**महिला दिवस विशेषांक **
प्राचीन काल से ही महिलाएं अपनी ओजिस्वता-अपनी तेजविस्ता,व अपनी बुद्धिमत्ता का लोहा मनवा ती रही हैं , शास्त्रों में पारंगत विद्योतमा, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई आदि कई ऐसे उदाहरण हैं ।
महिला दिवस ही क्यों मनाया जाता है प्रत्येक वर्ष
क्या आपने कभी सुना है पुरुष दिवस..... नहीं ना क्योंकि पुरुष दिवस की तो कोई आव्यशक्ता ही नहीं क्योंकि पुरुष दिवस तो हर रोज होता है ,जैसे कि ये
दुनियां सिर्फ उन्हीं से चलती हो , इसका कारण है हमारी मानसिकता...... हम लड़कियों को हमेशा से कमजोर समझा जाता रहा है ।
आज लड़कियां किस क्षेत्र में अपना लोहा नहीं मानव रही हैं ,अंतरिक्ष में जा रही हैं ,हवाई जहाज उड़ा रही हैं ,डॉक्टर ,इंजीनियर कौन सा ऐसा क्षेत्र है जहां महिलाएं नहीं है ।
फिर भी आज भी महिलाओं को अकेले में जाने से डर लगता है इसका क्या कारण है ?
इसका मुख्य कारण हमारी पुत्र प्रधान मानसिकता है, लड़का हो या लड़की दुनियां की गाड़ी के ये दोनों पहिए हैं ,
चाहे लाख लड़िकयों को बराबरी का हिस्सा मिल रहा है ,फिर भी अगर लड़का हो तो आज भी सोने पे सुहागा ही समझा जाता है ।
लड़कियां कमजोर नहीं हैं ,कमी है हमारी मानसिकता की.... आव्यशकता है ,अपने बालकों को बाल्यकाल से संस्कार शील बनाने की अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना करने के शिक्षा देने की,प्रत्येक नारी का सम्मान करने की
महिलाएं भावात्मक रूप से भी बहुत मजबूत होती हैं तभी तो वो एक घर में पलती हैं ,और दूसरे घर की पालना करती हैं ,महिलाओं को सुशिक्षित करना मतलब सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करना ।
महिला और पुरुष समाज के रथ के दो पहिए हैं ,किसी एक के बिना भी ये रथ का चलना असम्भव है । अंत में मैं तो यही कहना चाहूंगी एक सुशिक्षित ,
सभ्य समाज के लिए जहां पुरुष और महिला दोनों का स्थान समान है जिसका जितना प्रयास उतना पाने को वो अधिकारी है ,चाहे वो पुरुष हो या महिला सभी का सम्मान एक समान है।
लड़कियां कमजोर नहीं हैं ,कमी है हमारी मानसिकता की.... आव्यशकता है ,अपने बालकों को बाल्यकाल से संस्कार शील बनाने की अपनी शक्ति का दुरुपयोग ना करने के शिक्षा देने की,प्रत्येक नारी का सम्मान करने की
महिलाएं भावात्मक रूप से भी बहुत मजबूत होती हैं तभी तो वो एक घर में पलती हैं ,और दूसरे घर की पालना करती हैं ,महिलाओं को सुशिक्षित करना मतलब सम्पूर्ण समाज को शिक्षित करना ।
महिला और पुरुष समाज के रथ के दो पहिए हैं ,किसी एक के बिना भी ये रथ का चलना असम्भव है । अंत में मैं तो यही कहना चाहूंगी एक सुशिक्षित ,
सभ्य समाज के लिए जहां पुरुष और महिला दोनों का स्थान समान है जिसका जितना प्रयास उतना पाने को वो अधिकारी है ,चाहे वो पुरुष हो या महिला सभी का सम्मान एक समान है।