मेरे देश का किसान अन्नदाता
तू अन्नदाता फिर भी तेरा क्यों
कमतर है ,सम्मान प्रकृति की
मार भी तुझे सहनी पड़ती है।
कभी तन को झुलसा देने वाली गर्मी ,
कहीं बाड़ का प्रकोप ,कभी सूखे का कहर
जो अन्नदाता है उसे ही अपने परिवार की जीविका
के लिए पीना पड़ता है ज़हर
और कभी सूली पर लटक
देता है प्राण ।।।
सर्वप्रथम किसानो दो को उच्चतम स्थान
उन जैसा नहीं कोई महान
मै दिल से करती हूँ तेरा सम्मान ।
तू अन्नदाता है ,इस सृष्टि का भगवान ।
सूखी रोटी ,तन पर एक वस्त्र अभावों में अक्सर
तेरा जीवन गुजरता है।
को दो रोटी खिलाने को तू ,न जाने कितनों के पेट भरता है ऐ किसान।
तेरा क्या सम्मान करूँ ।तू स्वयं ही सम्माननीय ।
नहीं तो यहाँ तो सबको अपने -अपने पेटों की पड़ी है ।
किसान नहीं होंगे तो ,भोजन कहाँ से लाओगे
क्या ? ईंट ,पत्थर ,रेता ,बजरी ,चबाओगे ।