*हर घर में रोज जले बरकत का चूल्हा
प्रेम ,अपनत्व का सांझा चूल्हा **
मां तुम जमा लो चूल्हा
मैं तुम्हें ला दूंगा लकड़ी
अग्नि के तेज से तपा लो चूल्हा,
भूख लगी है ,बड़े जोर की
तुम मुझे बना कर देना
नरम और गरम रोटी।
मां की ममता के ताप से
मन को जो मिलेगी संतुष्टि
उससे बड़ी ना होगी कोई
खुशी कहीं ।
चूल्हे की ताप में जब पकता
भोजन महक जाता सारा घर
* हर घर में रोज जले बरकत
का चूल्हा ,प्रेम प्यार का सांझा चूल्हा *
*अग्नि जीवन आधार*
जीवन का आधार अग्नि
भोजन का सार अग्नि
जीवन में , शुभ --लाभ
पवान ,पवित्र,पूजनीय अग्नि
ज्योति अग्नि,हवन अग्नि
नकारात्मकता को मिटाती
दिव्य सकारात्मक अग्नि
सूर्य का तेज भी अग्नि
जिसके तेज से धरती पर
मनुष्य सभ्यता पनपती
अग्नि विहीन ना धरती
का अस्तित्व ।
अग्नि के रूप अनेक
प्रत्येक प्राणी में जीवन
बनकर रहती अग्नि।
प्रकाश का स्वरूप अग्नि
ज्ञान की अग्नि,विवेक की अग्नि
तन को जीवन देती जठराग्नि
अग्नि का संतुलन भी आव्यशक
ज्वलंत ,जीवन , अग्नि स्वयं प्रभा ।
ज्वलंत ,जीवन , अग्नि स्वयं प्रभा ।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२७ अप्रैल २०२० के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
वाह!रितु जी , सुंदर रचनाएँ !
जवाब देंहटाएंजी धन्यवाद शुभाजी
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