* वसीयत*

 
 मुकेश मैंने तुम्हें पहले भी कहा था की मैं नहीं जाऊंगा उनके घर.....
उनका मेरा कोई रिश्ता नहीं।
एक मित्र दूसरे मित्र को समझाते हुए ,देख पहला मित्र मुकेश, दूसरा के नाम मोहित ।

मोहित ,अपने मित्र मुकेश से सुन मित्र रिश्ते कभी नहीं टूटते , एक ना एक दिन तो उन्हें उनके घर जाना ही पड़ेगा ।


मुकेश ,क्यों जाना पड़ेगा ,उन्होंने कहा था तुम जा सकते हो ,हां हमारा रिश्ता आज से ख़तम।

मोहित :- सुनो मुकेश कई बार परिस्थितियां ऐसी होती हैं ,की कुछ ऐसे निर्णय लेने पड़ते हैं ।

मुकेश कोई भी रिश्ता अपने बच्चों से बड़ा नहीं होता

मोहित :- नहीं मुकेश तुम गलत सोच रहे हो ,अभी कुछ दिन पहले मुझे तुम्हारे बाबूजी मिले थे , उन्होंने मेरे साथ बहुत सारी बातें की थीं।

तभी तुम्हारे बाबूजी ने मुझे बताया की उन्होंने जो भी फैंसला लिया , तुम्हें स्वावलंबी बनाने के लिए लिया था ।
उन्होंने मुझे बताया की वो धृष्टराष्ट्र नहीं बनना चाहते थे , पुत्र मोह में अंधा होकर वो तुम्हारा आज तो संवार देते परंतु ,परंतु कल के लिए तुम मोहताज बन जाते ।

मुकेश तुम्हारे पिताजी ने तुम्हे अपनी वसीयत में से हिस्सा इसीलिए नहीं दिया था उस वक्त की उस समय तुम धन के लोभ में अंधे थे ।
अब तुम ही सोचो मुकेश अगर उस समय तुम्हे वसीयत में से हिस्सा मिल गया होता तो तुम आज यहां नहीं होते जहां तुम आज हो ।

  आज तुम स्वावलंबी हो ,और एक जिम्मेदार इंसान हो ,सिर्फ अपने पिताजी के कारण ,अगर उस समय उनकी वसीयत तुम्हें मिल जाती तो तुम उतने में हो सीमित रह जाते, तुम सोचते बहुत है तुम्हारे पास मेहनत क्यों करनी ।
जबकि उनकी वसीयत आज भी तुम्हारे ही नाम हैं ।

रोहित तुम्हारे पिताजी अस्पताल में हैं ,उनकी तबीयत ज्यादा ठीक नहीं है कमजोरी भी बहुत है ।
डाक्टर का भी कहना है की अब इनकी सेवा करो और इन्हे खुश रखो ,दवाइयों से ज्यादा दुआएं काम आती हैं ।
चलो मुकेश, बेटा ना सही इंसानियत के नाते चलो ,मिल आते हैं उस इंसान से ।
  मुकेश और मोहित अस्पताल पहुंच गए थे ,नर्स और स्टाफ मुकेश को देखकर सिर वार्ड नं 5 में जो हैं वो आपके पिताजी हैं ,मुकेश हां में सिर हिलाते हुए ।
 मुकेश और मोहित बेड के पास खड़े थे ,पिताजी की आंखे बंद थीं शायद नींद में थे
तभी हल्की सी आहट हुई पिताजी ने आंखे खोली ,सामने नरस थी ,सिर आपकी दवाइयों का समय हो गया है ।
 क्योंकि मुकेश अब बहुत बड़ा बिजनेस मेन बन गया था ,शहर के सभी लोग उसे जानने लगे थे , नर्स बाबूजी ये मुकेश जी आपके अपने बेटे हैं आपने कभी बताया नहीं , बहुत अच्छे इंसान हैं शहर में इनका बहुत नाम हैं ,आप किस्मत वाले हैं जो मुकेश जी जैसे इंसान के आप पिताजी हैं ।
मुकेश ,मोहित ,और पिताजी सब शून्य थे सबकी आंखों में अपनत्व और स्नेह की नमी और स्वाबलंबन का गर्व था।

स्वरचित :-
ऋतु असूजा ऋषिकेश




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