''हिंदी मेरी मातृभाषा माँ तुल्य पूजनीय ''
जिस भाषा को बोलकर मैंने अपने भावों को व्यक्त किया ,जिस भाषा को बोलकर मुझे मेरी पहचान मिली ,मुझे हिंदुस्तानी होने का गौरव प्राप्त हुआ , उस माँ तुल्य हिंदी भाषा को मेरा शत -शत नमन।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विशव के जनसम्पर्क को जोड़ रखा है। जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
भाषा विहीन मनुष्य अधूरा है।
भाषा ही वह साधन है जिसने सम्पूर्ण विशव के जनसम्पर्क को जोड़ रखा है। जब शिशु इस धरती पर जन्म लेता है ,तो उसे एक ही भाषा आती है वह है, भावों की भाषा ,परन्तु भावों की भाषा का क्षेत्र सिमित है।
मेरी मातृभाषा हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ठ है। संस्कृत से जन्मी देवनागरी लिपि में वर्णित हिंदी सब भाषाओँ में श्रेष्ट है। अपनी मातृभाषा का प्रयोग करते समय मुझे अपने भारतीय होने का गर्व होता है। मातृभाषा बोलते हुए मुझे अपने देश के प्रति मातृत्व के भाव प्रकट होते हैं। मेरी मातृभाषा हिंदी मुझे मेरे देश की मिट्टी की सोंधी -सोंधी महक देती रहती हैं ,और भारतमाता माँ सी ममता।
आज का मानव स्वयं को आधुनिक कहलाने की होड़ में 'टाट में पैबंद ' की तरह अंग्रेजी के साधारण शब्दों का प्रयोग कर स्वयं को आधुनिक समझता है।
अरे जो नहीं कर पाया अपनी मातृ भाषा का सम्मान उसका स्वयं का सम्मान भी अधूरा है। किसी भी भाषा का ज्ञान होना अनुचित नहीं अंग्रेजी अंतर्राष्ट्रीय भाषा है। इसका ज्ञान होना अनुचित नहीं।
परन्तु माँ तुल्य अपनी मातृभाषा का प्रयोग करने में स्वयं में हीनता का भाव होना स्व्यम का अपमान है।
मातृभाषा का सम्मान करने में स्वयं को गौरवान्वित महसूस करें। मातृभाषा का सम्मान माँ का सम्मान है.
हिंदी भाषा के कई महान ग्रन्थ सहित्य ,उपनिषद ' रामायण ' भगवद्गीता ' इत्यादि महान ग्रन्थ युगों -युगों से विश्वस्तरीय ज्ञान की निधियों के रूप में आज भी सम्पूर्ण विश्व का ज्ञानवर्धन कर रहे हैं व् अपना लोहा मनवा रहे है।
भाषा स्वयमेव ज्ञान की देवी सरस्वती जी का रूप हैं। भाषा ने ही ज्ञान की धरा को आज तक जीवित रखे हुए हैं
मेरी मातृभाषा हिंदी को मेरा शत -शत नमन आज अपनी भाषा हिंदी के माध्यम से मैं अपनी बात लिखकर आप तक पहुंचा रही हूँ।