देखो हंस रहे हैंखेत खलिहान
देखो हंस रहे हैं खेत खलिहान ,
मीठी मधुर हवा संग कर रहे हों मधुर गान।
आओ झूमे नाचे गाए आई है बहार।
पीली -पीली सरसों से हुआ है ,
धरती का श्रृंगार।
सुनहरे रंगो की छटा चारोँ ओर।
दिनकर की किरणों से चमके ,
चाँदनी सा जलाशयों का जल
सतरंगी रंगों की छठा ,मंद -मंद
हवाओं से लहराती पौधों की कतार।
बसंत ऋतु की आयी है बहार।,
मन प्रफुल्लित सुनहरे सपनो को सच करने
का संदेश निरन्तर परिश्रम का मिला है परिणाम
प्रग्रति और उन्नति का है ,आशीर्वाद,
जो धरती ने कर लिया है केसरिया सुनहरा श्रृंगार,
आई है, बसंत ऋतु की बहार।
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