीं ना क्योंकि पुरुष दिवस की तो कोई आव्यशक्ता ही नहीं क्योंकि पुरुष दिवस तो हर रोज होता है ,जैसे कि ये
दुनियां सिर्फ उन्हीं से चलती हो , इसका कारण है हमारी मानसिकता...... हम लड़कियों को हमेशा से कमजोर समझा जाता रहा है ।
आज लड़कियां किस क्षेत्र में अपना लोहा नहीं मानव रही हैं ,अंतरिक्ष में जा रही हैं ,हवाई जहाज उड़ा रही हैं ,डॉक्टर ,इंजीनियर कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाएं नहीं है ।
फिर भी आज भी महिलाओं को अकेले में जाने से डर लगता है इसका क्या कारण है ?
इसका मुख्य कारण हमारी पुत्र प्रधान मानसिकता है, लड़का हो या लड़की दुनियां की गाड़ी के ये दोनों पहिए हैं ,
चाहे लाख लड़िकयों को बराबरी का हिस्सा मिल रहा है ,फिर भी अगर लड़का हो तो आज भी सोने पे सुहागा ही समझा जाता है ।
लड़कियां कमजोर नहीं हैं ,कमी है हमारी मानसिकता की.... आव्यशकता है ,अपने बालकों को बाल्यकाल से संस्कार शील बनाने की अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना करने के शिक्षा देने की,प्रत्येक नारी का सम्मान करने की
महिलाएं भावात्मक रूप से भी बहुत मजबूत होती हैं तभी तो वो एक घर में पलती हैं ,और दूसरे घर की पालना करती हैं ,महिलाओं को सुशिक्षित करना मतलब सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करना ।
महिला और पुरुष समाज के रथ के दो पहिए हैं ,किसी एक के बिना भी ये रथ का चलना असम्भव है । अंत में मैं तो यही कहना चाहूंगी एक सुशिक्षित ,
सभ्य समाज के लिए जहां पुरुष और महिला दोनों का स्थान समान है जिसका जितना प्रयास उतना पाने को वो अधिकारी है ,चाहे वो पुरुष हो या महिला सभी का सम्मान एक समान है।
लड़कियां कमजोर नहीं हैं ,कमी है हमारी मानसिकता की.... आव्यशकता है ,अपने बालकों को बाल्यकाल से संस्कार शील बनाने की अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना करने के शिक्षा देने की,प्रत्येक नारी का सम्मान करने की
महिलाएं भावात्मक रूप से भी बहुत मजबूत होती हैं तभी तो वो एक घर में पलती हैं ,और दूसरे घर की पालना करती हैं ,महिलाओं को सुशिक्षित करना मतलब सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करना ।
महिला और पुरुष समाज के रथ के दो पहिए हैं ,किसी एक के बिना भी ये रथ का चलना असम्भव है । अंत में मैं तो यही कहना चाहूंगी एक सुशिक्षित ,
सभ्य समाज के लिए जहां पुरुष और महिला दोनों का स्थान समान है जिसका जितना प्रयास उतना पाने को वो अधिकारी है ,चाहे वो पुरुष हो या महिला सभी का सम्मान एक समान है।
" ॐ नमः शिवाय "
ॐ नमः शिवाय
ॐ नमः शिवाय
हे, त्रिलोकीनाथ,
हे त्रिशूल धारी
हे डमरू वाले
आज फिर से आतंक के
पाप का कलश भर
गया है धरती पर
हलाहल मचा पड़ा है
उठा त्रिशूल एक बार
फिर से कर दो तांडव
इस हलाहल का विनाश करो
धरती को फिर से
आतंक के जहर से
मुक्त करो, हे शिवशंकर
हे अभ्यंकर यहां दिलों
में पल रहा जहर है
इस जहर के कहर से
राक्षस धरा को धराशाही
कर रहे, हे शिव शम्भू
वसुंधरा को पाप मुक्त करो
इस शिवरात्रि हम सब की
अर्जी मंजूर करो
धरती पर राक्षस वृत्ति का
अब अंत करो
अपने शंख कि ध्वनि से
से इंसानियत ही सबसे बड़ा
धर्म ऐलान कर दो ।
ॐ के महामंत्र से इस धरा को
स्वर्ग सा सुंदर कर दो
ॐ नमः शिवाय
हे, त्रिलोकीनाथ,
हे त्रिशूल धारी
हे डमरू वाले
आज फिर से आतंक के
पाप का कलश भर
गया है धरती पर
हलाहल मचा पड़ा है
उठा त्रिशूल एक बार
फिर से कर दो तांडव
इस हलाहल का विनाश करो
धरती को फिर से
आतंक के जहर से
मुक्त करो, हे शिवशंकर
हे अभ्यंकर यहां दिलों
में पल रहा जहर है
इस जहर के कहर से
राक्षस धरा को धराशाही
कर रहे, हे शिव शम्भू
वसुंधरा को पाप मुक्त करो
इस शिवरात्रि हम सब की
अर्जी मंजूर करो
धरती पर राक्षस वृत्ति का
अब अंत करो
अपने शंख कि ध्वनि से
से इंसानियत ही सबसे बड़ा
धर्म ऐलान कर दो ।
ॐ के महामंत्र से इस धरा को
स्वर्ग सा सुंदर कर दो
*अभिशाप*
"प्राचीन काल से
चली आ रही परम्परा
एकलव्य , कर्ण
ने भी सहा अभिशप्त
होने का दर्द ,साधारण
मनुष्य की क्या औकात "
"देकर जन्म मुझे
चली गई
मेरे जीने की खातिर
अनगिनत दुख सह गई
जीवनदान देकर मुझको
सहारे जिसके छोड़कर
दुनियां से अलविदा हो गई
तुझ बिन जीवन बना अभिशाप
मेरा है , ना जाने कौन से जन्म
का पाप मेरा था
लोग कहते हैं कर्म जली हूं
मनहूस कहीं की पैदा होते ही
मां को खा गई
मां क्या करूं मैं
ऐसे जीवन का
जिसमें ना कोई
मान मेरा ,तुम ही
तो थी अभिमान मेरा
क्या करूं ऐसे अभिशप्त
जीवन का
दुनियां वाले मुझे
मनहूस कहते,
मां क्या मैं,
इतनी बुरी हूं ,मां तुझ बिन
बना जीवन अभिशाप मेरा है
ये अभिशप्त जीवन
बना मेरे लिए सजा है ।
चली आ रही परम्परा
एकलव्य , कर्ण
ने भी सहा अभिशप्त
होने का दर्द ,साधारण
मनुष्य की क्या औकात "
"देकर जन्म मुझे
चली गई
मेरे जीने की खातिर
अनगिनत दुख सह गई
जीवनदान देकर मुझको
सहारे जिसके छोड़कर
दुनियां से अलविदा हो गई
तुझ बिन जीवन बना अभिशाप
मेरा है , ना जाने कौन से जन्म
का पाप मेरा था
लोग कहते हैं कर्म जली हूं
मनहूस कहीं की पैदा होते ही
मां को खा गई
मां क्या करूं मैं
ऐसे जीवन का
जिसमें ना कोई
मान मेरा ,तुम ही
तो थी अभिमान मेरा
क्या करूं ऐसे अभिशप्त
जीवन का
दुनियां वाले मुझे
मनहूस कहते,
मां क्या मैं,
इतनी बुरी हूं ,मां तुझ बिन
बना जीवन अभिशाप मेरा है
ये अभिशप्त जीवन
बना मेरे लिए सजा है ।
*अभिवादन है ,वंदन है *
**सत्य शाश्वत है
सत्य शांति हैसत्य करुणा है
सत्य निसंदेह निस्वार्थ
प्रेम है ।
ये तो सत्य की ही जीत है
विंग कमांडर अभिनन्दन का अभिनंदन है
भारत माता हर्ष से प्रफुल्लित है
कर रही अपने देश के
वीर सपूत का वंदन है
सत्य पर कभी - कभी
अ सत्य के ग्रहण के काले
बादल अवश्य आ सकते हैं
परंतु सत्य का सूरज कभी अस्त
नहीं हो सकता
ये तो अनगिनत निस्वार्थ दुआओं का
ही असर नज़र आ रहा
जो कि आतंकियों के डेरे से
भारत मां का वीर सिपाही लौट कर घर आ रहा है
किसी के सकारात्मक व्रत का
प्रतिफल, शांति के लिए किए गए
हवन में डाली गई आहुतियां का तेज
आतंक की कंटीली झाड़ियां ने तबाही
तो बहुत मचाई, परंतु इन आंधियों ने
हमारे हौसले नहीं पस्त किये ,
हमें और सतर्क रहने के मौके दिए ।
ये तो सत्य की जीत है
सत्य सदा सर्वदा शाश्वत है **
*प्रेम ही शाश्वत है *
"माना कि आज नफ़रत
प्रेम पर भारी है
परंतु नफ़रत की तो सिर्फ
कंटीली झाड़ियां हैं
प्रेम तो वो शाश्वत बीज है
जो किसी भी मनुष्य का
आंतरिक स्वभाव है *
"माना की आज नफ़रत के
आतंक ने तांडव मचा रखा है
ये तो सिर्फ आंधियां हैं
प्रेम की जड़ों की पकड़
धरती पर गहरी हैं
हम तो सूर्य का वो तेज़ हैं
जिसके आगे किसी की भी
कोई बिसात नहीं
प्रेम पर भारी है
परंतु नफ़रत की तो सिर्फ
कंटीली झाड़ियां हैं
प्रेम तो वो शाश्वत बीज है
जो किसी भी मनुष्य का
आंतरिक स्वभाव है *
"माना की आज नफ़रत के
आतंक ने तांडव मचा रखा है
ये तो सिर्फ आंधियां हैं
प्रेम की जड़ों की पकड़
धरती पर गहरी हैं
हम तो सूर्य का वो तेज़ हैं
जिसके आगे किसी की भी
कोई बिसात नहीं
प्रेम ही शाश्वत था और रहेगा।
विरासत की संपत्ति
**विरासत की संपत्ति***
मेरे देश की संस्कृति अदभुत अमूल्य
अतुलनीय है
भारत भूमि के आभा मंडल में
अद्भुत ,अद्वितीय संस्कारों रूपी रत्नों
की भरमार है ,बाल्मीकि ,कालिदास
सूरदास , एकलव्य ,ध्रुव ,कबीर आदि
इसके उदाहरण हैं
* मेरे देश की संस्कृति के तो क्या कहने
यहां विरासत में उच्च संस्कारों
वाली शिक्षा
का धन दिया जाता है
यह धन अमूल्य है
और यह कभी नष्ट नहीं होता ।
मेरे देशवासियों के हौसलें
तूफानों और आंधियों में
और बुलंद हो जाते हैं
उच्च विचारों की संपत्ति से
चहरे पर स्वाभिमान ,और
आत्म विश्वास
की चमक आ जाती है ।
नहीं सीखा हमनें विचारों में
जहर घोलना
हम हिन्दुस्तानी आतंक की जहरीली
खेती नहीं करते ,परंतु जो जहर
फैलाते हैं उन्हें जड़
से उखाड़ फैंकते हैं ।
हम उस देश के वासी हैं जहां नदियों
में अमृत बहता है , वृक्षों और,पर्वत भी
पूजे जाते हैं
यज्ञ की अग्नि को साक्षी मान
जब -जब पूर्ण श्रद्धा से आहुतियां
डाल स्वाहा किया जाता है
तब -तब बुराई का
अंत निश्चित ही नहीं सुनिश्चित हो
जाता है।
मेरे देश की संस्कृति अदभुत अमूल्य
अतुलनीय है
भारत भूमि के आभा मंडल में
अद्भुत ,अद्वितीय संस्कारों रूपी रत्नों
की भरमार है ,बाल्मीकि ,कालिदास
सूरदास , एकलव्य ,ध्रुव ,कबीर आदि
इसके उदाहरण हैं
* मेरे देश की संस्कृति के तो क्या कहने
यहां विरासत में उच्च संस्कारों
वाली शिक्षा
का धन दिया जाता है
यह धन अमूल्य है
और यह कभी नष्ट नहीं होता ।
मेरे देशवासियों के हौसलें
तूफानों और आंधियों में
और बुलंद हो जाते हैं
उच्च विचारों की संपत्ति से
चहरे पर स्वाभिमान ,और
आत्म विश्वास
की चमक आ जाती है ।
नहीं सीखा हमनें विचारों में
जहर घोलना
हम हिन्दुस्तानी आतंक की जहरीली
खेती नहीं करते ,परंतु जो जहर
फैलाते हैं उन्हें जड़
से उखाड़ फैंकते हैं ।
हम उस देश के वासी हैं जहां नदियों
में अमृत बहता है , वृक्षों और,पर्वत भी
पूजे जाते हैं
यज्ञ की अग्नि को साक्षी मान
जब -जब पूर्ण श्रद्धा से आहुतियां
डाल स्वाहा किया जाता है
तब -तब बुराई का
अंत निश्चित ही नहीं सुनिश्चित हो
जाता है।
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