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फ़ुर्सत के कुछ पल
बैठा था ,सलीके से
हरी घास के गलीचे पर
दिल में बेफिक्री थी
शायद यही सच्ची खुशी थी ।
पक्षी भी अपनी आजादी का
आगाज़ रच रहे थे , दाना चुग
रहे थे ,नील गगन की ओर
ऊंची -ऊंची उड़ान भर रहे थे।
मौसम बड़ा सुहाना था
शायद प्रकृति का दिल भी
दीवाना था , धरती भी
स्वयं के श्रृंगार से प्रसन्नचित्त थी
क्यारियों में पुष्पों की बहार थी
सुंगधित समीर का वेग मन भावन
प्रसन्नचित ,प्रफुल्लित ,बसंत का आगमन
याद आ गया था ,
फिर वो अल्हड़ बचपन
ना चिंता, ना फिक्र ,
बस मस्तियों का जिक्र
सपनों की ऊंची उड़ाने
फ़ुर्सत के कुछ पल
बैठा था ,सलीके से
हरी घास के गलीचे पर
दिल में बेफिक्री थी
शायद यही सच्ची खुशी थी ।
पक्षी भी अपनी आजादी का
आगाज़ रच रहे थे , दाना चुग
रहे थे ,नील गगन की ओर
ऊंची -ऊंची उड़ान भर रहे थे।
मौसम बड़ा सुहाना था
शायद प्रकृति का दिल भी
दीवाना था , धरती भी
स्वयं के श्रृंगार से प्रसन्नचित्त थी
क्यारियों में पुष्पों की बहार थी
सुंगधित समीर का वेग मन भावन
प्रसन्नचित ,प्रफुल्लित ,बसंत का आगमन
याद आ गया था ,
फिर वो अल्हड़ बचपन
ना चिंता, ना फिक्र ,
बस मस्तियों का जिक्र
सपनों की ऊंची उड़ाने
सच कहा रितू दी बचपन का मजा ही कुछ और हैं। सुंदर प्रस्तूति।
जवाब देंहटाएंJi jyoti ji aabhar
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