* ज़रा संभल कर *

  1.   संभल कर चलना यहां चेहरों पर मुखौटे लगे हैं
इंसानियत का रंग बदल गया है
शायद खून में भी हैवानियत की
मिलावट है ,काश कोई ऐसा
प्रयोगशाला हो ,जिसमें मन में
क्या छिपा है पता चल सके
किस के मन में क्या चल
रहा है ।
मत करो ये खून में मिलावट
ना घोलो विशेला जहर नस्लों
में अगर नस्ले ही जहरीली होंगी
तो एक दिन ऐसा आएगा
वो सब कुछ जहरीला कर देंगी ।
परंतु एक दिन ऐसा भी आएगा
कि जहर ही जहर का खात्मा करेगा ।
फिर बचेगा तो सत्य .....
कृपया अपनी नौनिहालों को
उच्च संस्कारों वाली शिक्षा देना
सभ्य सुसंस्कृत विचारों की ऐसी शिक्षा
जिसके गुणों के प्रभाव के आगे किसी भी तरह
का उजाला


"आतंकवाद के जहरीली नस्लों का अब अंत करो "

आतंकवाद के जहरीली नस्लों का अब अंत करो "

उखाड़ फेंखो आतंकवाद की जहरीली खेती को
इन जहरीले बीजों का अंत करो
वरना सारी धरती जहरीली हो जायेगी
एक बार फिर आंकवाद के इस जहरीले
जहर ने ड्स लिया भारत मां के कई
वीर सपूतों को ,धरती मां कांप रही है ......
आने वाला है ,कोई जलजला
शिव को फिर से आना होगा
धरती पर, तांडव दिखाना होगा
उठा त्रिशूल ,करो अंत आतंक का
फिर से त्रस्त हो रही धरती
फिर से कराह रहा है मानव
जिन नस्लों में जहर फैल चुका है
उन नस्लों का संहार करो
पीकर जहर फिर से इस धरती
को आंकवाद मुक्त करो
या कोई ऐसी राह बता आतंकवाद को
जड़ों से उखाड़ फेंकूं एक -एक जहरीले
बीज का अंत करूं
नए बीजों में परस्पर प्रेम ,अमन चैन ,का अमृत भरूं ।

( श्रद्धांजलि देश के वास्तविक नायकों को देश के वीर सिपाहियों को)

*मेरी मोहब्बत *


यूं तो मैं भी मोहब्बत के काफिले
में कब से शामिल था
किन्तु मोहब्बतें इज़हार
करने से डरता था कहीं कोई
मेरी मोहब्बत की चर्चा सरेआम ना कर दे
मेरी पाक मोहब्बत को बदनाम ना कर दे
मेरी मोहब्बत मेरी इबादत है ।
**सजदा करता हूं 
बार-बार ,जिधर देखूं 
सजदे में मेरा सिर झुक जाता है 
क्या करूं ,मुझे उसके सिवा कुछ 
नज़र ही नहीं आता 
ना जाने ये मेरी निगाहों 
का धोका है,या मेरा 
पागलपन ,राह में चलते हर 
जन में मुझे वो ही नज़र आता है 
जब से वो मेरे दिल के द्वार
से मेरे हृदय में घर कर गया है
मेरा घर भर गया है
मोहब्बत से भरा खुशियों का
गुलदस्ता लिए ,वो मेरी रूह को
ऐसी संजीदगी से दुआ दे जाता है
रूह ए चमन  महक जाता है
में उसकी मोहब्बत में पागल हूं
जमाने को पता है
वो मेरा रब ,मेरा ख़ुदा ज़माने से जुदा है
जमाने से जुदा है, क्योंकि वो ख़ुदा है***


*अयोध्या और राम मंदिर *

***********************************   हिन्दुस्तान ****
   हिन्दू संस्कृति ,
    माना की हिंदुस्तान धर्मनिरपेक्ष देश है ,हमारे देश     में हर धर्म को सम्मान मिलता है कोई भी धर्म ,अपने कायदे -कानून से अपना जीवन जी सकता है ।    **फिर भी हिंदुस्तान, हिन्दू धर्म ,हिन्दू संस्कृति ही इसकी पहचान है फिर अपने ही देश में अपनी संस्कृति, को हम सम्मान नहीं दिला पा रहे तो ,यह बड़ा दुखदाई विषय है ।

*******" श्री राम चरित मानस " हिन्दू धर्म की की धरोहर, हिन्दुओं की संस्कृति ,आस्था ,श्रद्धा विश्वास ***
 **अयोध्या में राम मंदिर ना बन पाना हिदुओं की श्रद्धा आस्था ,और विश्वास के साथ खिलवाड़ है ।

 *श्री राम सीता *हम हिन्दुओं की आस्था ,हमारे भगवान हैं। कोई भी धर्मिक कार्य हो तो हम हिन्दू अपनी आस्था के प्रतीक धर्म ग्रंथ , श्री *रामचरितमानस*का पाठ बड़े विधि विधान से करवाते हैं ,उस ग्रंथ में विदित है ,की सतयुग में अयोध्या में राजा दशरथ के यहां चार पुत्रों ने जन्म लिया था , श्री राम ,लक्ष्मण ,भरत ,शत्रुघ्न, कोई भी हिन्दू इस धर्म ग्रंथ से अछूता नहीं है ।
 फिर अयोध्या में राम मंदिर पर विवाद .....
 ये राजनीति नहीं तो क्या है ?
 हिंदुस्तान हमारा है ,हिन्दू संस्कृति हमारी है ।
सभी धर्मों की अपनी विशेषता है ,सभी धर्म समान सम्मान के हकदार हैं ।
 यहां बात है, भारत की ,अयोध्या की राम मंदिर की ! अगर रामायण हम हिन्दुओं का धर्म ग्रंथ है ,तो अयोध्या में राम मंदिर भी शाश्वत है , राम मंदिर का ना बन पाना हिन्दू समाज की कमजोरी ,और राजनीति के सिवा कुछ भी नहीं ......
मैं छोटा मुंह बड़ी बात कह रही हूं फिर भी अगर
प्रधान मंत्री मोदी रातों -रात नोट बंदी का ऐलान कर सकते हैं तो ,वो उन्हें अयोध्या में राम मंदिर के निर्माण कार्य का ऐलान भी शीघ्र अति शीघ्र कर देना चाहिए ।


**फुर्सत के पल**

*******
 फ़ुर्सत के कुछ पल
 बैठा था ,सलीके से
 हरी घास के गलीचे पर
 दिल में बेफिक्री थी
 शायद यही सच्ची खुशी थी ।
 पक्षी भी अपनी आजादी का
 आगाज़ रच रहे थे , दाना चुग
 रहे थे ,नील गगन की ओर
 ऊंची -ऊंची उड़ान भर रहे थे।
मौसम बड़ा सुहाना था
शायद प्रकृति का दिल भी
दीवाना था , धरती भी
स्वयं के श्रृंगार से प्रसन्नचित्त थी
क्यारियों में पुष्पों की बहार थी
सुंगधित समीर का वेग मन भावन
प्रसन्नचित ,प्रफुल्लित ,बसंत का आगमन
याद आ गया था ,
फिर वो अल्हड़ बचपन
ना चिंता, ना फिक्र ,
बस मस्तियों का जिक्र
 सपनों की ऊंची उड़ाने

क्या खूब थे ,वो **बचपन के जमाने **





*मंजिले राह इतनी आसान नहीं **



*क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता यहीं से होकर गुज़रता है *


“ डर जाता हूँ , अक्सर टेड़े - मेड़ें रास्ते देखकर
क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता यहीं से होकर
जाता है , चलता रहता हूँ , चोट खाता हूँ ,
ज़ख़्मी भी होता हूँ ,
पर ठहरता नहीं ....
कभी विशाल पर्वत, तो कभी गहरी खायी ,
क्योंकि मेरी मंज़िल का रास्ता ऐसी ही राहों से
होकर गुज़रता है , चलना पड़ता है ,
कभी सोचता हूँ , लौट जाऊँ , राहें बड़ी कँटीली हैं
मंज़िल भी दूर तक नज़र नहीं आती .........
ऐसा नहीं कि मैं डरपोक हूँ ...
परन्तु फिर भी ...
कभी - कभी ऐसा सोचता हूँ
क्यों मेरे ही हिस्से में तमाम मुश्किलें आयी
एक समय था , मैं था और गहरी खायी
ज़िन्दगी और मौत की हो रही थी लड़ाई
तभी किसी की कही बात याद आयी
गहरायी में ही मिलते हैं , हीरे जवाहरात
तू करता रह खुदायीं ,जितनी अधिक होगी
गहरायी , उतनी ही उन्नत होगी तेरी ज़िन्दगी की
मंज़िलों की ऊँचाई।
****ज्यों कल्प वृक्ष सदैव हरा -भरा रहता व् सदाबहार रहता है
**नदियों नीर देती रहती हैं और निरंतर संघर्ष करते हुए आगे बड़ने की प्रेरणा देती रहती हैं ।*
*पर्वत अपने लक्ष्य में अडिग खड़े रहने की शिक्षा देते हैं ,इसी तरह इस सम्पूर्ण संसार के ज्ञान के अमृत का कलश हर -पल बड़ता रहे ,भरा रहे यही उद्देश्य है ,हमारा।।

आओ अच्छा बस अच्छा सोचें

 आओ कुछ अच्छा सोचें अच्छा करें , अच्छा देखें अच्छा करने की चाह में इतने अच्छे हो जायें की की साकारात्मक सोच से नाकारात्मकता की सारी व्याधिया...